- बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे स्कूली वाहन चालक

- वेडनसडे को स्कूल से लौटते समय ऑटो से गिर घायल हुआ एक स्टूडेंट

बरेली : स्कूली वाहनों में बच्चों की सेफ्टी को लेकर तो नियम बना दिए गए, बावजूद इसके हजारों बच्चे अब भी खतरों से खेलकर स्कूल पहुंच रहे हैं। टेंपो, ई-रिक्शा और सामान्य रिक्शों में बच्चों को लाद कर स्कूल ले जाया जा रहा है। ऐसे में बच्चों के साथ कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है, लेकिन इसे लेकर जिम्मेदार गंभीर नहीं हैं। थ्री सीटर टेंपो में 15 से 20 बच्चे तक बैठाए जा रहे हैं। वेडनसडे को कुतुबखाना मार्केट के पास स्कूल से लौटते समय एक स्टूडेंटस चलते ऑटो से सड़क पर गिरकर चोटिल हो गया। थर्सडे को दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने स्कूली वाहनों का रियल्टी चेक किया। जिसमें वाहनों की हकीकत समाने आई।

ऑटो में नहीं मिले जाल

स्कूल की बस और वैन के अलावा बड़ी संख्या में बच्चे प्राइवेट ऑटो से स्कूल जाते और वापस आते हैं। ज्यादातर ऑटो में बच्चों की सेफ्टी के लिए जाल तक नहीं लगाए गए हैं, ऐसे में तेज झटका लगने पर बच्चे ऑटो से बाहर गिर सकते हैं। इतना ही नहीं इन ऑटो के पीछे न तो स्कूल वाहन लिखा है और न ही ऑटो ड्राइवर का नाम और मोबाइल नंबर लिखा होता है। यही हाल ई-रिक्शा का भी है। लेकिन इन ऑटो वालों पर न तो ट्रैफिक पुलिस का कोई शिकंजा है और न ही आरटीओ का।

सेफ्टी से पेरेंट्स कर रहे समझौता

बच्चों की सेफ्टी को लेकर पेरेंट्स भी समझौता कर रहे हैं। पैसा बचाने और डेली बच्चों को स्कूल पहुंचाने और वापस लाने के झंझट से बचने के लिए पेरेंट्स बच्चों को ऑटो, ई-रिक्शा, साधारण रिक्शा से स्कूल भेज रहे हैं।

नए नियमों के बावजूद महकमा खामोश

नए नियमों में ऑटो, टैम्पो, बस में स्कूली बच्चों को ले जाना अवैध है। इसके अलावा जिला स्कूल वाहन सुरक्षा समिति और विद्यालय स्तर पर भी परिवहन सुरक्षा समिति बनाई गई। बावजूद इसके बच्चों की जान से खुलेआम खिलवाड़ हो रहा है और जिम्मेदार आंखें बंद किए बैठे हैं।

स्कूली वाहनों में ये होना जरूरी

। स्कूल वाहन बस आदि के रजिस्ट्रेशन के दौरान ड्राइवर का रजिस्ट्रेशन बेहद जरूरी है ।

2. ड्राइवर के पास पांच साल पुराना ड्राइविंग लाइसेंस होना चाहिए ।

3. सेफ्टी के लिए वाहन में अनुभवी मेल और फीमेल सहायक होना जरूरी है।

4. स्पीड गवर्नर के साथ अलार्म जरूर ताकि वाहन तेज रफ्तार से न चले ।

5. वाहनों से स्कूल आने-जाने वाले बच्चों की लिस्ट चस्पा होनी चाहिए ।

वर्जन

गलियों में घर होने की वजह से बस वहां तक नहीं पहुंच पाती है जिस वजह से बेटे को टैम्पो में स्कूल भेजना पड़ता है।

मुमताज, पेरेंट

ऑटो ड्राइवर अकेले बच्चे को स्कूल ले जाने से मना कर देते हैं। मजबूरन कई बच्चों के साथ बेटी को स्कूल भेजना पड़ता है।

विपिन, परेंट

बच्चे स्कूल के लिए लेट न हो जाए। इसलिए वाहनों को स्पीड में चलाना पड़ता है।

ओमवीर, ई-रिक्शा ड्राइवर

पेरेंट्स एक बच्चे का हजार रूपए देते हैं। कम बच्चे ले जाएंगे तो ऑटो के फ्यूल का खर्च भी न हीं निकल पाएगा।

सलीम, ई- रिक्शा ड्राइवर

गाड़ी को कोटा देना के लिए सावधान बच्चे है इसलिए नहीं लिखा है। इसके अलावा सवारियों को भी बैठना पड़ता है।

वीरपाल, ऑटो ड्राइवर

स्कूली बच्चों को ऑटो- टैंपो से लेकर जाना नियम के विरूद्ध है। ऐसे वाहनों को चिन्हित कर उनके खिलाफ कार्रवाई होगी।

आरपी सिंह, आरटीओ