चुनाव पूर्व आए सर्वेक्षणों में भाजपा नेता वसुंधरा राजे को काफ़ी बढ़ा-चढ़ाक़र मुख्यमंत्री बताया जा रहा था, लेकिन पार्टी उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया में अब हालात ये हो गए हैं कि जयपुर जैसे गढ़ में ही कई-कई बाग़ी ताल ठोक रहे हैं.

ये बाग़ी उनके सत्ता में आने के दावों के लिए चुनौती बन रहे हैं. विद्रोहियों के मामले में कांग्रेस की तस्वीर भी कुछ ज़्यादा अच्छी नहीं है. उसे भी कई जगह विद्रोहियों का सामना करना पड़ रहा है.

कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों ही दलों के नेताओं ने चुनावी सियासत को काफ़ी नफ़ासत से शुरू किया था, लेकिन आख़िरी समय में सारा खेल बदमज़ा हो रहा है.

संगमा की पार्टी चुनौती

वसुंधरा राजे ने सोमवार को जब झालरापाटन से नामांकन किया, तो साफ़ कहा कि कई जगह कई पार्टियां उम्मीदवार उतार रही हैं. ये सभी कांग्रेस की बी, सी, डी या ई टीम हैं और इनके उम्मीदवारों के टिकट खुद कांग्रेस ही तय कर रही है.

भारतीय जनता पार्टी में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सुमित्रा सिंह, जीतराम चौधरी, पूर्व मंत्री मदन दिलावर, राजेंद्र गहलोत, मृदुरेखा चौधरी, सांगसिंह भाटी, नवीन पिलानिया जैसे कई नेताओं ने नामांकन दाख़िल कर दिए हैं तो कांग्रेस के बड़े नेता हरेंद्र मिर्धा, विधायक रीटा चौधरी, राज्य मंत्री डॉ. राजकुमार शर्मा जैसे नेताओं ने बग़ावत की है.

जब बाग़ी पड़े थे भाजपा पर भारी

राजस्थान: बाग़ी बिगाड़ेंगे किसका खेल-2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के 35 से ज़्यादा बाग़ी चुनाव मैदान में उतर गए थे और इनमें से 20 से ज़्यादा ने भाजपा को सीटें हरवाईं.

-इसी वजह से भाजपा का खाता 78 पर सिमट गया और कांग्रेस 96 पर जा पहुंची. लेकिन बसपा के छह विधायकों और निर्दलीय उम्मीदवारों के सहारे अशोक गहलोत कांग्रेस की सरकार बनाने में सफल रहे.

-इस बार भाजपा को सर्वे एजेंसियां 105 से 120 सीटें दे रही हैं. लेकिन उसके बाग़ी काफ़ी बड़ी तादाद में हैं और सियासी फ़लक पर कमज़ोर बताई जा रही कांग्रेस के लिए ये बाग़ी ही उम्मीद की किरण हैं.

-राज्य में मंगलवार को नामांकन का आख़िरी दिन रहा और अब तक 2704 लोगों ने नामांकन दाख़िल किए हैं.

लेकिन दोनों दलों को राजस्थान में एक और बड़ी चुनौती से जूझना पड़ रहा है. यह चुनौती है पीए संगमा की पार्टी की. पीए संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी का झंडा राजस्थान में आदिवासी नेता डॉ. किरोड़ीसिंह मीणा ने उठा रखा है.

उनके आवास पर दोनों ही दलों के विद्रोहियों की भीड़ है और हर कोई उनसे टिकट चाहता है.

वे भाजपा के लिए ज़्यादा बड़ी चुनौती बन गए हैं, क्योंकि वे मूलत: भाजपा नेता हैं और भाजपा के नाराज़ नेता भी अंदरूनी तौर पर उन्हें समर्थन दे रहे हैं. भाजपा और कांग्रेस में आंतरिक कलह काफ़ी ज़्यादा है.

दोनों दलों को इस चुनौती से जूझना पड़ा रहा है. दोनों दलों की शुरुआती सफलता को इस रुझान ने पंगु कर दिया है.

बाग़ियों को मनाएंगे

कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. चंद्रभान का कहना है कि वे ऐसे अंसतुष्ट नेताओं को मनाएंगे, समझाएंगे और कोशिश करेंगे कि वे लोग मैदान से हट जाएं. उन्हें भरोसा है कि पार्टी असंतुष्टों और विद्रोहियों पर पार पा लेगी.

भाजपा प्रवक्ता कैलाश भट्ट मानते हैं कि वसुंधरा राजे के संपर्क करने के बाद असंतुष्टों के तेवर काफी नरम हुए हैं, लेकिन ये तेवर कितने नर्म हुए हैं. इसका पता इसी से लग जाता है कि भाजपा के पूर्व मंत्री मानिकचंद सुराणा ने लूणकरणसर से उम्मीदवारी घोषित कर दी है.

राजस्थान: बाग़ी बिगाड़ेंगे किसका खेल

अशोक गहलोत को अपनी जीत के लिए भाजपा के बाग़ियों से उम्मीदें हैं.

वे पार्टी के गंभीर नेताओं में रहे हैं लेकिन सुराणा का कहना है कि पार्टी ने उनके साथ दग़ा किया है और ऐसे अनजान लोगों को टिकट दे दिए हैं, जिनका राजनीति या पार्टी के लिए कोई योगदान नहीं है.

बग़ावत की यह बयार शेखावाटी, ढुंढाड़, मेवाड़, मारवाड़, हाड़ौती सहित सभी इलाक़ों में समान रूप से बह रही है. मगर डॉ. किरोड़ीलाल मीणा जैसे संघनिष्ठ नेताओं के खुले तौर पर कूद पड़ने से भाजपा को ज़्यादा धक्का लगा है.

आलोचना

पिछले दिनों पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष रहे पूर्व सांसद रामदास अग्रवाल ने तो यहां तक सवाल उठाया कि जयपुर जैसे राजधानी वाले भाजपा के गढ़ वाले इलाक़े में सभी बाहरी प्रत्याशी उतार दिए हैं. अगर बाहरी लोगों को ही इस तरह टिकट दिए जाते रहे, तो पार्टी के निष्ठावान और स्थानीय नेता कहां जाएंगे?

बग़ावत के इस भय के कारण कांग्रेस ने दाग़ी मंत्री महीपाल मदेरणा, मलखान सिंह और बाबूलाल नागर के रिश्तेदारों को चुनाव में उम्मीदवार बनाने का फ़ैसला करके अपने आपको आलोचनाओं का निशाना बना लिया है.

कुल मिलाकर एक ओर जब भाजपा सत्ता में वापसी का सपना देख रही है, तब विद्रोहियों ने उसकी नींद उड़ा दी है, वहीं कांग्रेस में टिकट बंटवारे पर सवाल उठ रहे हैं.

कांग्रेस के केंद्रीय नेता रहे रामनिवास मिर्धा के बेटे और पूर्व मंत्री हरेंद्र मिर्धा तक के टिकट काट दिए गए हैं, जो अब चुनावी मैदान में पूरे दमखम से ताल ठोंक रहे हैं. यानी सत्ता काक सपना तोड़ने के लिए कलह का बिगुल काफ़ी ज़ोर-शोर से बज रहा है.

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