आज फादर्स डे है। तो क्यों ना उस इंसान का दिन खास बनाया जाए, जो खुद दिनभर पुराने कपड़ों में भूखा-प्यासा कमरतोड़ मेहनत करता है। पर, घर लौटता है तो उसके हाथ में औलादों के लिए खाना और कपड़े जरूर होते हैं। भले ही उसे अपने हजार अरमान कुर्बान करने पड़ें, लेकिन बच्चों की छोटी से छोटी ख्वाहिश पूरी करता है। आई नेक्स्ट ने फादर्स डे बात की कुछ ऐसे बच्चों से जो कहते हैं 'पापा तुस्सी ग्रेट हो'।

LUCKNOW: 'मेरे पिता केवल कंपनी की रखवाली नहीं करते, वो पूरी उम्र मेरे सपनों की रखवाली भी करते रहे हैं। मेरे लिए उन्होंने हर दुख सहा और मुझे इसका अहसास भी नहीं होने दिया। वो ग्रेट हैं। अब मेरी बारी है उस सपने को पूरा करने की, जो केवल मेरा नहीं है.' इस बार हाईस्कूल के एग्जाम में 94 फीसदी अंक और चौथी प्लेस हासिल करने वाले प्रभात मिश्रा आईएस बनना चाहते हैं। प्रभात का कहान है कि मेरे पापा आज भी पुरानी साइकिल से कंपनी में गार्ड की नौकरी करने जाते हैं, लेकिन मुझे उन्होंने नई साइकिल लाकर दी है। वो चाहते हैं कि मैं स्कूल जाने में किसी भी हालात में लेट ना हूं।

अब बेटे का सपना ही मेरा है

आरडीएसओ कॉलोनी के पास रहने वाले प्राइवेट कंपनी में गार्ड जगदम्बा प्रसाद की रोजाना की जिंदगी में दुश्विारियों की कमी नहीं है। लेकिन, उनकी आंखों में बेटे के सपने की चमक है। और, मुश्किलों का हर अंधेरा इस चमक में फीका पड़ जाता है। वो कहते हैं कि मुझे वैसी जिंदगी नहीं मिली, जैसी मैं चाहता था। जगदम्बा प्रसाद अब अपने बेटे को वो जिंदगी देना चाहते हैं। वो कहते हैं कि बेटे का सपना ही मेरा सपना है।

दुनिया के सबसे अच्छे पापा हैं

बेटा प्रभात कहता है कि पापा साल में एक बार कपड़ा बनवाते हैं। मेरे लिए हर त्योहार, शादी, बर्थडे पर कपड़ा बनवाते हैं। खुद पुरानी साइकिल से चलते हैं, मेरे लिए नई साइकिल है। वो मेरी ख्वाहिश पूरी करते हैं। मुझे लगता है कि उनकी भी कुछ ख्वाहिशें होंगी पर वो हमें कभी बताते या जताते नहीं। मेरी एक इच्छा है कि आईएस बनूं। ये मेरा सपना है और पापा का भी। ये पूरा होगा तो शायद सभी की ख्वाहिशें पूरी हो जाएंगी। मैं अपने पापा को खुशी देना चाहता हूं।

'पापा ही मेरी जिंदगी हैं'

पापा ने मेरी पढ़ाई के लिए कर्ज लिया, खेत गिरवी रखा, दुनिया के ताने भी सहे, खुद की जेब में पैसे भले ना हों, लेकिन मेरी जेब कभी खाली नहीं रही। मुझे नहीं लगता कि दुनिया में कोई ऐसी चीज है, जो पापा मेरे लिए ना कर पाएं। पापा ही मेरी जिंदगी हैं। आईएस एग्जाम में अच्छी रैंक हासिल करने वाले कुलदीप द्विवेदी का कहना है कि अच्छी पढ़ाई करवा पाना पापा की इकोनॉमिकल कंडीशन के चलते आसान नहीं थी। लेकिन, हमें कभी इस बात का अहसास नहीं हो पाया। उन्होंने कहा कि तुम बस पढ़ो, खर्च की चिंता मत करो।

'पढ़ाओगे तो तुम कब पढ़ोगे'

कुलदीप ने बताया कि मेरे पापा सूर्यकांत द्विवेदी लोक निर्माण विभाग में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं। मैंने पापा से कई बार कहा कि पापा मैं ट्यूशन पढ़ा लेता हूं, बोझ थोड़ा कम हो जाएगा। पर, पापा हमेशा कहते कि तुम पढ़ाओगे तो खुद कब पढ़ोगे। तुम्हें अफसर बनना है एकदिन। चार साल पहले आईएस की तैयारी के लिए मैं दिल्ली आया। महीने का खर्च 12 हजार तक पहुंच गया। लेकिन, पापा ने कभी कमी नहीं आने दी। अहसास तक नहीं होने दिया कि किन हालात में मेरी जरूरतें पूरी हो रही हैं। उनका सपना पूरा करना ही मेरा मकसद है।

शिक्षा ही सबसे बड़ी पूंजी

पिता सूर्यकांत द्विवेदी कहते हैं कि गरीबी अभिशाप हो सकती है, लेकिन शिक्षा वरदान है। उन्होंने कहा कि मैं बच्चों को शिक्षा की पूंजी देना चाहता हूं, वो सबसे बड़ी पूंजी है। मैंने अपने सारे बेटों को पढ़ाया। कुलदीप आईएस बनना चाहता है, पढ़ाई में भी अच्छा है। उसे मंजिल तक पहुंचने में मुझे भी उसकी राह आसान बनानी है। भले ही मेरी कुछ ख्वाहिशें अधूरी रह जाएं, लेकिन उसकी राह में रोड़ा नहीं आना चाहिए।