डाॅ. त्रिलोकीनाथ (ज्योतिषाचार्य और वास्तुविद)। Maa Shailputri Puja Vidhi, Color, Mantra, Aarti: शारदीय नवरात्रि 2022 : नवरात्रि में हर दिन देवी के एक अलग स्वरूप की पूजा होती है। देवी के जो विभिन्न रुप है वे रुप हमारे जीवन में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रुप से फलीभूत भी होते है। किसी देवी की पूजा करने से शरीर अत्यधिक ऊर्जावान हो सकता है। शरीर से रोग आदि नष्ट हो जाते है। किसी देवी की पूजा से सुख-शांति मिलती है।किसी देवी की पूजा से विघ्न-बाधायें दूर हो जाती है। शत्रुओं का नाश हो जाता है। किसी देवी की पूजा से लम्बे समय से कर्ज में दबे व्यक्ति को कर्ज से मुक्ति मिल जाती है और आर्थिक परेशानियां दूर हो जाती है। धन लाभ के अनेक अवसर मिलते है। इन विभिन्न एवं विशिष्ट गुणों की स्वामिनी नव देवी दुर्गा के विभिन्न स्वरूप के महात्म एवं उनके विशिष्ट गुणों के बारे में हम जानकारी प्राप्त करेंगे। इन विभिन्न गुणों की पूजा के माध्यम से विभिन्न देवियों के आशीर्वाद स्वरूप उनके विभिन्न गुणों को आराधना के माध्यम से अपनी आत्मा में उतारने का अपने में प्रयास करेगें ताकि मां का आशीर्वाद बना रहें ।


शैलपुत्री मां का महात्म
शैल का अर्थ चट्टान होता है। इसलिए मां के इस स्वरूप को शैलपुत्री कहा गया है। चट्टान के समान दृढ़ स्वभाव वाली मां कर्मठता एवं अथक परिश्रम से आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। इनकी पूजा से कर्मठता बढ़ती है। भक्त स्वालम्बी बनता है। वही जो व्यक्ति या जो भक्त अपने स्वाभिमान की रक्षा नहीं कर पा रहा हो सामाजिक एवं पारिवारिक परेशानियां उसके आत्मविश्वास को डगमगा रहा हो । वह मां के इस स्वरूप की पूजा करें। इससे उसे परेशानियों से मुक्ति मिलेगी। उसके स्वाभिमान की रक्षा होगी। उसकी कर्मठता बढ़ेगी। घर परिवार एवं समाज में आदर बढ़ेगा। भक्त पर मां दुर्गा की कृपा भी बनी रहेगी। नवरात्रि के पहले दिन मां के इस स्वरूप के चरणों मे गाय का घी अर्पित करना चाहिए।

शैलपुत्री मां का मंत्र
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रर्धकृतशेखराम्।
वृषारुढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।


शैलपुत्री मां आरती
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।

पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पाव।

ऋद्धि- सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवा करे तू।

सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।

उसकी सगरी आस पूजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।

घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।

श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।

जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।

मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।
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