-विपक्ष ने ली राहत शिविरों में सरकार की खबर

-बड़ी संख्या में लोग बेघर हुए हैं

- कुर्जी मोड़ से सीधे राजापुल नहीं जा सकते, पानी निकाला जा रहा है

PATNA: गंगा में धार बहुत तेज है। आपदा प्रबंधन की नावें लोगों को निकाल रही हैं। जहां ये नावें नहीं हैं वहां लोग मदद कर रहे हैं। दीघा से लेकर पूरब की ओर बढ़ते जाइए गंगा कई स्थानों पर सड़क पर से ही दिख रही है। कुर्जी मोड़ से राजापुर पुल के बीच पिछले तीन दिनों से कई स्थानों पर रास्ता रोककर पानी निकाला जा रहा है और गंगा में डाला जा रहा है। कुर्जी हास्पीटल के पास देशरत्न भवन के नजदीक सड़क पर मेन होल को बालू के बोरे से बंद किया जा रहा है।

दीघा विधायक पहुंचे सरकार का इंतजाम देखने

यहां से गंगा का पानी आ रहा है। देशरत्न प्रशिक्षण महाविद्यालय में दोपहर को फ्:00 बजे दीघा विधायक संजीव चौरसिया पहुंचे। साथ में स्थानीय मुखिया और स्थानीय लोग भी। महाविद्यालय में कई परिवार शरण लिए हुए हैं। यहां मुकेश बताते हैं कि बिंद टोली से आकर यहां सहारा ले रहे हैं। घर डूब गया। शिविर में दाल-भात-सब्जी खिलाया जा रहा है। लेकिन तभी सावित्री देवी सामने आती है और बताती है कि राहत जो मिलनी चाहिए नहीं मिल रही। कई बाढ़ पीडि़त लोग विधायक को घेर लेते हैं। वे एक-एक कर सब की बात सुनते हैं और अफसरों को निर्देश देते हैं। यहां हेल्थ कैंप भी लगा है और दवाएं भी दी जा रही हैं। कुर्जी में बांध पर बसे लोगों के घरों में पानी घुस आया है। इसलिए वे फुटपाथ पर चले आए हैं। लोग बताते हैं कि उन्हें राहत के नाम पर कुछ नहीं मिला है। अपना प्लास्टिक लगाकर लोगों ने जैसे तंबू लगा लिया है। बस स्टॉप के शेड को घेर कर बना लिया गया है बसेरा।

कुछ नहीं मिला सरकार से

आगे राजापुर पुल के आगे देशरत्न समाधि स्थल के पास फुटपाथ पर की भैंसे बंधी हैं। देशरत्न की समाधि स्थली के बाहर गाय- भैसों की कतार लगी है खुले में। गाय-भैंसों को चारा खिला रहे मिथिलेश कहते हैं कि परिवार को रिश्तेदार के यहां भेज दिया है। उनके भाई राजेश्वर कहते हैं कि चारा खरीद कर ला रहे हैं कहीं से। सरकार की ओर से कुछ नहीं मिला है। किसी तरह रोजी-रोजगार कर रहे हैं। क्या करें कहां जाएं?

दो-दो हजार देकर भैंसों को इधर लाया

पटना कलेक्टेरियट कैंपस में भैसों की बड़ी संख्या है। लोग बड़ी संख्या में बाढ़ की त्रासदी झेलने के बाद यहां शरण ले रहे हैं। यहां उपेन्द्र, सुनील राय, शिवाजी राय, देवेन्द्र राय, विपिन राय जैसे कई बाढ़ पीडि़त सामने आते हैं और कहते हैं कि कुछ मदद नहीं है। हाहाकार जैसी स्थिति है। किसी तरह मवेशियों को पाल कर रखना है। उसी में कमर टूट रही है। नाव से भैसों को इस पार लाना पड़ा है और इसके लिए दो-दो हजार रुपए तक देने पड़े हैं।

बारिश हो जाए तो कहां जाएंगे पता नहीं

क्लेक्टेरियट के कैंपस में पिंकी कुमारी घास काट रही है। वह कहती है कि गांधी मैदान से घास लाए हैं भैसों और बकरियों को खिलाने के लिए। कोई उपाय नहीं है। सरकार की ओर से चारे का कोई इंतजाम नहीं है। पीपल के पेड़ के नीचे कुछ परिवार हैं। इन्हें यह नहीं पता कि बारिश होगी तो ये कहां जाएंगे। कई बच्चे भी हैं साथ में। पता नहीं इन्हें कहां छिपाया जाएगा। सब कुछ अनिश्चित-सा है यहां। पूनम देवी कहती हैं शनिवार को यहां आए हैं। कोई व्यवस्था नहीं है यहां। मीना देवी सात लोगों के परिवार के यहां पर हैं। वह बताती है कि रात में चूड़ा दिया था खाने के लिए। इससे ज्यादा कुछ नहीं मिला है। प्लास्टिक तक नहीं है। बारिश होगी तो हमारे बच्चों का क्या होगा? ना रहने का इंतजाम ना रात में सोने का। मवेशियों के गांधी मैदान से लाए घास उसके बगल में पड़े हैं।

