- बोर्ड एग्जाम नजदीक आने से बच्चों में बढ़ा डिप्रेशन

- हॉस्पिटल में एग्जामिनेशन फोबिया की आ रही कम्प्लेन

अगले महीने से शुरू हो रहे बोर्ड एग्जाम की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। एग्जाम का समय नजदीक आने के साथ ही बच्चे तनाव में आने लगे हैं। वे एग्जामिनेशन फोबिया के शिकार हो रहे हैं। इससे बच्चे डिप्रेशन में आ रहे हैं। शहर के मंडलीय हॉस्पिटल के मनोरोग विभाग में एग्जामिनेशन फोबिया की शिकायतें आनी शुरू हो गई है। हैरानी की बात ये है कि इसमें शहर के साथ ग्रामीण क्षेत्र से भी बच्चे पहुंच रहे हैं। एग्जाम में अच्छे नंबर की यहां पैरेंट्स की बच्चों से अपेक्षाएं बढ़ रही है। कोई भी अपने बच्चे को किसी दूसरे के बच्चे से पीछे देखना नहीं चाहता। यही वजह है कि बच्चे पेरेंट्स के दबाव के चलते डिप्रेसन में आ रहे हैं।

दबाव में तनाव ले रहा जन्म

सीबीएसई और आईसीएसई की परीक्षाओं की डेट नजदीक आने से बच्चे तैयारियों में जुट तो गए हैं लेकिन उन पर बढ़ रहे पैरेंट्स के दबाव से तनाव भी जन्म ले रहा है। बच्चों में उपजे इसी तनाव को दूर करने के लिए मंडलीय अस्पताल के मनोरोग विभाग में ऐसे बच्चों की काउंसलिंग की जा रही है। यहां के काउंसलर्स की मानें तो पिछले 15 दिन से विभाग में रोजाना सात से आठ ऐसे बच्चे आ रहे हैं जो एग्जाम को लेकर काफी डरे हुए हैं। इन बच्चों के ऊपर पेरेंट्स का इतना ज्यादा दबाव है कि ये डिप्रेसन का शिकार हो रहे है।

पैरेंट्स मांगे मोर

एक्सपर्ट की मानें तो अभिभावक अपनी परेशानियों के बदले बच्चों से ढेरों अपेक्षाएं लगा लेते हैं। बिना यह जाने कि बच्चों की भी अपनी क्षमता और योग्यता होती है। क्लास के सभी बच्चों का मानसिक स्तर समान नहीं हो सकता। ऐसे में एग्जाम के दौरान बच्चों पर अपनी अपेक्षाएं न थोपें।

अब तक दो सौ कम्प्लेन

मनोचिकित्सक डॉ। रविन्द्र कुशवाहा की मानें तो एग्जाम के समय इस तरह के मामले बढ़ जाते हैं। इधर एक माह में अब तक करीब 100 से ज्यादा केस आ चुके हैं। ज्यादातर बच्चों में परीक्षाओं से डर और तनाव की शिकायतें मिली है। इसके लिए यहां बच्चों की काउंसलिंग कराई जा रही है।

ये हैं लक्षण

- बच्चा थोड़ी-थोड़ी देर में उठकर इधर-उधर टहलने लगे।

- पढ़ाई के दौरान बच्चे का ध्यान कही और रहे

- पैरेंट्स की ओर से कोई काम बताने का इंतजार करें।

-किसी और से काम करने के लिए कहा जाए और वे खुद करने को तैयार हो जाए

- थोड़ी-थोड़ी देर पर सब्जेक्ट चेंज कर किताब पढ़ने लगे

-बार-बार मोबाइल या गैजेट्रस का इस्तेमाल कर रहा हो

- असफल होने की बात करना

पैरेंट्स रखें ध्यान

-बच्चों से उचित उम्मीद रखें। उन पर ज्यादा नंबर लाने का प्रेशर न डालें।

-बच्चों की तुलना दूसरे बच्चों से न करें। सबकी अपनी क्षमता होती है।

-बच्चों से हर वक्त पढ़ाई और सिलेबस की ही बातें न करें। इस वक्त फ्यूचर प्लान, करियर आदि की बात भी न करें।

-ऐसे वक्त में बच्चे को इमोशनल सपोर्ट जरूरी है। उससे उसकी पुरानी नाकामियों की बात न करें।

-बच्चे से यह कहने की बजाय कि मैंने तुमसे ऐसे कहा था या कितने नंबर लाओगे की बजाय उससे कहें कि हम हमेशा तुम्हारे साथ हैं।

-बच्चों को जैसे सही लगे, उसी हिसाब से पढ़ने दें।

-बच्चा अगर देर तक पढ़ना चाहता है तो कोई एक पैरंट उसके साथ जागे। इससे उसका हौसला बढ़ता है।

-------

पैरेंट्स अपनी इच्छाओं और अपेक्षाओं को बच्चों से न कहें। अगर वह दबाव मुक्त होकर पढ़ाई करेंगे तो अपनी क्षमता से बढ़कर प्रदर्शन कर सकते है। स्कूल प्रशासन की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे बच्चों की काउंसलिंग करे।

डॉ। रविन्द्र कुशवाहा, मनोचिकित्सक, मंडलीय अस्पताल