इन धमाकों में कम से कम 10 लोग मारे गए थे। इन्ही धमाकों के सिलसिले में सरबजीत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। पाकिस्तान में सरबजीत सिंह को मनजीत सिंह के नाम से गिरफ्तार किया गया।

अपने बचाव में सरबजीत ने तर्क दिया कि वो निर्दोष हैं और भारत के तरन तारन के किसान हैं। गलती से उन्होंने सीमा पार की और पाकिस्तान पहुंच गए। सरबजीत पर जासूसी के आरोप लगे। इसके बाद उन पर लाहौर की एक अदालत में मुक़दमा चला और पहली बार 1991 में न्यायाधीश ने उनको मौत की सज़ा सुना दी गई। निचली अदालत की ये सज़ा हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी बहाल रखी।

निर्दोष किसान

सरबजीत के परिवारवाले भी कहते रहे कि वो एक निर्दोष किसान हैं और उनको भूल से कोई और समझकर पकड़ लिया गया है। इसके बाद सरबजीत सिंह पाकिस्तान की अलग-अलग अदालतों के दरवाजे खटखटाते रहे, लेकिन निचली अदालत की ये सजा हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी बहाल रखी।

सरबजीत ने सुप्रीम कोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी जिसे 2006 में खारिज कर दिया गया। मार्च 2008 को पाकिस्तान की समाचार एजेंसियों के हवाले से खबर आई कि सरबजीत की फांसी तारीख तय हो गई है और उसे 1 अप्रैल को फांसी दे दी जाएगी। पर 19 मार्च को ये खबर आई कि 30 अप्रैल तक के लिए सरबजीत की फांसी पर रोक लगा दी गई है।

भारत के विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी ने संसद में ये बयान दिया कि पाकिस्तान में क़ैद भारतीय बंदी सरबजीत सिंह की फाँसी 30 अप्रैल तक टाल दी गई है। इसके बाद इसी साल पाकिस्तान में मानवाधिकार मामलों के पूर्व मंत्री अंसार बर्नी ने सरबजीत राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ के पास एक दया याचिका भेजी। इस याचिका में अंसार बर्नी ने अपील की कि सरबजीत की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया जाए या उन्हें रिहा कर दिया जाए।

गलत पहचान का मामला

पिछले साल 2011 में पाक में कैद सरबजीत सिंह का मामला एक बार फिर पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट में जा पहुंचा। सरबजीत के पाकिस्तानी वकील ओवैश शेख ने असली आरोपी मनजीत सिंह के खिलाफ जुटाए तमाम सबूत पेश कर मामला फिर से खोलने की अपील की। वकील ओवैश शेख ने कोर्ट में दावा किया कि उनका मुवक्किल सरबजीत बेगुनाह है और वो मनजीत सिंह के किए की सजा काट रहा है।

ओवैश शेख का कहना था सरबजीत को सन 1990 में मई-जून में कराची बम धमाकों का अभियुक्त बनाया गया है, जबकि वास्तविकता में 27 जुलाई 1990 को दर्ज एफआईआर में मनजीत सिंह को इन धमाकों का अभियुक्त बताया गया है। पाकिस्तान का कहना था कि सरबजीत ही मनजीत सिंह है जिसने बम धमाकों को अंजाम दिया था।

दया की गुहार

इसके बाद से लगातार पाकिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्ता अंसार बर्नी उनकी बहन दलबीर कौर सरबजीत सिंह की रिहाई के लिए लगातार प्रयास करते रहे। इस दौरान दलबीर कौर अपने भाई से मिलने पाकिस्तान की कोटलखपत जेल भी गईं और सरबजीत की रिहाई के लिए भारत में मुहिम चलाती रहीं और पाकिस्तान सरकार से दया की गुहार लगाती रहीं।

मई 2012 में भारत में पाकिस्तानी बंदी खलील चिश्ती को पाकिस्तान यात्रा की उच्चतम न्यायालय से इजाजत मिलने के बाद प्रेस परिषद अध्यक्ष न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू ने पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी से सरबजीत सिंह को रिहा करने की अपील की।

अपने पत्र में उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश काटजू ने कहा कि इस मामले में एक महत्वपूर्ण साक्ष्य सरबजीत का कथित इकबालिया बयान था, जिसमें उन्होंने हमलों की जिम्मेदारी ली थी लेकिन सभी जानते हैं कि हमारे देशों में कैसे (यातना से) इकबालिया बयान हासिल किया जाता है।

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