13 करोड़ लोग देश में मानसिक रोगों का शिकार

2 करोड़ मनोरोगी उत्तर प्रदेश में

10 वर्षो में तेजी से बढ़े मनोरोगी

25 फीसद 15 वर्ष की उम्र में ही हो रहे शिकार

-काम का दबाव, परिवार को समय न दे पाने से बढ़ रहा डिप्रेशन

LUCKNOW:

काम का बोझ, बढ़ते वर्किंग ऑवर और समय पर अवकाश न मिलने से लोग डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं। इसका असर व्यक्ति की कार्यक्षमता पर पड़ रहा है। पांच हजार वर्किंग लोगों पर किए गए सर्वे से बात सामने आई है। इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी के 71वें वार्षिक सम्मेलन की पूर्व संध्या पर यह बातें हैदराबाद से आए डॉ। मृगेश वैष्णव ने कहीं। इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में होने वाले इस सम्मेलन में दुनिया भर से 3 हजार से अधिक मनोचिकित्सक और मनोवैज्ञानिक हिस्सा लेने आ रहे हैं।

अनुकूल माहौल से बेहतर रिजल्ट

डॉ। मृगेश ने बताया कि काम के बढ़ते बोझ से सर्वाधिक प्रभावित वर्किंग कपल हैं। नियोक्ता सोचता है कि अधिक समय काम कराकर रिजल्ट अधिक मिलेगा जबकि होता उल्टा है। करीब 50 फीसद लोग वर्किंग स्ट्रेस और डिप्रेशन से जूझ रहे हैं। डॉ। मृगेश ने बताया कि उन्होंने कंपनियों को कुछ सुझाव दिए थे जिसे अमल में लाने पर कर्मचारियों की प्रोडक्टिविटी बढ़ गई। उन्होंने बताया कि काम करने के घंटे हफ्ते में 35 से 40 घंटे से अधिक नहीं होने चाहिए। उन्होंने बताया कि कर्मचारियों को हफ्ते में छह दिन की बजाए पांच दिन ही वर्किंग डेज करने चाहिए। इस मौके पर डॉ। अजीत भिडे, डॉ। विनय कुमार, डॉ। ओम प्रकाश, डॉ। मुकेश, डॉ। गौतम सहाय, केजीएमयू के डॉ। पीके दलाल, डॉ। हरजीत सिंह, नूर मंजिल से डॉ। हेमंत नायडू आदि मौजूद रहे।

युवा सबसे अधिक प्रभावित

केजीएमयू के डॉ। आदर्श त्रिपाठी ने बताया कि डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार मानसिक समस्याओं में 40 फीसद 25 वर्ष तक के युवाओं में हो रही हैं। जबकि करीब 25 परसेंट को इन समस्याओं की शुरुआत 15 वर्ष की ही उम्र में हो रही है।

ब्रेकअप भी है जिम्मेदार

डॉ। आदर्श त्रिपाठी ने बताया कि युवावस्था में ब्रेकअप भी डिप्रेशन और एंजाइटी के कारण है। केजीएमयू में आने वाले 20 से 30 फीसद युवाओं के डिप्रेशन का यही कारण है। पिछले 10 वर्षो में ये समस्याएं तेजी से बढ़ी है।

डिप्रेशन के लक्षण

- उदासी और निराशा की भावना

- लगातार थकान का बने रहना

- आनंद की चीजों में रुचि खत्म होना

- सुसाइड की इच्छा होना

- नींद और भूख में लगातार कमी का होना

मोबाइल का हो सीमित प्रयोग

इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी के प्रेसीडेंट डॉ। अजीत भिड़े ने बताया कि मोबाइल या कंप्यूटर का सीमित प्रयोग होना चाहिए। इससे बच्चों और बड़ों में मानसिक समस्याएं हो रही हैं। लोग डिप्रेशन और अवसाद के शिकार हो रहे हैं। रोजाना एक घंटे या हफ्ते भर में 12-14 घंटे से अधिक मोबाइल का प्रयोग खतरनाक है।

13 करोड़ बीमारियों की चपेट में

केजीएमयू के साइकियाट्री विभाग के एचओडी प्रो। पीके दलाल ने बताया कि देश में 10 करोड़ लोग अपने जीवन काल में और 13 करोड़ से अधिक लोग इस समय मानसिक रोगों से ग्रसित हैं। यूपी में भी करीब दो करोड़ को यह समस्या है। जबकि डॉक्टर बहुत कम हैं।

डिमेंशिया का कराए इलाज

डॉ। हरजीत सिंह ने बताया कि वृद्धावस्था में डिमेंशिया की समस्या की समय से पहचान हो जाए तो इलाज आसान होता है। मरीज को बोलने में दिक्कत, भूलने और नींद न आने जैसी समस्याएं होती हैं तो एक बार काउंसलिंग करा लेनी चाहिए।