पं राजीव शर्मा (ज्योतिषाचार्य)। भारतवर्ष में देवी शीतलाष्टमी का व्रत केवल प्रत्येक वर्ष चैत्र माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है।यह देवी दिगम्बरा हैं। गधर्व यानी गधे पर सवार रहती हैं। *शूप,मार्जनी यानी झाड़ू एवं नीम के पत्तों से अलंकृत रहती हैं तथा हाथ में शीतल जल का कलश रखती हैं।सभी देवियों की पूजा-आराधना में इस देवी की अर्चना तथा व्रत आदि का अलग ही महत्व है, जिसके करने से व्रती के परिवार में दाह ज्वर,पीत ज्वर,दुर्गन्ध युक्त फोड़े,नेत्रों के सभी रोग,शीतला के फुंसियों के चिन्ह तथा शीतला जनित सारे कष्ट-रोग दूर हो जाते हैं।

रविवार को क्यों की जा रही पूजा
यह व्रत लोकाचार के अनुसार होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार अथवा गुरुवार को भी किया जाता है, शुक्रवार को भी इसके पूजन का विधान है परंतु रविवार, शनिवार अथवा मंगलवार को शीतला माता का पूजन नहीं करना चाहिए यदि अष्टमी तिथि इन चारों में पड़ जाय तो पूजन अवश्य करना चाहिए।परंतु इस बार यह व्रत 4 अप्रैल 2021,रविवार को पड़ रहा है। स्कन्द पुराण में चार महीनों में इस व्रत को करने का विधान है। अतः इस दिन इस व्रत के करने से व्रती को कई गुना अधिक शुभ फल प्राप्त होगा।

व्रत का विधान
इस व्रत के लिए पूर्वविद्धा अष्टमी ही ली जाती है।इस दिन प्रातः काल शीतल जल से स्नान कर संकल्प करना चाहिए। "मम गृहे शीतलारोगजनीतौपद्रव प्रश्मनपूर्वकआयुरारोग्य ऐश्वर्य अभिवृद्दये शीतलाष्टमी व्रतं करिष्ये"।
उपरोक्त मंत्र से संकल्प लेने के पश्चात इस दिन शीतलाष्टक का पाठ करना चाहिए। इस व्रत में पांचों उंगली हथेली सहित घी में डुबोकर रसोईघर की दीवारों पर छापा लगाया जाता है, उस पर रोली चावल चढ़ाकर शीतला माता के गीत गाये जाते हैं। इस व्रत की विशेषता यह है कि इसमें शीतला देवी को भोग लगाने वाले सभी पदार्थ एक दिन पूर्व ही बना लिए जाते हैं अथार्त शीतला माता को एक दिन का वासी शीतल भोग लगाया जाता है।इसलिये यह व्रत लोकाचार में बास्योड़ा के नाम से भी प्रसिद्ध है, जिस दिन व्रत रखा जाता है उस दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता है।

पूजन विधि
बास्योड़ा के दिन प्रातः काल एक थाली में पूर्व संध्या में तैयार नैवेध,हल्दी,दही,धूपबत्ती,जल का पात्र,चीनी,गुड़ और अन्य पूजन आदि सामान सजाकर परिवार के सभी सदस्यों के हांथ से स्पर्श कराकर शीतला माता के मंदिर जाकर पूजन करना चाहिए।होलिका के दिन बनाई गई गुलड़िया की माला भी शीतला माता को अर्पित करने का विधान है।चौराहे पर जल चढ़ाकर पूजा करने की भी परम्परा है।शीतला माता के पूजन के उपरांत गदर्भ (गधा) का भी पूजन कर मंदिर के बाहर काले कुत्ते के पूजन एवं गदर्भ को चने की दाल खिलाने की भी परंपरा है।

विशेष
प्रत्येक जातक पर जन्म के बाद शीतला माता का प्रभाव निश्चित रूप से होता है इससे बच्चों में चेचक,बुखार,दाहयुक्त फोड़े होते हैं।गधे की लीद की गंध से फोड़ों की पीड़ा-दर्द में आराम मिलता है।इस रोग का प्रकोप जिस घर में होता है।वहां घर में झाड़ू लगाना,अन्न आदि की सफाई करना वर्जित माना गया है।इसलिये अन्न साफ करने की सूप रोगी के सिरहाने रख दीं जाती है।नीम के पत्ते रखने से भी रोगी को काफी हद तक आराम मिलता है।