वास्तव में गणेश चतुर्थी एक समय पर व्यक्तिगत स्तर पर घर-घर में मनाई जाती थी, लेकिन अब इसे सार्वजनिक स्तर पर मनाया जाता है। अग्रेजों के शासन काल में गुलामी के दौरान समाज में अवसाद और सुस्ती आने लगी थी और स्वतंत्रता के लिए उम्मीद भी निराशा में बदल रही थी। तब, लोकमान्य तिलक जैसे नेताओं ने सामाजिक रूप से गणेश चतुर्थी मनाने पर जोर दिया, ताकि लोगों में खोया आत्मविश्वास फिर से जाग जाए। तभी से गणेश चतुर्थी का स्वरूप एक सामाजिक आयोजन में बदल गया। विश्वभर में कई तथ्य मिले हैं कि गणेश जी की पूजा प्राचीन काल से ही होती आई है। कई प्रकार की गणेश मूर्तियां इंडोनेशिया, मेक्सिको, रूस, बुल्गारिया और यूरोप के कई देशों में खुदाई के दौरान मिली हैं।

इस पर्व पर महसूस करते हैं दिव्यता
गणेश चतुर्थी वह पर्व है, जब आप महसूस करते हैं कि आप दिव्यता के ही अंश हैं और आपकी सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी। जब भी जीवन में आप दुखी होते हैं, आप स्वयं को छोटा और असहाय महसूस करते हैं और आप महसूस करते हैं कि आपमें इस परेशानी से लड़ने की शक्ति बची ही नहीं है, ऐसे समय में आप श्री गणेश को याद करें। श्री गणेश को धूम्रवर्ण कहा गया है, अर्थात धुएं के समान रंग वाले। वास्तव में हमारी समस्याएं धुएं के समान ही होती हैं, जब स्थितियां स्पष्ट न हों, आप नहीं देख पा रहे हों कि आपके आगे क्या है, तब आप श्री गणेश को अपने भीतर महसूस करें, तो आपको स्वत: ही साहस मिलता है और सारे विघ्नों से लड़ने की शक्ति प्राप्त होती है।

जीवन के उतार चढ़ाव में समता बनाए रखने की मिलती है हिम्मत
श्री गणेश को बुद्धि के देवता भी कहा गया है। यदि आप सोचते हैं कि आप बहुत बुद्धिमान हैं, तो आप गलत सोच रहे होते हैं। वास्तव में आपको जीवन के उतार-चढ़ाव में समता बनाए रखने के लिए और अधिक बुद्धि की आवश्यकता पड़ती है। श्री गणेश संपूर्णता के भी देव हैं। सिद्धि का अर्थ है, संपूर्णता। बुद्धि का अर्थ है, हमारे निर्णय लेने एवम् सोचने की क्षमता। यदि हमें प्रार्थना करने का मौका मिले, तो हमें अपनी
बुद्धि और संपूर्णता के लिए ही प्रार्थना करनी चाहिये।

सिद्धि का क्या अर्थ है
सिद्धि का अर्थ है, इच्छा उठने से पहले ही पूर्ण हो जाए। कई बार हम इच्छा करते हैं और जैसा हम चाहते हैं, वैसा होता नहीं है। तो समझना चाहिये कि यहां सिद्धि की कमी है। सिद्धि वही है, जो समय पर मिल जाए या समय से पहले मिल जाए और यह सब हमारी नियमित और अनुशासित प्रार्थनाओं के माध्यम से ही हो सकता है। श्री गणेश देवताओं में सर्वप्रथम देवता हैं। शरीर में गणेश जी की उपस्थिति के स्थान को मूलाधार चक्र कहा गया है। वह दिव्यता के द्वार हैं, जब हम उनकी आराधना करते हैं, तो हमारे अंदर उनके गुण विकसित होने लगते हैं।

-श्री श्री रविशंकर

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