- Universities और कई colleges में छात्रसंघ चुनाव के दौरान उड़ रही हैं लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों की धज्जियां

- Campus से बाहर प्रचार-प्रसार और जुलूस पर रोक का नहीं है कोई असर, हजारों रुपये खर्च कर unipoles पर प्रचार कर रहे हैं छात्रनेता

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प्रदेश में सत्ता बदली तो कई फैसले भी बदले और इन्ही फैसलों में एक था यूनिवर्सिटीज और कॉलेजों में फिर से छात्रसंघ चुनाव कराने का फैसला लेकिन एक शर्त के साथ ये चुनाव कराने की परमीशन सभी कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज को दी गई। ये शर्त थी चुनाव लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के अनुरूप ही होंगे लेकिन लगता है कि छात्रनेताओं के रसूख में लिंगदोह साहब कहीं गुम हो गए हैं। तभी तो अपने शहर बनारस में छात्रसंघ चुनाव के नजदीक आते ही लिंगदोह के नियम और कानून की हर ओर धज्जियां उड़ रही हैं। पूरा शहर बैनर पोस्टर्स और होर्डिग्स से पाट दिया गया है लेकिन न ही लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों पर कोई ध्यान देने वाला है और न ही छात्रनेताओं पर कोई रोक लगाने वाला। जिसका खामियाजा शहर और शहर के लोगों को भुगतना पड़ रहा है।

कैंपस के बाहर क्यों है चमकान?

ये सवाल बड़ा है कि छात्रनेता अपनी चमकान कॉलेज और यूनिवर्सिटी कैंपस के बाहर क्यों दे रहे हैं? क्योंकि उनके वोटर तो सिर्फ कैंपस में हैं और वोट भी अंदर ही पड़ने हैं। नियम भी यही कहता है कि छात्रसंघ चुनाव के मद्देनजर चुनाव प्रचार सिर्फ और सिर्फ कैंपस में होगा। इसके बाद भी शहर के हर यूनीपोल, बिजली के खंभो और स्ट्रीट लाइट पोल्स पर छात्रनेताओं का कब्जा है और लाखों रुपये खर्च कर ये कैंपस के बाहर चमकान देने में लगे हैं।

ये नहीं कर सकते कैंडिडेट

- किसी भी उम्मीदवार को छपे हुए पोस्टर्स या किसी अन्य छपी हुई सामग्री का प्रचार के लिए उपयोग नहीं करना है

- उम्मीदवार कॉलेज के बाहर रैलियां, जनसभा या प्रचार सामग्री वितरित नहीं कर सकते

- प्रचार में लाउड स्पीकर, वाहनों और जानवरों का उपयोग भी नहीं होगा

ऐसे करना है प्रचार

- उम्मीदवार केवल हाथ से बने पोस्टर्स का ही उपयोग कर सकते हैं

- वो भी कॉलेज परिसर में उन्हीं जगहों पर जो पूर्व में ही कॉलेज प्रशासन की ओर से अधिसूचित की जाएंगी

- चुनाव के दौरान कॉलेज परिसर में उम्मीदवार रैलियां निकाल सकते हैं और जनसभा कर सकते हैं।

- लेकिन प्रचार या रैली कॉलेज में चलने वाली कक्षाओं तथा दूसरी शैक्षणिक और सह शैक्षणिक व्यवस्था में दिक्कत न करें

खर्च की सीमा भी तय

- छात्रसंघ चुनाव में एक कैंडिडेट अधिकतम भ्000 रुपये खर्च कर सकता है

- चुनाव परिणाम घोषित होने के दो दिन बाद कैंडिडेट का खर्च का ब्यौरा कॉलेज या यूनिवर्सिटी प्रशासन को देना होता है

- निर्धारित व्यय सीमा से अधिक खर्च किए जाने पर उम्मीदवारी रद की जा सकती है

- राजनैतिक दलों से रुपयों की आवक नहीं होनी है

चुनाव लड़ने के लिए ये पात्रता है जरूरी

- क्7 से ख्ख् वर्ष के मध्य की आयु के छात्र चुनाव लड़ सकते हैं

- चार वर्षीय पाठ्यक्रम में क्7 से ख्फ् वर्ष एवं पांच वर्षीय पाठ्यक्रम में क्7 से ख्ब् वर्ष तक विद्यार्थी चुनाव लड़ सकते हैं

- पीजी छात्रों के लिए चुनाव लड़ने की अधिकतम आयु सीमा ख्भ् वर्ष है

- शोध छात्रों के चुनाव लड़ने की अधिकतम आयु सीमा ख्8 वर्ष निर्धारित है

- उम्मीदवार का पूर्व में कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होना चाहिए

- उसकी उपस्थिति भी कैंपस में 7भ् प्रतिशत होनी जरूरी है

उड़ रहा है नियम का मजाक

रोक के बाद भी कैंपस के बाहर प्रचार जारी है। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, हरिश्चन्द्र कॉलेज, यूपी कॉलेज में हर कैंडिडेट प्रचार में लाखों रुपये फूंक रहे हैं। यूनीपोल्स पर लगे होर्डिग्स के लिए कैंडिडेट ब्भ् से भ्भ् हजार रुपये एक सप्ताह तक के पे कर रहे हैं। जबकि पैम्फलेट्स और अन्य चुनाव प्रचार सामग्री के लिए भी लाखों रुपये एक एक कैंडिडेट खर्च कर रहा है। वहीं वोटर्स को रिझाने के लिए समर्थकों को महंगे होटलों में खाना खिलाना, ब्रांडेड कपड़े, जूते और सामान दिलाने में भी कैंडिडेट पीछे नहीं हैं।

छात्रसंघ चुनावों के लिए कॉलेज और यूनिवर्सिटी प्रशासन संग जल्द ही बैठक होगी और नियम और कानून के आधार पर ही चुनाव सम्पन्न हो इस पर पूरा ध्यान होगा।

विंध्यवासिनी राय, एडीएम सिटी

कैंपस के बाहर हो रहे प्रचार-प्रसार को रोकने की जिम्मेदारी कॉलेज या यूनिवर्सिटी प्रशासन की नहीं है। कैंपस में नियमों की अनदेखी न हो इसका पूरा ध्यान रखा जा रहा है।

शम्भूनाथ जायसवाल, चुनाव अधिकारी