RANCHI : 14 मामलों में वांटेड सब जोनल कमांडर संतोष सिंह उर्फ संतोष भोक्ता ने शुक्रवार को डीजीपी डीके पांडेय के समक्ष सरेंडर कर दिया। उसपर सरकार ने पांच लाख का ईनाम घोषित कर रखा था। मौके पर संतोष को पचास हजार रुपए नकद व पांच लाख रुपए का चेक सौंपा गया। उसके सरेंडर करने से नक्सलियों से जुड़े कई अहम खुलासे हो सकते हैं। संतोष के सरेंडर के साथ ही इस साल अबतक सौ नक्सली सरेंडर कर चुके हैं। यह झारखंड पुलिस के सरेंडर पॉलिसी का ही कहीं न कहीं नतीजा है कि नक्सली अब मुख्यधारा में लौट रहे हैं।

2009 में बना था नक्सली

संतोष भोक्ता सिमडेगा जिले के कोलेबिरा थाना क्षेत्र के सरदारटोली टुटीकेल का रहने वाला है। वह 2009 में माओवादी संगठन में शामिल हुआ था। एरिया कमांडर मनोज नागेशिया उसे अपने साथ ले गया था। बाद में दस्ते में सब-जोनल कमांडर का पद सौंपा गया था। पिछले सात सालों में उसने सिमडेगा और आसपास के इलाकों में कई नक्सली घटनाओं को अंजाम दिया था। उसके खिलाफ विभिन्न थानों में 14 मामले दर्ज हैं।

सरेंडर करने वाले नक्सलियों की सेंचुरी

डीजीपी डीके पांडेय ने कहा कि संतोष के सरेंडर करने के साथ इस साल नक्सलियों के सरेंडर करने की सेंचुरी पूरी हो चुकी है। राज्य सरकार के नई दिशा ऑपरेशन का ही नतीजा है कि नक्सली मुख्यधारा में लौट रहे हैं। उन्होंने कहा कि 2017 तक झारखंड से नक्सलियों का खात्मा हो जाएगा। इस मौके पर एडीजी अजय भटनागर, सीआईडी एडीजी अजय कुमार सिंह, एडीजी अनिल पाल्टा आईजी आरके मल्लिक और सिमडेगा के एसपी राजीव रंजन मौजूद थे।

भटक गए थे, परिवार ने वापस लौटाया

डीजीपी के समक्ष सरेंडर करने के बाद माओवादी संतोष भोक्ता ने कहा कि वह भटककर नक्सली संगठन में चला गया था। परिजनों की प्रेरणा ससे अब मुख्यधारा में लौट आए हैं। उसने बताया कि संगठन का अब कोई सिद्धांत नहीं रह गया है। बड़े नक्सली नेता लेवी के पैसे से मौज-मस्ती करते हैं। अपने बच्चों को नामचीन कॉन्वेट स्कूल में पढ़ाते हैं। शहरों में फ्लैट खरीद रखा है। इतना ही नहीं, वे संगठन में अत्याचार और लूट का खेल चल रहा है। महिलाओं की इज्जत लूटी जाती है।