- नवरात्र पर्व में जरुरी है पूरी विधि विधान, तभी मिलेगा फल

Meerut : इस बार शारदीय नवरात्र दिन मंगलवार चित्रा नक्षत्र व वैधृति योग में 13 अक्टूबर से प्रारम्भ हो रहे हैं, जिससे अश्विन शुक्ल पक्ष भी प्रारंभ हो जाएगा। ज्योतिषों के अनुसार इस बार के नवरात्र बड़े ही फलदायी होंगे। इसलिए पूरे विधि विधान की जानकारी होना आवश्यक है।

कैसे बनेगा योग

ज्योतिषाचार्य भारत ज्ञान भूषण के अनुसार नवरात्र में पूजा स्थल के ऊपर झंडा व दूध, शहद, बादाम, काजू का भोग नकारात्मक ऊर्जाओं का कोई कुप्रभाव नहीं होने देगा। कलश स्थापना पर कलश के मुख में पीपल के पत्ते भी इन नवरात्रों में रखना जीवन में सकारात्मक प्रभावों को बढ़ा देगा। वहीं पंडित अरुण शास्त्री के अनुसार नवरात्र में मां की पूजा अर्चना करने के साथ ही धान बीजने से भी बहुत फल मिलता है।

घट स्थापना का होता है महत्व

पंडित चिंतामणि जोशी के अनुसार किसी भी पूजा में घट स्थापन का अपना सर्वाधिक महत्व माना गया है। नवरात्र की पूजा प्रारंभ करने से पूर्व जल भरा पात्र पांचों तत्व, तीनों गुणों, सातों समुद्र, सप्त ऋषि, त्रिदेव सहित संपूर्णता का प्रतीक होता है। अत: पूर्ण परमात्मा का शुभ प्रभाव, कलश स्थापन से समस्त पूजा के फलों में आ जाता है।

यह भी है विशेष बात

पंडित राजेश शर्मा के अनुसार ये नौ दिन, काल व ऋतु परिवर्तन के होते हैं। प्रकृति में इन दिनों भारी वायुमंडलीय परिवर्तन क्रमिक रूप से होते हैं और उनसे हमारा मन, मस्तिष्क और शरीर स्वस्थ रहे, इसके लिए सभी लोग सात्विक आहार-विहार अपनाते हैं और धार्मिक नियमों की पालना करते हैं। शरीर की बाहरी शुद्धि के लिए शुद्धता, पवित्रता से रहना, पवित्र वातावरण में पवित्र वस्तुओं से ही संपर्क रखा जाता है और आंतरिक शुद्धता के लिए दैवी शक्तियों के साथ साथ अपने ईष्ट की उपासना व साधना परम शक्तिशाली हो जाती है।

क्या है विधि

पंडित श्रीधर त्रिपाठी के अनुसार अपने घर के ईशान कोण या पूर्व दिशा में स्थित कमरे को शुद्ध करके, एक स्थान पर शुद्ध मिट्टी रखें और उसमें जौ बो दें। फिर शुभ मुहूर्त में कलश में जल भर कर मिट्टी पर स्थापित करें। कलश के ऊपर रोली से ऊं व स्वास्तिक शुभ चिह्न बनाने से पूर्व कलश के मुख पर शुभ कलावा अवश्य बांधें तथा जल में तीन हल्दी की गांठें, 12 रेशे केसर के साथ अन्य जड़ी, बूटियां व पंच रत्‍‌न चांदी अथवा तांबे इत्यादि के सिक्के के साथ गंगा जल, लौंग, इलायची, पान, सुपाड़ी, रोली, चंदन, अक्षत, पुष्प आदि डालें और कलश को पूर्ण रूप से भर दें। मुख पर पंच पल्लव अर्थात आम, पीपल, बरगद, गुलर व पाकर के पत्ते इस प्रकार रखें कि डंडी पानी में भीगी रहे तथा पत्ते बाहर रहें अन्यथा पांच पत्तों युक्त आम की टहनी ही कलश के ऊपर लगाएं। कलश के मुख पर चावल भरा कटोरा रख कर उसके ऊपर लाल कपड़े में लिपटा कच्चा नारियल इस प्रकार रखें कि नारियल का मुख आपकी ओर हो। पंडित बाबू राम ने बताया कि नौ दिन तक अखण्ड दीप, अखण्ड ज्योति सभी प्रकार की अमंगलकारी ऊर्जाओं को नष्ट करने की क्षमता रखती है और धूप, बत्ती पश्चिम उत्तर दिशा के मध्य वायव्य दिशा में स्थापित करें। यह कलश जहां पर दुर्गा देवी की स्थापना हुई है, उसके ठीक आगे स्थापित करना चाहिए।

घट स्थापन एवं पूजन

ज्योतिष भारत ज्ञान भूषण के अनुसार शुभ मुहूर्त 13 अक्टूबर को प्रात: सूर्य उदय के समय अमावस तिथि ही होगी सूर्योदिनी प्रथमा तो बुधवार 14 अक्टूबर को है। इस प्रकार इस बार प्रतिपदा तिथि वृद्धि योग हैं। इसलिए कलश स्थापन का मुहूर्त इस वर्ष 13 अक्टूबर को प्रात:काल से प्रारंभ नहीं हो सकेगा श्रेष्ठतम मुहूर्त मात्र दोपहर को ही है, जिसके लिए दोपहर 11:46 से 12:31 तक का उत्तम मुहूर्त माना जा रहा है।

घोड़े पर होगा देवी दुर्गा का आगमन

-इस वर्ष देवी दुर्गा के डोली पर प्रस्थान का है योग

रूद्गद्गह्मह्वह्ल : देवी दुर्गा का प्रमुख वाहन तो सिंह यानि शेर माना जाता है, लेकिन माता के अलग-अलग रूप हैं और उनके अलग-अलग वाहन भी हैं। इस वर्ष मंगलवार के दिन कलश स्थापना हो रही है, ऐसे में देवी दुर्गा का आगमन घोड़े पर हो रहा है। विजयादशमी 22 अक्टूबर को गुरुवार का दिन है। पं। तरुण कहते हैं कि शास्त्रों के अनुसार गुरुवार के दिन विजयादशमी होने पर माता डोली में सवार होकर वापस कैलाश की ओर प्रस्थान करती हैं। माता की विदाई डोली में होने के कारण महामारी, अकाल और भूकंप की आशंका रहेगी। हालांकि कई लोग इस विदाई को सकारात्मक भी मानते हैं। तर्क दिया जाता है कि चूंकि भगवती मनुष्य की सवारी डोली से जाती हैं, जो सुख और साख की वृद्धि करती है।