बच्चों को दूघ नहीं मिल रहा

बीएन कॉलेजिएट स्कूल में सबलपुर दियारा के लोग शरण लिए हुए हैं। मवेशी इतनी बड़ी संख्या में हैं कि यहां मुश्किल से कोई चलकर आगे बढ़ सकता हैं। दोनों ओर भैंसे बंधी हैं कतार में। बड़ी संख्या में लोगों ने यहां सिर छिपाया हुआ है। बहुत सारे बच्चे भी हैं। ब्:ब्भ् बजे नेता प्रतिपक्ष डॉ प्रेम कुमार यहां पहुंचते हैं। लोगों से सवाल करते हैं। कितने दिनों से हैं आपलोग यहां? बाढ़ पीडि़त कहते हैं चार दिनों से हैं। खाना मिल रहा है? हां मिल रहा है, शुरु में कुछ दिन दिक्कते हुईं थीं। क्या खाना मिल रहा है? पूड़ी-सब्जी मिल रही है। पीने का पानी मिल रहा है? हां टंकी का पानी है वही पी रहे हैं। बच्चों का दूध मिल रहा है? नहीं, बच्चों को दूध तो नहीं मिल रहा है। दवाएं मिल रही हैं? हां आज से इसका इंतजाम हुआ है। ठीक है। मेरा फोन नंबर ले लीजिए। कोई दिक्कत हो तो फोन कीजिएगा। तभी एक व्यक्ति वहां आता है और बाढ़ पडि़तों व नेता प्रतिपक्ष के बीच बातचीत को रोकता हुए पूछता है कि कौन शिकायत कर रहा है? कौन कह रहा है कि खाना नहीं मिल रहा है? नेता प्रतिपक्ष सवाल करते हैं आप कौन हैं? हम राजद के कार्यकर्ता हैं। चलिए-चलिए सर देख लीजिए आप खुद से ही कि खाना है कि नहीं यहां! चलिएचलिए कहते हुए नेता प्रतिपक्ष आगे बढ़ते हैं। अंदर एक कमरे में पूडि़यां तली जा रही हैं। सब्जी के लिए आलू कटा हुआ था धोने के लिए। बगल के कमरे में लोगों को खिलाया जा रहा है। नेता प्रतिपक्ष ने कहा, ठीक है, हां इसका मतलब इंतजाम है। नेता प्रतिपक्ष मुआयना कर निकल जाते हैं। व्यवस्थापकों में से एक युवक बताता है कि यहां क्97 गाय-भैंसे हैं और लगभग 900 लोग हैं।

हमें पता था कि बाढ़ आएगी लेकिन

अब तक एक और बाढ़ पीडि़त बीएन कॉेलेजिएट स्कूल पहुंच जाता है.परिवार एक सामान भरे ट्रंक और बाकी सामानों के साथ यहां पहुंच है। विशुन राय सिंह कहते हैं कि हमारा ख्0 लोगों का परिवार है। सब कुछ पानी में बह कर इतना ही बचा है। अब यहां शरण लेने आए हैं। क्यों आपको पता नहीं था कि बाढ़ आने वाली है? इस सवाल के जवाब में विशुन राय की पत्नी कहती है कि ये तो पता था कि बाढ़ आएगी,पर पानी इस तेजी से चढ़ेगा इसका अंदाजा नहीं था। नहीं तो पहले ही निकल कर इधर चले आते, सब बर्बाद थोड़े ना होने देते। हम सब को पहले एलर्ट कर दिया जाता कि पानी तेजी से बढ़ेगा निकल जाओ, तो निकल आते। विशुन कहते हैं कि दो भैंस मर गई, घर डूब गया। संपत्ति सब बर्बाद हो गया। पानी-पानी हो गया।

चलो बाढ़ देख आएं

राजधानी में ऐसे लोगों की बड़ी संख्या दिखी जो बाढ़ देखने आए। पत्नी बच्चों के साथ। सबसे ज्यादा भीड़ बांस घाट और कलेक्टेरियट घाट में दिखी। लोग खूब फोटो खींचते दिखे। सब के मन में यही कि फिर गंगा का यह रूप कब दिखेगा? दिखेगा भी कि नहीं? खूब भीड़। मेले जैसे दृश्य। कलेक्टेरियट घाट पर चनाचोर गरम वाले की बिक्री भी बढ़ गई। बांस घाट पर पुलिया पर से दिखता रहा कि कैसे गंगा के बीचोबीच दो नील गाय फंसी है। लोग उसे देखते रहे कि अब क्या होगा?

हम अपनी गाय-भैंसे लेकर दियारा से इधर आ गए हैं। लेकिन सरकार की ओर से कोई मदद नहीं है। रात भर यहां बस स्टॉप में ही सोते हैं। इधर-उधर शौच के लिए जाते हैं। जानवरों को चारा कहीं से लाकर खिला रहे हैं।

मिथिलेश राय, बाढ़ पीडि़त

कलेक्टेरिटय में इस पीपल के पेड़ के नीचे परिवार के साथ पड़ी हूं। बारिश हो गई और आफत आ जाएगी। सारे बचा खुचा सामान भी भींग जाएगा। सरकार को इतनी भी परवाह नहीं कि हम सब को प्लास्टिक दे दे। खाना तो मिल ही नहीं रहा है।

मीना देवी, बाढ़ पीडि़त