-पहले मोतियाबिंद बुजुर्गो को करती भी प्रभावित

-जीवन शैली और तनाव का बढ़ता स्तर मुख्य कारण

- आंखों का नियमित परीक्षण ही आंखों को करेगा सुरक्षित

GORAKHPUR: भारत में आंखों की रोशनी जाने का सबसे बड़ा कारण मोतियाबिंद है। 40 से 50 फीसदी लोग इसके शिकार है। बचाव के लिए सबसे जरूरी आंखों की समय से जांच और इलाज है। गोरखपुर के वरिष्ठ आई विशेषज्ञ डॉ। अनिल कुमार श्रीवास्तव की स्टडी में ये बातें सामने आई हैं। डॉ। अनिल ने बताया कि इसका मुख्य कारण धूम्रपान, जीवन शैली और तनाव का बढ़ता स्तर है। पश्चिमी देशों में बसने वाले लोगों के मुकाबले भारतीय लोगों में मोतियाबिंद काफी पहले विकसित हो जाता है। इसलिए यहां मोतियाबिंद की जांच पर विशेष जोर दिया जाता है। पारंपरिक तौर पर मोतियाबिंद बुजुर्गो को प्रभावित करने के लिए जाना जाता है। लेकिन अब डॉक्टर्स के सामने कम उम्र के लोगों के केस भी आ रहे हैं। वहीं सीएमओ कार्यालय से मिले आंकड़ों से ज्ञात होता है कि गोरखपुर में सबसे ज्यादा मोतियाबिंद के केस हैं। डॉक्टरों की मानें तो कम उम्र में मोतियाबिंद होने का मेन कारण स्मोकिंग है।

स्वाथ्य के लिए हानिकारक

ज्यादातर लोग मानते हैं कि स्मोकिंग यानी धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है क्योंकि इससे कैंसर और फेफड़े के दूसरे रोगों का खतरा होता है। मगर क्या आपको पता है कि धूम्रपान की लत आपको अंधा भी बना सकती है। जी हां, ज्यादा धूम्रपान का असर आंखों पर और शरीर के अन्य कई अंगों पर भी पड़ता है। आइए आपको बताते हैं सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद कैसे आपकी आंखों को प्रभावित कर रहे हैं।

ब्लड में बढ़ जाता है निकोटिन

सिगरेट, बीड़ी और गुटखे में निकोटिन युक्त तंबाकू होता है। निकोटिन का शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ता है। लंबे समय तक धूम्रपान करने वालों की आंखों में जलन की समस्या सामान्य है। ये इस बात का संकेत होता है कि सिगरेट का असर आपकी आंखों पर पड़ने लगा है ओर समय रहते इसे बंद नहीं किया गया तो रेटिना को नुकसान पहुंचा सकता है। हाई ब्लड प्रेशर और डयबिटीज के रोगियों को धूम्रपान बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए।

सेंकड हैंड स्मोकिंग भी है खतरनाक

कई बार आप सिगरेट नहीं पीते हैं। मगर आपके आस-पास मौजूद लोग कस लगाते हैं। ऐसे में सिगरेट न पीने के बावजूद इसका धुंआ आपके फेफड़ों में भी जाता हैं, जिससे आप भी उतने ही प्रभावित होते हैं। जितना कि सिगरेट पीने वाला व्यक्ति। इसलिए सेकंड हैंड स्मोकिंग भी खतरनाक हो सकती है।

कम हो जाती है आंखों की नमी

सिगरेट में मौजूद कई ऑक्सीडेंट्स आंखों को नुकसान पहुंचाते हैं। धूम्रपान करने वालों की आंखों को तंबाकू के जहरीले धुएं में मौजूद रसायनों से कंजक्टिवा के ग्लोबलेट सेल्स क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। जिनके कारण आंख की सतह पर नमी बनी रहती है। इसी तरह धुएं में मौजूद कार्बन पार्टिकल्स पलकों पर जमा हो सकते हैं। इसके कारण आंखों की नमी और गीलापन खत्म हो सकता है। अगर यह लंबे समय तक बना रहे तो आंखों में खुजली होती है और नजर में धुंधलापन हो सकता है। इससे आंखों की रोशनी भी जा सकती है।

मोतियाबिंद होने का अधिक खतरा

धूम्रपान के जरिए तंबाकू के संपर्क में आने वाले लोगों में दूसरों के मुकाबले मोतियाबिंद होने का खतरा अधिक होता है। कई अध्ययनों से पता चला है कि धूम्रपान करने वाले लोगों को दूसरों के मुकाबले मैक्यूलर डीजनरेशन का जोखित दोगुना रहता है।

जिले में मोतियाबिंद ऑपरेशन का आंकड़ा

वर्ष 2017 ऑपरेशन

मार्च 1179

अप्रैल 1350

मई 2301

जून 3102

जुलाई 2904

अगस्त 3703

सितंबर 4022

अक्टूबर 5968

नवंबर 8998

वर्ष 2018 ऑपरेशन

मार्च 1220

अप्रैल 1278

मई 2298

जून 2909

जुलाई 3002

अगस्त 4150

सितंबर 4995

अक्टूबर 6928

नवंबर 9610

वर्जन

एक रूझान में देखा गया कि मोतियाबिंद कम उम्र के लोगों को प्रभावित कर रहा है। इसलिए अब लोगों को आंखों का नियमित परीक्षण कराने के लिए प्रेरित करना शुरू कर दिया है। खास तौर पर 40 वर्ष या इससे अधिक उम्र के लोगों को। इसके अलावा मोतियाबिंद से पीडि़त लोगों के पास कंवेंशनल इंट्रा ऑक्यूलर लेंसों के अलावा एक्सटेंडेड रेंज ऑफ विजन इंट्रा ऑक्यूलर लेंस समेत आधुनिक लेंसों के विकल्प उपलब्ध हैं। ये ईआरवी आईओएल सभी दूरियों के लिए उच्च गुणवक्त्ता के विजन की श्रृंखला मुहैया कराता है। जिससे जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है और सर्जरी के बाद सुधारात्मक आईवियर की जरूरत कम हो जाती है। सर्जिकल सेवाओं का समय से इस्तेमाल करने से ज्यादातर लोगों को मोतियाबिंद के बाद देखने की सामान्य क्षमता वापस मिल सकती है।

डॉ। अनिल कुमार श्रीवास्तव, आई सर्जन