बिहार के एक करोड़ लोगों के हस्ताक्षर वाले ज्ञापन में केंद्र सरकार से मांग की गई है कि इस राज्य को आर्थिक पिछड़ेपन से उबारने के लिए विशेष राज्य का दर्जा दिया जाय। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपे जाने वाले इस ज्ञापन के समर्थन में लगभग साल भर से बिहार में हस्ताक्षर जुटाए जा रहे थे।

राज्य के सत्ताधारी जनता दल युनायटेड (जदयू) द्वारा आयोजित इस बड़े अभियान से जुड़ा हुआ जत्था पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह के नेतृत्व में आगामी 10 जुलाई को पटना से दिल्ली के लिए रवाना होगा।

पुस्तकाकार जिल्दों में बंधे एक करोड़ से भी अधिक हस्ताक्षर युक्त ज्ञापन के ढेर को वाहनों पर लाद कर सड़क मार्ग से बक्सर, गाजीपुर, इलाहाबाद और आगरा होते हुए जंतर-मंतर(नई दिल्ली ) तक ले जाया जायेगा।

वहाँ 13 जुलाई को पार्टी अध्यक्ष शरद यादव ज्ञापन लेकर गये अपने दलीय जत्थे का स्वागत करेंगे और उसी दिन प्रधानमंत्री से मिल कर उन्हें ज्ञापन सौंपने की कोशिश की जाएगी। वैसे जदयू नेताओं के बीच यह शंका बनी हुई है कि प्रधानमंत्री इस ज्ञापन के साथ उन्हें मिलने का समय देंगे भी या नहीं।

इस आशंका को ख़ुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के उस बयान से बल मिला है, जिसमें उन्होंने कहा है, '' बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देना तो दूर, या इस मांग पर विचार करना तो दूर, प्रधानमंत्री ने मुझे इस बाबत अपनी बात तक रखने का समय नहीं दिया, जबकि मैंने इस विषय पर उनसे मिलने का औपचारिक अनुरोध-पत्र भी भेजा था.''

यह नाराज़गी नीतीश कुमार ने कई बार ज़ाहिर की है। उनका कहना है कि बिहार विधान मंडल के दोनों सदनों से इस मांग के समर्थन में सर्वदलीय और सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किये जाने के बावजूद इस मामले में कांग्रेस नीत केंद्र सरकार का उपेक्षापूर्ण रवैया बरक़रार है। उधर इस मांग का विरोध नहीं करते हुए भी राज्य के कांग्रेसी नेता इसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीतिक चाल देखते हैं।

उनका आरोप है कि इस सरकार के विकास संबंधी खोखले दावे और विफल हो रही योजनाओं से उत्पन्न जनाक्रोश का रुख़ केंद्र सरकार की तरफ़ मोड़ने के लिए नीतीश कुमार विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिये जाने वाला शोर मचा रहे हैं।

लेकिन जहांतक राज्य के आम लोगों की बात है, तो इस मुद्दे पर प्रायः सभी इस मांग के समर्थन में एकजुट होने लगे हैं। ख़ासकर उद्योग धंधे के लिए पूंजी निवेश को इस राज्य में आकर्षित करने का एकमात्र उपाय अब इसी विशेष राज्य वाले दर्जे की मांग में नज़र आ रहा है।

दरअसल ' स्पेशल स्टेटस ' वाली श्रेणी में जिस राज्य को शामिल कर लिया जाता है, वहाँ कोई कारखाना या उद्योग लगाने वालों को विभिन्न करों में भारी रियायत और केंद्र प्रायोजित योजनाओं में राज्य सरकार को बड़ी छूट मिल जाती है।

यही कारण है कि इस श्रेणी वाले प्रदेशों में पूंजी निवेश करने वालों की ख़ास दिलचस्पी होती है। देश के ग्यारह राज्य, यानी जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम, मणिपुर और सिक्किम को विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है।

वैसे आम तौर पर बिहारवासियों में फ़िलहाल यह उम्मीद या भरोसा उस हद तक नहीं है कि मौजूदा केंद्र सरकार यह मांग मान ही लेगी। लेकिन इस बाबत आवाज़ बुलंद करने की कुलबुलाहट यहाँ आम जनों में उभरती हुई दिखने लगी है।

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