प्रबंधकीय विवाद का असर पढ़ाई पर पड़ने को लेकर कोर्ट सख्त

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि सीनियर बेसिक स्कूल की सोसायटी व प्रबन्ध समिति के प्रधानाचार्य की नियुक्ति को लेकर चल रहा विवाद बच्चों के शिक्षा पाने के मूल अधिकार को विफल करने वाला है। बच्चे देश का भविष्य हैं और प्रबन्ध समिति का प्रयास देशहित के खिलाफ है। विवाद व माहौल खराब होने के चलते 6 से 14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा नहीं मिल पा रही है। कोर्ट ने अपर मुख्य सचिव बेसिक शिक्षा लखनऊ से 16 अगस्त तक व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर बताने को कहा है कि क्या प्रदेश में प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूल में अनिवार्य शिक्षा कानून एवं अनुच्छेद 21 ए के शिक्षा के मूल अधिकार को कड़ाई से लागू किया गया है।

बीएसए के आदेश को चुनौती

यह आदेश जस्टिस एसपी केशरवानी ने इमलिया जूनियर हाई स्कूल सोसायटी जालौन (उरई) के अध्यक्ष की याचिका पर दिया है। याचिका में बीएसए के उस आदेश को चुनौती दी गयी है जिसके तहत प्रबन्ध समिति द्वारा नियुक्त प्रधानाचार्य का अनुमोदन कर दिया गया है। मालूम हो कि 23 मई 18 को प्रबन्ध समिति ने वर्षो से खाली पड़े प्रधानाचार्य के पद को भरने की अनुमति मांगी। जिसके खिलाफ याची ने बीएसए व सहायक निबन्धक सोसायटीज को शिकायत की। सहायक निबन्धक ने रोक लगा दी किन्तु अपनी शक्ति का श्रोत नहीं बताया। मामला सीडीओ के समक्ष गया। प्रधानाचार्य का चयन पूरा किया गया और बीएसए ने अनुमोदन भी दे दिया तो सहायक निबन्धक ने दोनों को साक्ष्यों के साथ तलब किया और याची की शिकायत को निराधार मानते हुए अस्वीकार कर दिया। जिस पर यह याचिका दाखिल की गयी है। कोर्ट ने कहा कि प्रधानाचार्य की नियुक्ति का अनुमोदन हो चुका है। इसलिए हस्तक्षेप का आधार नहीं है। किन्तु प्रबन्धकीय विवादों के चलते शिक्षा के माहौल खराब होने पर अपर मुख्य सचिव से हलफनामा मांगा है।