कुछ ने फांसी को मुंबई बम धमाकों के पीड़ितों के लिए न्याय बताया तो कुछ ने पूछा कि आख़िर याकूब को फांसी देकर देश को क्या मिला।

ट्विटर पर हिन्दुस्तान पावर के ग्रुप चीफ कमर्शियल ऑफिसर और सीईओ ललित जैन ने @ljain72 हैंडल से लिखा, ''शायद इस केस में मौत की सज़ा हो सकती है लेकिन आंख के बदले आंख की भावना मध्यकालीन है।''

वहीं jaishrisai1 हैंडल से शशि सक्सेना लिखती हैं, ''लोकतंत्र के इस अनियंत्रित बर्ताव ने याक़ूब के मामले को बॉलीवुड तमाशा बना दिया।''

'हार मत होने दीजिएगा'

'याक़ूब की फाँसी को तमाशा न बनाएँ'

हालांकि कई ऐसे भी थे जिन्होंने इस फांसी का समर्थन किया।

@sanguakshi हैंडल से संगम ने अपनी भावनाएं लिखीं, ''प्रिय सुप्रीम कोर्ट प्लीज़ एक बेटी की हार मत होने दीजिएगा, जिसकी यादों में आज भी अपने पिता का शव और उसकी रोती हुई मां का चेहरा घूमता रहता है।''

'याक़ूब की फाँसी को तमाशा न बनाएँ'

फिल्मकार और सोशल एक्टिविस्ट अशोक पंडित ने @ashokepandit ने लिखा, ''याक़ूब का समर्थन करने वालों की जांच पड़ताल करने की कोई ज़रूरत नहीं है, क्योंकि ये वो लोग हैं जो सीमा के पार बैठे अपने आकाओं के लिए काम कर रहे हैं।''

वहीं पत्रकार चित्रा नारायणन ने @ndcnn हैंडल से इन सब चीज़ों को मीडिया की नज़रों से दूर रखने की हिदायत दी। उन्होंने लिखा, ''यह सब चीज़ें अग़र होनी हैं तो उन्हें मीडिया और जनता की नज़रों से दूर रखना चाहिए। इसे तमाशा बनाए जाने की ज़रूरत नहीं है।''

वहीं कुछ ऐसे भी थे जिनकी प्रतिक्रिया मिलीजुली थी।

किरन कुमार ने @KiranKS हैंडल से प्रतिक्रिया दी, ''मैं किसी की मौत का जश्न नहीं मना रहा। मैं बस इतना चाहता हूं कि उस बम विस्फोट में जिन 250 परिवारों ने अपनों को खोया था उन्हें न्याय मिले। मुंबई को आख़िर न्याय मिला''।

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