542वां रैंक लाने वाले शुभम के पिता बक्सर में हैं किसान

RANCHI: आईआईटी के जेईई एडवांस का रिजल्ट डीक्लियर होते ही बिहार के बक्सर से लेकर झारखंड के रांची तक खुशी की लहर दौड़ गई। जेईई में रैंक भ्ब्ख् लाने वाले शुभम को जब उसके पिता ने बक्सर से रवाना किया था, तब ढेर सारे सपने संजोए थे। शुभम के पिता वृंद कुमार सिंह एक किसान हैं और मां उषा देवी हाउस वाइफ। दो बहन और एक भाई के इस परिवार में पिता ने तंगहाली में भी बच्चों को बेहतर शिक्षा दी। शुभम में पढ़ाई के प्रति गंभीरता को देखते हुए ही उसे नेतरहाट की परीक्षा दिलाई गई। एक बार में एडमिशन हो गया और शुभम का टैलेंट यहीं से उड़ान भरने लगा। शुभम बताते हैं कि नेतरहाट में साल ख्0क्फ् में रैंक वन रहा। वहीं आगे की पढ़ाई सिंदरी से की। दो साल पहले रांची के परसिस्टेंस एजुकेशन में एडमिशन लिया।

आखिरी भ्0 दिन इंस्टीट्यूट में ही बीते

शुभम के फैकल्टी कौशलेंद्र कुमार ने बताया कि उनके यहां ब्ख् स्टूडेंट्स ने एडमिशन लिया था, जिसमें अंतिम लक्ष्य क्फ् स्टूडेंट्स ही भेद पाए हैं। शुभम सारे स्टूडेंट्स में सबसे गंभीर और स्ट्रगल कर आगे निकला। शुभम के घर से हर महीने चार हजार रुपए आते थे। क्भ्00 रुपए खाने के, क्भ्00 रहने के और 7 से 8 सौ रुपए स्टेशनरी के लिए आते थे। बचते थे मात्र ख् से फ् सौ रुपए। बस इन्हीं चंद रुपए में शुभम अपना काम चलाता था। शुभम ने बताया कि पिछले दो साल में पीके और एक मूवी देखी, वो भी दोस्तों के बहुत कहने पर। सुबह आठ से रात के दस बजे तक पढ़ाई की रुटिन थी। एडवांस के पहले बचे अंतिम भ्0 दिन में इंस्टीच्यूट में ही दिन-रात गुजरने लगा। इंस्टीच्यूट में ही चटाई बिछा कर सोना और देर रात तक पढ़ाई करता। यही मेहनत आज रंग लाई। शुभम ने इस बीच फेसबुक और व्हाट्स एप्प से कोई दोस्ती नहीं रखी। न ही कंप्यूटर गेम्स की ओर देखा। बल्कि अपना पूरा समय रीविजन में लगाया। शुभम कहते हैं कि पिता ने उन्हें पढ़ाने के लिए दिन रात मेहनत किया है। अब आईआईटी बाम्बे में केमिकल ब्रांच में एडमिशन लेकर वो और बेहतर करना चाहते हैं, ताकि अपने मां-पिता को हर सुख दे सके।