RANCHI: हीमोफीलिया व थैलेसीमिया जैसी गंभीर बीमारी से ग्रसित मरीजों के लिए राहत भरी खबर है। उनके लिए जल्द ही रिम्स में अलग सेंटर बनाने की तैयारी है। इसमें इन बीमारियों से ग्रसित मरीजों का बेहतर ढंग से इलाज हो सकेगा। साथ ही इन बीमारियों पर रिसर्च करने में भी मदद मिलेगी। इसके लिए पेडियाट्रिक डिपार्टमेंट के डॉ। अमर वर्मा ने रिम्स प्रबंधन को प्रस्ताव भेज दिया है। वहीं, प्रबंधन ने भी इसके लिए प्रक्रिया शुरू कर दी है। जल्द ही सीकल सेल एनीमिया के मरीजों का भी इलाज अलग वार्ड में हो सकेगा।

किसी भी वार्ड में इलाज से परेशानी

रिम्स में जेनेटिक बीमारियों के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। इस बीच पिछले दो सालों में थैलेसीमिया के भ्भ्म् मरीज रिम्स पहुंचे, तो हीमोफीलिया के क्00 मरीजों का हास्पिटल में इलाज किया गया। अलग वार्ड नहीं होने के कारण मरीजों के इलाज में डॉक्टर्स के साथ ही नर्सो को भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। स्थिति यह है कि बाकी मरीजों के बीच ही इनका भी इलाज किया जा रहा है। जेनेटिक बीमारियों के इलाज के लिए हास्पिटल में अलग व्यवस्था मरीजों के लिए फायदेमंद साबित होगी।

हीमोग्लोबिन की कमी से थैलेसीमिया

थैलेसीमिया खून में हीमोग्लोबिन की कमी से होने वाली बीमारी है। इसमें सबसे अधिक खतरा छोटे बच्चों को होता है। वहीं इस बीमारी की वजह से बच्चों की मौत भी हो जाती है। यह बीमारी जितनी खतरनाक है उससे ज्यादा लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। जागरूकता नहीं होने के कारण शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है। चूंकि शरीर में मौजूद रेड ब्लड पार्टिकल्स क्ख्0 दिनों तक सर्वाइव करते है। लेकिन थैलेसीमिया के मरीजों में इसकी उम्र घटकर ख्0 दिन हो जाती है। यहीं वजह है कि थैलेसीमिया के मरीज लगातार खून की जरूरत पड़ती है और बच्चे को बचाने के लिए तीन सप्ताह में एक बोतल खून देना जरूरी है।

हीमोफीलिया मरीजों की नहीं रुकती ब्लीडिंग

हीमोफीलिया, एक ऐसी आनुवंशिक बीमारी है, जिसके कारण शरीर में चोट लगने पर ब्लीडिंग लगातार होती रहती है। वहीं चोट लगने के बाद भी थका नहीं बनता और खून का बहना जारी रहता है। यह बीमारी कई बार जानलेवा भी हो जाती है। चूंकि चोट लगने के बाद ब्लीडिंग होती है और शरीर में खून की कमी हो जाती है। एक्सपर्ट बताते है कि बीमारी का कारण ब्लड प्रोटीन की कमी होती है। जिसे 'क्लॉटिंग फैक्टर' कहा जाता है। इस फैक्टर के कारण ही खून का थका जम जाता है और ब्लीडिंग रुक जाती है।