आई टॉक--

देहरादून: विधानसभा चुनाव में पार्टी के चेहरे को लेकर बीजेपी के भीतर बेचैनी है। बीजेपी के दिग्गजों में एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ मची है। टांग खिंचाई भी खूब हो रही है। इन स्थितियों के बीच पूर्व सीएम और हरिद्वार सांसद डॉ। रमेश पोखरियाल निशंक की कोशिश उम्रदराज और वरिष्ठ नेताओं से आगे निकलने की है। बीजेपी की त्रिमूर्तियों में वे बीसी खंडूरी और भगत सिंह कोश्यारी जैसे उम्रदराज नेताओं के साथ खड़े नहीं दिखना चाहते। वजह साफ है। मोदी-शाह जिस तरह युवा चेहरों को तरजीह दे रहे हैं, निशंक उस पैमाने पर खुद को फिट दिखाना चाहते हैं, ताकि सीएम पद के लिए उनकी दावेदारी बनी रहे। आई नेक्स्ट से एक्सक्लूसिव बातचीत में डॉ। रमेश पोखरियाल से किए गए इसी सियासत से जुड़े बेवाक सवाल।

-हरीश रावत जैसे नेता को बीजेपी की तरफ से निशंक टक्कर दे सकते हैं। इस बात को किस तरह से लेते हैं।

-देखिए, मैं बहुत गरीब परिवार से राजनीति में आया हूं। मुझे पढ़ाई के लिए कई कई किलोमीटर जाना पड़ता था। ये जनता ही थी, जिसने यहां तक पहुंचाया है। जो भी जिम्मेदारी मिली, मैंने उसे निभाने की पूरी कोशिश की है। कई मोर्चो पर जन अपेक्षाओं पर खरा भी साबित हुआ हूं। मैं लोगों का शुक्रगुजार हूं जो वे इस तरह से सोचते हैं।

-मगर आपकी पार्टी आपको आगे करने में हिचकती हुई दिखाई देती है। कहीं-कहीं आपकी उपेक्षा भी दिखाई देती है। क्या वजह मानते हैं।

-उपेक्षा जैसी कोई बात नहीं है। पार्टी ने मुझे बहुत दिया है। पार्टी ने जहां मेरी भूमिका सुनिश्चित की, वहां पर ईमानदारी से काम करने की कोशिश की है, रिजल्ट देने की कोशिश की है। चाहे फिर यूपी के जमाने में पर्वतीय विकास मंत्री का मामला हो या फिर वित्त, पेयजल, स्वास्थ्य मंत्री से होते हुए मुख्यमंत्री बनने तक की बात रही हो। आज भी जैसी भूमिका पार्टी हाईकमान तय करेगा, उसी के अनुरूप काम करूंगा।

-आपको बीजेपी की त्रिमूर्ति में शामिल किया जाता है। खंडूरी, कोश्यारी जैसे नेताओं से तुलना की जाती है। किस तरह से लेते हैं इसे आप?

-खंडूरी जी और कोश्यारी जी के सामने मैं बच्चा हूं। मेरा और उनका कोई मेल नहीं है। तुलना बेमानी है। पूर्व सीएम होने के नाते अक्सर लोग ऐसा कह देते हैं, लेकिन मैं त्रिमूर्ति में खुद को शामिल नहीं मानता। वे मेरे वरिष्ठ हैं। उनके मुकाबले मैं नई पीढ़ी का नेता हूं।

-खंडूरी जी के उम्रदराज होने के कारण बीजेपी को कितना नुकसान हो रहा है?

-देखिए, खंडूरी जी हमारे बेहद सम्मानित नेता हैं। उनका मार्गदर्शन हमेशा पार्टी को चाहिए। ये ही स्थिति भगत सिंह कोश्यारी जी के संबंध में भी है।

-कोश्यारी जी ने 2019 में संन्यास लेने का ऐलान किया है। आपकी क्या प्रतिक्रिया है।

-मैंने पहले ही कहा है कि भगतदा का मार्गदर्शन हमारे लिए बहुत जरूरी है।

-एक व्यक्ति, एक पद को लेकर बीजेपी के भीतर मंथन चल रहा है। बडे़ नेताओं के बयान भी आए हैं।

-कई नेताओं ने ऐसी बात कही है। खंडूरी जी, त्रिवेंद्र जीऔर भी कई नेता हैं जो ये बात कह रहे हैं। वैसे, खुद अजय भट्ट जी को भी इससे इनकार कहां हैं। पार्टी हाईकमान के सामने सारी स्थिति है। पार्टी हित में जो भी निर्णय लिया जाना होगा, हाईकमान लेगा।

-उत्तराखंड की राजनीति में क्षेत्रवाद हमेशा हावी रहा है। गढ़वाल-कुमाऊं की सियासत कुछ ज्यादा ही होने लगी है। क्या मानते हैं?

-क्षेत्र के विकास से जुड़ी एक भावना हमेशा से राजनीति में मौजूद रही है। आप जरा याद कीजिए, उस जमाने को जब स्वर्गीय एचएन बहुगुणा ने गढ़वाल से उपचुनाव लड़ा था और इंदिरा गांधी की तमाम कोशिशों के बावजूद जीत हासिल की थी। तब पूरा गढ़वाल एक हो गया था इंदिरा सरकार को झुकाने के लिए। क्या ऐसी चीज को भी आप क्षेत्रवाद कहेंगे। लोग बस अपने क्षेत्र का विकास चाहते हैं।

-बीजेपी में पहले सीएम पद के लिए गिने-चुने चेहरे थे, अब भरमार हो गई है। सतपाल महाराज, विजय बहुगुणा, हरक सिंह रावत जैसे कई नेता आ गए हैं। क्या चुनाव में दिक्कत पेश नहीं आएगी।

-कोई दिक्कत नहीं है। बीजेपी का परिवार उत्तराखंड में ही नहीं, पूरे देश में बड़ा हो रहा है। अपने में सभी को ढालने में पार्टी सक्षम है।