विरोध में किसी कैंडिडेट के न होने से राज्यसभा जाना पहले से ही था तय

PATNA (12 June): शरद यादव जुगाड़ टेक्नोलॉजी से आखिरकार संसद चले ही गए। लोकसभा न सही राज्यसभा ही सही। शरद खुश हैं कि वे निर्विरोध राज्यसभा पहुंच गए। शरद के विरोध में किसी उम्मीदवार के न होने से उनका राज्यसभा जाना पहले ही तय हो चुका था। शरद यादव बड़े नेता हैं। राष्ट्रीय स्तर के नेता, लेकिन चुनाव हार गए लोकसभा में। उस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं, जिसकी सरकार है बिहार में। शरद यादव को पप्पू यादव ने मधेपुरा में हरा दिया। पांच साल तक उनका किया कामकाज भी काम न आया। न ही काम आया नीतीश सरकार के आठ सालों का सुशासन, लेकिन हार गए तो क्या हुआ शरद राज्य सभा के लिए चुन लिए गए निर्विरोध। जेडीयू के बागी भी शरद के खिलाफ नहीं गए। लोकसभा में हार का मुंह देखने के बाद राज्यसभा जाने का शरद यादव का पुराना इतिहास रहा है। जब लालू प्रसाद ने हराय था, तब भी इसी राज्यसभा का रास्ता चुना था उन्होंने। अपने उसी इतिहास के मजबूत किया शरद यादव ने।

पर शरद ने नहीं मानी हार

नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव में नैतिक जवाबदेही मानते हुए सीएम पद से रिजाइन कर दिया, लेकिन शरद यादव ने हार नहीं मानी। उन्होंने न तो राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से रिजाइन किया और न ही पश्चाताप करने का कोई संकल्प दिखाया। पप्पू यादव से मधेपुरा में हार जाने वाले शरद यादव राज्यसभा जाने में जुट गए। न जेडीयू के अंदर से विरोध उठा और न बागियों ने उनके खिलाफ आवाज उठाई। नीतीश कुमार के खिलाफ बनी हवा का फायदा शरद यादव ने चतुराई से उठाया। बागियों के साथ मीटिंग भी उन्होंने की। हां, राजनीतिक दबाव में कहें या अपने लिए अनुकूल मौसम बनाने की कोशिश कि उन्होंने रवीन्द्र राय को निलंबित कर दिया। अब शरद क्या गुल खिलाते हैं इसका इंतजार जेडीयू के कई कार्यकर्ताओं को है। याद होगा, नीतीश कुमार ने जब सीएम की कुर्सी छोड़ी थी और शरद नीतीश कुमार से मिलने उनके आवास पर गए थे, तो नीतीश खेमे के कार्यकर्ताओं ने बड़ा विरोध किया था।