- शैडो ऑब्जर्वेशन में कुल 16 प्रत्याशियों को मिला नोटिस

- चुनाव खर्च की गुणा-गणित में हुए फेल, नियमों को किया नजर अंदाज

<- शैडो ऑब्जर्वेशन में कुल क्म् प्रत्याशियों को मिला नोटिस

- चुनाव खर्च की गुणा-गणित में हुए फेल, नियमों को किया नजर अंदाज

ALLAHABAD: allahabad@inext.co.in

ALLAHABAD: ये हैं हमारे नेताजी। पॉलिटिक्स में ये पास हैं, तभी तो लोकसभा चुनाव में जीत के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। लेकिन, अफसोस कि मैथ में फेल हो गए। इन्हें हमने फेल नहीं किया बल्कि शैडो ऑब्जर्वेशन के दौरान ऑब्जर्वर ने रिपोर्ट कार्ड के रूप में नोटिस थमा दिया है। जिसका जवाब इन्हें तीन दिन के भीतर देना होगा। दरअसल, मामला चुनावी खर्च से जुड़ा है। चुनाव आयोग द्वारा तय मानक और नियमों को नजर अंदाज करने का खामियाजा प्रत्याशियों को भुगतना पड़ा है। इनके द्वारा दिखाया गया चुनावी खर्च कहीं से भी ऑब्जर्वर द्वारा तैयार किए गए खर्च से मेल नहीं खा रहा है।

कुल क्म् प्रत्याशियों को मिला नोटिस

बता दें कि फूलपुर और इलाहाबाद लोकसभा से चुनाव लड़ रहे कुल फ्8 में से क्म् प्रत्याशियों को एक्सपेंडिचर ऑब्जर्वर ने नोटिस थमाया है। चुनाव आयोग के निर्देश के अनुसार इन्हें ख्7 अप्रैल को अपने चुनावी खर्च का अब तक का लेखा-जोखा पेश करना था। इसकी जानकारी इन्हें पहले ही दे दी गई थी लेकिन बावजूद इसके कहीं रजिस्टर मेंटेन नहीं था तो कहीं प्रत्याशियों द्वारा दिखाए गए मानक आयोग द्वारा निर्धारित मानकों से मेल नहीं खा रहे थे। नतीजतन, चुनावी खर्च में पांच से दस लाख का अंतर आ गया। वहीं कुछ प्रत्याशियों ने तो अपना लेखा-जोखा ही ऑब्जर्वर के सामने पेश नहीं किया।

इनको मिला नोटिस

इलाहाबाद लोकसभा

श्यामाचरण गुप्ता-भाजपा

नंदगोपाल गुप्ता नंदी- कांग्रेस

केशरी देवी पटेल- बसपा

आदर्श शास्त्री- आम आदमी पार्टी

मो। अमीन अजहर अंसारी- कौमी एकता दल

चंद्र प्रकाश तिवारी- भारतीय किसान सेना लोकतांत्रिक

निष्ठा देव मौर्य- प्रगतिशील समाज पार्टी

महेंद्र कुमार- बहुजन मुक्ति पार्टी

राजेंद्र प्रसाद- कल्याणकारी जनतांत्रिक पार्टी

वाहिद अली उर्फ वाजिद अली- राष्ट्रीय उलेमा कौंसिल

संजय राबिंसन- नैतिक पार्टी

अजीत कुमार- निर्दलीय

परमानंद- निर्दलीय

हीरालाल- निर्दलीय

फूलपुर लोकसभा

नाथूराम बौद्ध- बहुजन मुक्ति पार्टी

मिथिलेश कुमार- निर्दलीय

नोट- इनमें श्यामाचरण, नंदी, केशरी देवी और आदर्श को छोड़कर बाकी ने अपना चुनावी खर्च ही पेश नहीं किया है।

पांच से दस लाख का अंतर कैसे आया?

एक तो चुनाव आयोग ने पहले से ही वाहनों की मिनिमम दरें तय की हैं तो दूसरे प्रत्याशियों ने रजिस्टर में इससे भी कम दरों में वाहनों का किराया दर्शाकर ऑफिसर्स को सोचने पर मजबूर कर दिया। ये हाल भाजपा के श्यामाचरण गुप्ता और कांग्रेस के नंदी दोनों का है। इनके चुनाव प्रचार में लगे वाहनों की संख्या अधिक है लेकिन खर्च कम। ऑफिसर्स की मानें तो श्यामाचरण के शैडो ऑब्जर्वेशन में जहां पांच लाख का अंतर था वहीं नंदी का चुनावी खर्च दस लाख रुपए कम था। फूलपुर भाजपा प्रत्याशी केशव प्रसाद के चुनाव खर्च पर आपत्ति हुई हालांकि, बाद में उनके द्वारा तैयार चुनावी खर्च को ऑब्जर्वर द्वारा एक्सेप्ट कर लिया गया।

तो फिर बैंक खाता क्यों खुलवा लिया

वहीं बसपा से केशरी देवी पटेल को नोटिस इसलिए थमाया गया है कि उन्होंने आयोग के निर्देश पर ज्वाइंट एकाउंट तो खुलवा लिया लेकिन इसका यूज नहीं किया। उन्होंने सारे पैसे नकद ही खर्च कर दिए। जबकि, नियमानुसार पहले पैसे खाते जमा करवाने थे और फिर इन्हें खर्च करना था। जिससे उनका लेखा-जोखा मेंटेन रहता। इसके अलावा आप प्रत्याशी आदर्श शास्त्री ने केवल क्8 अप्रैल तक का ही चुनावी खर्च शो किया है।

तीन दिन में देना होगा जवाब

चारों प्रत्याशियों को अगले तीन दिनों के भीतर नोटिस का जवाब देना होगा। ट्रेजरी ऑफिसर डॉ। वरुण खरे बताते हैं कि एक मई को सेकंड राउंड शैडो आब्जर्वेशन होना है। प्रत्याशी जो भी जवाब दाखिल करेंगे उसे डिस्ट्रिक्ट इलेक्शन कमेटी के सामने पेश किया जाएगा। अगर कमेटी सहमत है तो इसे एक्सेप्ट कर लेगी नहीं तो चुनाव आयोग को आगे की कार्रवाई के लिए रिफर कर दिया जाएगा। ऑब्जर्वर द्वारा तैयार किए जा रहे चुनावी खर्च के साथ प्रत्याशियों के खर्च का मैच होना जरूरी है। अधिक मिस मैचिंग होने पर नोटिस दी जा रही है। चुनाव खर्च पेश नहीं करने वाले प्रत्याशियों के तीन दिन के भीतर जवाब नहीं देने पर उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया जाएगा।

प्रत्याशियों की गणित क्यों है कमजोर

चुनाव प्रचार में पानी की तरह पैसा बहाने वाले प्रत्याशियों की गणित कमजोर होने का सीधा सा रीजन है। अगर इनका चुनावी खर्च आयोग द्वारा निर्धारित 70 लाख रुपए से अधिक हो जाता है तो ये चुनाव जीतने के बावजूद हारे घोषित कर दिए जाएंगे। इतना ही नहीं, ये अगले पांच साल तक चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे। यही रीजन है कि चुनावी खर्च पेश करने में अक्सर इनकी गणित कमजोर हो जाती है।