- स्मार्ट फोन चोरी होने के बाद बरामदगी में महकमा फेल

- छह महीने में पांच सौ से ज्यादा शिकायतों के बाद भी पब्लिक को काटना पड़ रहा है चक्कर

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केस-1

पाण्डेयपुर के रहने वाले कौशल कुमार का मोबाइल एक माह पहले सारनाथ में कुछ बाइक सवार बदमाशों ने छीन लिया था। एफआईआर के बाद फोन सर्विलांस पर लगा लेकिन अब तक उसका कोई पता नहीं चला।

केस-2

चौकाघाट के मनीष कुमार का मोबाइल एक शादी में गिर गया। काफी परेशान होने के बाद उन्होंने कैंट थाने में मुकदमा दर्ज कराया लेकिन लगभग छह माह बीतने के बाद भी उनके स्मार्ट फोन का कोई पता नहीं है।

ये दो केस ये बताने के लिए काफी हैं कि किस तरह से अपने शहर में स्मार्ट फोन के चोरी या खो जाने के बाद उसकी बरामदगी के चांस बिल्कुल न के बराबर होते हैं। फोन चोरी या खोने के बाद पुलिस की ओर से किया गया प्रयास बिल्कुल निराशाजनक होता है। वजह फोन बरामद कराने में न पुलिस इंटरेस्ट लेती है और न ही सर्विलांस टीम इसको तलाश पाती है।

पकड़ना है आसान

दरअसल स्मार्ट फोन के आने के बाद मोबाइल यूजर्स तो बढ़े ही साथ ही क्राइम और इसका तरीका भी बदल गया। पहले सस्ते फोन को उड़ाने के बाद बदमाश इसका सीधे सौदा कर देते थे क्योंकि पकड़े जाने का डर कम था लेकिन स्मार्ट फोन में स्मार्ट लोकेटर से लगायत कई दूसरे फीचर्स संग आईएमईआई नंबर के जरिए गायब मोबाइल तक पहुंचना आसान है।

ऐसे होता है खेल

सर्विलांस के ही एक ऑफिसर ने बताया कि स्मार्ट फोन को स्मार्ट फोन के गायब होने के बाद लंबा खेल होता है। जो दालमंडी से शुरू होता है। यहां कैसे होता है खेल ये बताते हैं आपको

- चोरी या गुम मोबाइल पूरे पूर्वाचल से दालमंडी पहुंचता है

- यहां मोबाइल रिपेयरिंग शॉप पर इन मोबाइल फोन की आईएमईआई चेंज होती है

- इसके लिए पुराने बंद या खराब मोबाइल की आईएमईआई का यूज किया जाता है

- यूएमडी डॉगल और स्पेशल सॉफ्टवेयर के जरिए ये पूरा खेल अंजाम दिया जाता है

- आईएमईआई बदले जाने के बाद चोरी या गुम मोबाइल को सर्विलांस पर ट्रेस नहीं किया जा सकता

- जिसके कारण ऐसे मोबाइल सिर्फ पुलिस फाइलों में ही कैद रह जाते हैं

सिर्फ शिकायत

- 500 से ज्यादा मोबाइल चोरी की शिकायतें पहुंची हैं पुलिस के पास

- 50 के आस-पास मोबाइल ही हो सके हैं बरामद

पुलिस रिकॉर्ड में नहीं है ये क्राइम

- मोबाइल चोरी या गुम होने का मुकदमा पुलिस दर्ज नहीं करती

- पुलिस सिर्फ एप्लीकेशन पर मोहर लगाकर एक कॉपी भुक्तभोगी को दे देती है

- जिसकी मदद से सिर्फ मोबाइल में लगे सिम को बंद कराया जाता है

- मुकदमा दर्ज न होने की दशा में मोबाइल बरामद होने के बाद भी वो भुक्तभोगी को नहीं मिल पाता

- पुलिस भी सिर्फ एप्लीकेशन को थाने तक रखती है और वो सर्विलांस तक पहुंचता ही नहीं