Sheetala Ashtami 2020 : शीतल अष्टमी के दिन माता शीतला की पूजा की जाती है जिससे व्रतियों को उत्तम फल मिलता है। सभी देवियों की पूजा- आराधना में इस देवी की अर्चना तथा व्रत आदि का अलग ही महत्व है जिसके करने से व्रती के परिवार में दाह ज्वर, पीत ज्वर,दुर्गन्ध युक्त फोड़े, नेत्रों के सभी रोग, शीतला के फुंसियों के चिन्ह तथा शीतला जनित सारे कष्ट- रोग दूर हो जाते हैं। यह व्रत लोकाचार के अनुसार होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार अथवा गुरुवार को भी किया जाता है। शुक्रवार को भी इसके पूजन का विधान है परंतु रविवार व शनिवार अथवा मंगलवार को शीतला माता का पूजन नहीं करना चाहिए। यदि अष्टमी तिथि इन चारों में पड़ जाए तो पूजन अवश्य करना चाहिए।स्कन्द पुराण में चार महीनों में इस व्रत को करने का विधान है। इस बार यह व्रत दिनांक 16 मार्च 2020 को सोमवार के दिन पड़ रहा है। इस बार की विशेष बात यह है कि होली के बाद अष्टमी तिथि को ही सोमवार पड़ रहा है। अतः व्रत का कई गुना अधिक शुभ फल प्राप्त होगा।

व्रत का विधान

इस व्रत के लिए पूर्वविद्धा अष्टमी ही ली जाती है। इस दिन प्रातः काल शीतल जल से स्नान कर संकल्प करना चाहिए। "मम गेहे शीतलारोगजनीतौपद्रव प्रश्मनपूर्वकआयुरारोग्य ऐश्वर्य अभिवृद्दये शीतलाष्टमी व्रतं करिष्ये"। उपरोक्त मंत्र से संकल्प लेने के पश्चात इस दिन शीतलाष्टक का पाठ करना चाहिए।इस व्रत में पांचों उंगली हथेली सहित घी में डुबोकर रसोईघर की दीवारों पर छापा लगाया जाता है। उस पर रोली चावल चढ़ाकर शीतला माता के गीत गाये जाते हैं। इस व्रत की विशेषता यह है कि इसमें शीतला देवी को भोग लगाने वाले सभी पदार्थ एक दिन पूर्व ही बना लिए जाते हैं अथार्त शीतला माता को एक दिन का वासी शीतल भोग लगाया जाता है।इसलिये यह व्रत लोक में बास्योड़ा के नाम से भी प्रसिद्ध है, जिस दिन व्रत रखा जाता है उस दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता है।

पूजन विधि

बास्योड़ा के दिन प्रातः काल एक थाली में पूर्व संध्या में तैयार नैवेध, हल्दी, दही, धूपबत्ती, जल का पात्र, चीनी, गुड़ और अन्य पूजन आदि सामान सजाकर परिवार के सभी सदस्यों के हाथ से स्पर्श कराकर शीतला माता के मंदिर जाकर पूजन करना चाहिए।होलिका के दिन बनाई गई गुलड़िया की माला भी शीतला माता को अर्पित करने का विधान है।चौराहे पर जल चढ़ाकर पूजा करने की भी परम्परा है।शीतला माता के पूजन के उपरांत गदर्भ (गधा) का भी पूजन कर मंदिर के बाहर काले कुत्ते के पूजन एवं गधर्भ को चने की दाल खिलाने की भी परंपरा है।