- वर्ष 2000 में साथी दारोगा अरविंद को उतारा था मौत के घाट

- हाल ही में मुरादाबाद कोतवाली में तैनात थी शबनम

बरेली

दारोगा अरविंद हत्याकांड में 18 साल बाद सैटरडे को कोर्ट ने फैसला सुनाया। महिला दारोगा शबनम को सात साल कैद की सजा सुना दी गई। दो दिन पहले ही महिला दारोगा को अदालत ने दोषी करार देकर न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया था। शनिवार को केवल उसकी सजा पर फैसला आना था।

यह था मामला

वर्ष 2000 में रिसाला चौकी इंचार्ज अरविंद की सिर पर ईंट मारकर हत्या कर दी गई थी। हत्या के दूसरे दिन महिला दारोगा शबनम ने जब एसएसपी के सामने सरेंडर किया तो पूरे पुलिस विभाग में खलबली मच गई। शबनम पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया। पुलिस ने अपहरण की धारा 364 और हत्या की धारा 302 के तहत चार्जशीट लगाई। स्पेशल जज एससीएसटी एक्ट रविनाथ की अदालत ने मामले को हत्या नहीं बल्कि गैर इरादतन हत्या का दोषी पाते हुए महिला दारोगा शबनम को सजा सुनाई। साथ ही 40 हजार रुपये जुर्माना भी लगाया है।

शादी के 90 दिन बाद हत्या

दारोगा अरविंद के पिता किशन लाल सीओ थे। पिता की मौत के बाद 1998 में अरविंद को दारोगा की नौकरी मिली। अरविंद 1998 से ही बरेली में तैनात थे। नौकरी के दौरान ही उनकी शबनम से जान-पहचान हो गई। हत्या से 90 दिन पहले ही अरविंद की शादी हुई थी। अरविंद की मौत के बाद उनकी जगह पत्नी को नौकरी मिली है। आज वह हापुड़ में इंस्पेक्टर हैं।

फैसले से प्रॉसीक्यूसन असंतुष्ट, जाएगा हाईकोर्ट

- हत्या, अपहरण व दलित उत्पीड़न के आरोप में लगी थी चार्जशीट

- कोर्ट ने नहीं माना दलित उत्पीड़न, गैर इरादतन हत्या में सुनाई सजा

बरेली

दारोगा अरविंद हत्याकांड में सैटरडे को आए फैसले से खुद प्रॉसीक्यूसन असंतुष्ट है। मुकदमे में चार्जशीट अपहरण और हत्या की धारा में लगी थी। पूरे मुकदमे में ट्रायल भी इन्हीं धाराओं में हुआ। मुकदमे के लास्ट में अदालत ने इसे हत्या नहीं बल्कि गैर इरादतन हत्या माना और उसी के तहत फैसला सुनाया।

प्रॉसीक्यूसन नहीं कर सका साबित

शाम करीब चार बजे फैसला आया। अदालत ने शबनम को सात साल कैद की सजा सुनाई थी। प्रॉसीक्यूसन फैसले से संतुष्ट नहीं दिखा। उसका कहना है कि वह इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करेंगे। वहीं प्रॉसीक्यूसन भी अपहरण व हत्या का होना साबित नहीं कर सका, जिस कारण कोर्ट ने इसे गैर इरादतन हत्या का केस मानते हुए सात साल सजा सुनाई।

उम्रकैद होनी चाहिए थी: जेडी

संयुक्त निदेशक प्रॉसीक्यूशन अनिल कुमार उपाध्याय का कहना है कि वह फैसले से संतुष्ट नहीं है। आरोपित दारोगा शबनम को कम से कम उम्रकैद की सजा होनी चाहिए थी। पुलिस ने अपनी विवेचना में मामला अपहरण व हत्या का पाया है। हाईकोर्ट में अपील के लायक उनके पास बहुत आधार है।

हमें पूरा न्याय नहीं मिला: सुरेंद्र

दारोगा अरविंद प्रताप के छोटे भाई सुरेन्द्र का कहना है कि 18 साल तक वह मुकदमे में न्याय पाने के लिए लड़ते रहे। फैसला आने के बाद वह खुश तो हैं लेकिन पूरी तरह से नहीं। वहीं शबनम के पिता आफाक अहमद का कहना है कि वे भी फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करेंगे।

बैचमेट थे अरविंद और शबनम

दारोगा अरविंद और शबनम 1998 बैच के थे। दोनों ने एक साथ मुरादाबाद में ट्रेनिंग की थी। ट्रेनिंग के दौरान ही दोनों के बीच दोस्ती हो गई। हत्या के बाद दोनों के संबंधों को लेकर खासी चर्चा रही।

नहीं हुआ प्रमोशन

1998 बैच के सभी दारोगाओं का 2016 में प्रमोशन हो गया। इस बैच के सभी दारोगा इंस्पेक्टर बन गए। चूंकि शबनम पर हत्या का मुकदमा दर्ज था लिहाजा उसके प्रमोशन का लिफाफा बंद कर दिया गया। वह दारोगा ही बनी रही।