- सौ साल में लुप्त हो जाएंगी चार हजार भाषाएं

- आर्य कन्या डिग्री कॉलेज में अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में बोले वक्ता

ALLAHABAD: भाषाओं का जीवन खतरे में है। यही हाल रहा तो आने वाले सौ वर्षो में करीब चार हजार भाषाएं लुप्त हो जाएंगी। यह देश, समाज व संस्कृति के लिए बड़ा झटका होगा। शुक्रवार को आर्यकन्या डिग्री कालेज में शुरू हुई दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में वक्ताओं ने कुछ ऐसी ही चिंता व्यक्त की। जुगमन्दरदास अग्रवाल लोकहित ट्रस्ट एवं एसआरईआई फाइनेन्स लिमिटेड के सहयोग से हिन्दी भाषा और साहित्य की वैश्विक स्थिति विषय पर आयोजित इस संगोष्ठी में कई वक्ता पार्टिसिपेट कर रहे हैं।

बाजार के युग में भाषा महत्वपूर्ण

इस अवसर पर प्राचार्या डॉ। रीता पुरवार ने कहा कि बाजार के युग में विदेशी विनिवेश और भूमंडलीकरण के कारण सभी देश आपस में सांस्कृतिक और व्यावसायिक तौर पर मिल रहे हैं। इसमें भाषा का बड़ा योगदान है। विशिष्ट अतिथि शिकागो यूनिवर्सिटी अमेरिका से आए प्रो। राज शाह ने कहा कि भाषाएं तो बदलती रहीं हैं और बदलती रहेंगी। लगभग ब्000 भाषायें हैं जिनमें आधी भ्0 से क्00 साल में लुप्त हो जाएंगी।

हिन्दी मेरे लिए संस्कार

इससे पहले उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि प्रतिष्ठित कवि एवं साहित्यकार मारीशस से आए प्रो। धनपाल हीरामन ने कहा कि हिन्दी मेरी न मातृ भाषा है न राष्ट्र भाषा, हिन्दी मेरे लिए संस्कार है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो। मुश्ताक अली ने कहा कि चाइना और अंग्रेजी भाषा के साथ विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा हिन्दी है।

संवेदना से बचेगा साहित्य

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो। राजेन्द्र कुमार ने कहा कि साहित्य को केवल संवेदना द्वारा ही बचाया जा सकता है। कार्यक्रम का संचालन हिन्दी विभाग की डॉ। कल्पना वर्मा ने किया। इस दौरान हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता सुरेश चन्द्र वर्मा, डॉ। राजेश श्रीवास्तव, विशिष्ट अतिथि टोकियो यूनिवर्सिटी ऑफ फारेन स्टडीज जापान के प्रो। सुरेश ऋतुपर्ण, डॉ। मधुरिमा वर्मा, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी बर्कले के प्रो। वेद प्रकाश बटुक, जीडी अग्रवाल, आरसी अग्रवाल आदि मौजूद रहे।