सीमित जॉब ऑप्च्यूर्निटी के कारण संस्कृत पढ़ने में स्टूडेंट्स की रुचि कम

24,821 लोगों ने संस्कृत को अपनी मातृभाषा बताया है साल 2011 में

14,135 लोगों ने संस्कृत को मातृभाषा बताया था साल 2001 में

22 भाषाओं में संस्कृत सबसे आखिरी नंबर पर आती है मातृभाषा के रूप में

3,062 लोगों ने ही अपनी मातृभाषा संस्कृत बताई है यूपी में

1,697 पुरुष और 1,365 महिलाओं ने संस्कृत को मातृभाषा बताया है।

1,151 माध्यमिक संस्कृत विद्यालय हैं प्रदेश में

973 अनुदानित माध्यमिक संस्कृत विद्यालय हैं यूपी में

80 प्रतिशत छात्र पुरोहित कर्म कराकर ही चलाते हैं जीविका

20 सीटें भी सीसीएसयू में एमए संस्कृत की नहीं भर पाती हैं

25 फीसदी छात्र भी एमए संस्कृत में नहीं लेते एडमिशन

Meerut। योगी सरकार संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास कर रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर संस्कृत भाषा को लेकर स्टूडेंट्स का जुड़ाव कम होता नजर आ रहा है। हालत यह है कि सीसीएस यूनिवर्सिटी में संस्कृत विषय से एमए की निर्धारित 20 सीटें भी नहीं भर पाती हैं। जानकारों की मानें तो संस्कृत में सीमित जॉब ऑप्च्यूर्निटी के कारण भी स्टूडेंट्स का संस्कृत भाषा को लेकर क्रेज कम है। अगर सरकार इस ओर पहल करे तो स्टूडेंट्स का रुझान बढ़ेगा। वहीं दूसरी ओर शहर के संस्कृत महाविद्यालय की स्थिति कुछ खास नहीं है। यहां गाहे-बगाहे छात्रों की संख्या तो बढ़ रही है लेकिन भविष्य में जॉब न मिलने से कारण ये छात्र सिर्फ पुरोहित कर्म कराने तक ही सीमित रह जाते हैं।

एस्ट्रोलॉजर बनने की चाह

हालांकि, इन दिनों और अन्य संचार माध्यमों की बढ़ती सक्रियता के कारण एस्ट्रोलॉजी यानि ज्योतिष विज्ञान की ओर लोगों का रुझान बढ़ रहा है। जिससे कुछ स्टूडेंट्स शॉर्ट टर्म कोर्स करके एस्ट्रोलॉजी सीख रहे हैं और टीवी और अन्य संचार माध्यमों में एस्ट्रोलॉजी में अपनी नई राह खोज रहे हैं। लेकिन सच ये भी है कि ऐसे स्टूडेंट्स भी संस्कृत भाषा को लेकर कोई खास रुझान या लगाव नहीं रखते हैं।

यूनिवर्सिटी में सीटें खाली

गौरतलब है कि सीसीएस यूनिवर्सिटी में संस्कृत से एमए की हर साल 20 सीटें निर्धारित हैं। बीते चार साल में स्टूडेंट्स के इंट्रेस्ट न लेने से एमए की सीटें खाली रही हैं। हालांकि, इस साल एमए के एडमिशन चल रहे है, जिसमें 20 सीटों में अब तक मात्र सात ही एडमिशन हो पाए हैं। वहीं सात साल पहले यूनिवर्सिटी में संस्कृत से एमफिल की 10 सीटें होती थी। बीच में किसी कारणवश एमफिल को बंद किया गया। इस साल फिर से एमफिल शुरु हो गई है, जिसकी मात्र पांच सीटें है, यानि सीटें कम हो गई है। एचओडी को मिलाकर विभाग में चार शिक्षक है।

ये कहते है यूनिवर्सिटी के आंकड़े

साल कोर्स सीटें एडमिशन

2016 एमए संस्कृत 20 5

2017 एमए संस्कृत 20 6

2018 एमए संस्कृत 20 5

2019 एमए संस्कृत 20 7

2019 एमफिल 5 5

संख्या तो बढ़ी, पर समस्या कम नहीं

शहर के विल्वेश्वर नाथ संस्कृत महाविद्यालय में बीते चार साल में छात्रों की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन छात्रों को ज्यादा जॉब ऑप्च्यूर्निटी नहीं मिल सकी हैं। गौरतलब है कि चार साल पहले यानि साल 2015 में हॉस्टल में रहकर संस्कृत की पढ़ाई करने वाले छात्र 70 से 80 थे। जो अब 120 के आसपास हो गए हैं। इनमें 80 फीसदी स्टूडेंट्स मध्यमा के है जो इंटर कर रहे है। वहीं कुल संख्या इस साल 300 स्टूडेंट्स के करीब है, जो चार साल पहले 150 थी।

