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मौजूदा हालातों में निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव करवाना बड़ा चैलेंज

vikash.gupta@inext.co.in

ALLAHABAD: इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में छात्रसंघ चुनाव की दुंदुभी बज गई है। लेकिन मौजूदा हालातों में पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव करवाना आसान नहीं होगा। वाइस चांसलर प्रो। रतन लाल हांगलू के भी यह बड़ा चैलेंज है क्योंकि उनके कार्यकाल का यह पहला चुनाव होगा।

पूर्व का इलेक्शन है गवाह

बताते चलें कि इविवि में पिछले कुछ समय से लगातार एकतरफा निर्णय किए जाने और एक वर्ग विशेष के लोगों को उपकृत किए जाने के आरोप लग रहे हैं। वैसे भी छात्रसंघ का चुनाव नियम-कानून से ऊपर जाकर खुद के हितों को साधे जाने को लेकर बदनाम रहा है। इसकी गवाही 2012 से 2015 के बीच हुआ इलेक्शन है। कोई भी इलेक्शन ऐसा नहीं रहा। जिसमें पक्षपात के आरोप न लगे हों। छात्रों ने खुले तौर पर चुनावी प्रक्रिया में शामिल वरिष्ठ और अनुभवी शिक्षकों पर गंभीर आरोप मढ़े हैं। इसे लेकर मामला हाईकोर्ट की चौखट तक भी पहुंचा।

चेहरे बता देंगे क्या है मंशा

जानकार साफ सुथरी चुनावी प्रक्रिया के लिए सबसे अहम नामांकन पत्रों की स्क्रीनिंग को मान रहे हैं। इसमें सबसे अहम फार्मो की स्क्रीनिंग के लिए बनाई गई कमेटी का रोल होता है। अव्वल तो यह देखना होगा कि स्क्रीनिंग कमेटी में एक भी ऐसा चेहरा न हो जिसके नाम को लेकर ही फसाद हो सकता है। दूसरा अहम बिन्दु फार्मो की स्क्रीनिंग का मुद्दा है। जिसमें दो तरीके की चीजें इम्पार्टेट होंगी। एक तो इविवि प्रशासन लिंगदोह समिति की सिफारिशों को लेकर जागरुक रहे। जिसमें यह बताया गया है कि कौन-कौन चुनाव नहीं लड़ सकता?

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हाईकोर्ट ने खारिज किया था निर्वाचन

इविवि प्रशासन की यह जिम्मेदारी होगी कि वह अपने लेवल पर यह पता लगाए कि जो भी प्रत्याशी चुनाव लड़ने जा रहे हैं। उनका अभ्यर्थन नियमों के आलोक में सही है अथवा नहीं। दूसरा प्रत्याशियों के नाम पर आने वाली आपत्तियों का भी ईमानदारी से निस्तारण हो। बता दें कि वर्ष 2012 के चुनाव में हद दर्जे की हुई बेइमानी के चलते अध्यक्ष पक्ष के प्रत्याशी दिनेश सिंह यादव चुनाव जीतने में सफल रहे थे। बाद में इनके प्रतिद्वंदी अभिषेक सिंह सोनू ने उनकी जीत को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चैलेंज किया था। जिसके बाद परीक्षा में फेल होने के बाद भी चुनाव लड़ने और जीतने में सफल रहे दिनेश का निर्वाचन हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था।

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पूरी टीम को देना पड़ा था इस्तीफा

इस मामले में हाईकोर्ट ने उस समय चुनाव करवाने में शामिल रहे 16 शिक्षकों के खिलाफ काफी सख्त टिप्पणी की थी। ऐसे ही हालात वर्ष 2015 के चुनाव में भी बने। जब चुनाव के लिए अर्ह न पाए जाने पर अध्यक्ष पद के प्रत्याशी रजनीश सिंह ऋशु का नामांकन चुनाव से एक दिन पहले खारिज कर दिया गया था। बाद में नाटकीय घटनाक्रम के तहत रजनीश को चुनाव लड़ने की हरी झंडी भी दे दी गई। हालांकि, रजनीश अपने निकटतम प्रतिद्वंदी ऋचा सिंह से महज 11 वोटों से चुनाव हार गए थे। बाद में रजनीश ने आरोप लगाया कि उनका पर्चा खारिज होने से छवि खराब हुई और वे चुनाव हारे। उस समय चुनाव को लेकर ऐसा बखेड़ा हुआ था कि इलेक्शन की रात्रि को पूरी स्क्रीनिंग कमेटी, एडवाइजरी कमेटी समेत चुनाव अधिकारी प्रो। आरएस पांडेय तक ने इस्तीफा दे दिया था। तब कार्यवाहक कुलपति रहे प्रो। ए। सत्यनारायण ने पूरी रात की मेहनत के बाद जैसे तैसे चुनाव करवाने की घोषणा की थी। हालात ये बन गए थे कि लॉ एंड आर्डर को लेकर पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों में भी हड़कम्प मच गया था।

मैं निर्विवाद चुनाव करवाने को लेकर प्रतिबद्ध हूं। चुनाव पूरी निष्पक्षता, पारदर्शिता और लिंगदोह समिति की सिफारिशों के अनुरूप ही होंगे। हमारी टीम चुनाव करवाने को लेकर तैयार हो चुकी है।

-प्रो.आरके सिंह

चुनाव अधिकारी