10 अप्रैल: श्री पंचमी।

11 अप्रैल: सूर्य षष्ठी व्रत।

13 अप्रैल: महानिशा पूजा। श्री दुर्गाष्टमी।

14 अप्रैल: रामनवमी व्रत। चैत्र नवरात्रि समाप्त। वैशाखी।

15 अप्रैल: कामदा एकादशी व्रत स्मार्त।

16 अप्रैल: कामदा एकादशी व्रत वैष्णव।

निर्झरिणी

सुंदरता तब ही अच्छी लगती है, जब मन के भाव भी शुद्ध व पवित्र हों। आपके चेहरे पर मन के भाव ही झलकते हैं। — रामानुजाचार्य

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यथार्थ गीता

मात्रास्पर्शास्तु कौन्तैय शीतोष्णसुखदु:खदा:। आगमापायिनोनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।

हे कुंतीपुत्र, सुख-दुख और सर्दी-गर्मी को देनेवाली इंद्रियों और विषयों के संयोग तो अनित्य हैं, क्षणभंगुर हैं, इसलिए तू इनका त्याग कर। विषयों का संयोग न सदैव मिलेगा और न सदैव इंद्रियों में क्षमता ही रहेगी। इसलिए अर्जुन, तू इनका त्याग कर, सहन कर। वस्तुत: सर्दी-गर्मी, सुख-दुख, मान-अपमान को सहन करना एक योगी पर निर्भर करता है। यह हृदय-देश की लड़ाई का चित्रण है। बाहर युद्ध के लिए गीता नहीं कहती। यह क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का संघर्ष है, जिसमें आसुरी संपद का सर्वथा शमन कर परमात्मा में स्थिति दिलाकर दैवी संपद् भी शांत हो जाती है।