टीचर्स की कमी

बताया जा रहा है कि साल 1969 में महाविद्यालय में 11 पद स्वीकृत हुए थे। साल 1993 में इनमें से दो प्रवक्ताओं की नियुक्ति हुई थी। इसके बाद 2016 में फिर से भर्तियां खुली और 7 शिक्षकों की नियुक्ति की गई। कुल मिलाकर विद्यालय में आठ शिक्षक ही हैं। तीन पद अभी भी खाली है, न तो कोई भर्ती निकल रही है और न ही किसी टीचर की नियुक्ति की गई है।

पुरोहित कर्म सीखने तक सीमित

संस्कृत महाविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों की एक स्थिति यह भी है कि जॉब के मौके सीमित होने से अधिकतर छात्र समाज में पुरोहित कर्म यानि कर्मकांड आदि कराते हैं। जानकारों की मानें तो तकरीबन 80 फीसदी छात्र सिर्फ पुरोहित कर्म सीखकर ही जीवकोपार्जन करते हैं। वहीं बाकी 20 प्रतिशत ही छात्र ही सुरक्षा बलों में धर्मगुरू, टीचर या अन्य किसी नौकरी में जा पाते हैं। जॉब के सीमित मौके होने के कारण भी छात्र संस्कृत जैसे सब्जेक्ट से दूरी बना रहे हैं।

ऑप्शनल सब्जेक्ट है संस्कृत

प्रदेश के प्राइमरी और जूनियर कक्षाओं में भी संस्कृत ऑप्शनल सब्जेक्ट है। इस कारण संस्कृत पढ़ने वाले छात्रों की संख्या कम होती चली गई। छठीं से आठवीं क्लास में हिंदी के साथ ही संस्कृत को मर्ज किया गया है। वहीं सीबीएसई स्कूलों में संस्कृत सब्जेक्ट ऑप्शनल है। ऐसे में स्टूडेंट्स फ्रेंच व हिंदी को ही प्राथमिकता दे रहे हैं, 10 स्कूलों में भी महज 10 फीसदी छात्र ही संस्कृत से पढ़ाई करते हैं।

क्या कहते है एक्सपर्ट

संस्कृत को लेकर खास कदम उठाए जाने की जरूरत है। संस्कृत के प्रतिभाशाली छात्र अपनी पहचान बना रहे हैं, लेकिन संस्कृत विद्यालय खंडहर हो चुके हैं। बेहद दुखद है। संस्कृत पढ़ने के बाद भी योग्य विद्यार्थियों को स्थान नही मिल पा रहा है।

पंडित चिंतामणि जोशी, पूर्व प्रिंसिपल, विल्वेश्वरनाथ मंदिर संस्कृत महाविद्यालय

ये बात सच है कि संस्कृत में दूसरे विषयों के मुकाबले जॉब ऑप्च्यूर्निटी कम हैं, इसमें सरकार का दोष है। हालांकि, योगी सरकार प्रयास कर रही है। उम्मीद है कि धीरे-धीरे संस्कृत के प्रति बच्चों का रुझान फिर से बढ़ेगा। वहीं एस्ट्रोलॉजर बनने की चाह में भी लोग अब संस्कृत पढ़ रहे हैं। यह भी अच्छा संकेत है।

रोशन झा, आचार्य

ये केवल संस्कृत की बात नही है, एमए लेवल पर किसी भी विषय में खास जॉब्स गर्वमेंट सेक्टर में नही है, या तो बीएड हो या फिर एमएड तो टीचर्स की जॉब्स लग सकती है, इसके अलावा प्रतियोगिता की तैयारियां कर सकते है।

डॉ। वाचस्पति मिश्रा, एचओडी, संस्कृत विभाग, सीसीएसयू

पब्लिक स्कूलों में बच्चे संस्कृत को कम पढ़ना पसंद करते हैं। इसका मुख्य कारण है कि बच्चों को संस्कृत टफ लैग्वेज लगती है। जिसके कारण बच्चे दूसरे सब्जेक्ट को प्रेफर करते हैं। इसलिए बहुत ही कम स्कूलों में संस्कृत पढ़ाई जाती है।

कविता भूटानी, हिंदी टीचर, भाई जोगा सिंह पब्लिक स्कूल

ऐसा नहीं है संस्कृत का क्रेज आज भी है, संस्कृत सदाबहार भाषा है, रहीं बात एस्ट्रोलॉजी की तो उससे ही संस्कृत की महत्ता है। हां ये कह सकते है सरकार ने काफी नियुक्तियों को रोका है। स्टूडेंट्स तो पढ़ रहे है लेकिन शास्त्री, आचार्य से संस्कृत में एमए, पीएचडी करने वालों को उनका उपयुक्त स्थान नहीं मिल रहा है, जो सरकार का दोष है।

डॉ। दिनेश दत्त शर्मा, प्रिंसिपल, विल्वेश्वर नाथ मंदिर महाविद्यालय मेरठ