- स्टेट की यूनिवर्सिटी और डिग्री कॉलेजों के शिक्षक हो गए लामबंद

- डिमोशन की खबर से शिक्षक सड़क पर उतरने को मजबूर

LUCKNOW: स्टेट की यूनिवर्सिटी और डिग्री कॉलेजों के शिक्षक डिमोशन की खबर से लामबंद हो गए हैं। शिक्षकों का कहना है कि शासन और यूजीसी की गलतियों का खामियाजा शिक्षक नहीं भुगतेंगे। इसमें शिक्षकों की कोई गलती नहीं है। शासन को यह निर्णय वापस लेना होगा और अगर ऐसा होता है तो स्टेट के शिक्षक सड़क पर उतर कर आंदोलन को मजबूर होंगे। ऐसे में पूरी जिम्मेदारी स्टेट गवर्नमेंट की होगी।

परिक्षा का कर देंगे बहिष्कार

लुआक्टा के अध्यक्ष मनोज पांडेय ने कहा कि अगर किसी एक शिक्षक के साथ भी यह अन्याय हुआ तो वह परीक्षा का बहिष्कार कर देंगे। उन्होंने कहा कि तीस जून ख्0क्0 का शासनादेश भी सरकार ने तीन दिसम्बर ख्0क्फ् को लागू किया है। इसलिए उन्होंने मांग की है कि प्रमोशन का रेगुलेशन ख्0क्0 नहीं ख्0क्फ् से लागू होना चाहिए। ख्008 का रेगुलेशन तो अधिकारियों की गलती थी। इसका खामियाजा शिक्षकों को भुगतने का तो सवाल ही नहीं उठता।

जल्द लेना होगा निर्णय

सरकार को इस बारे में जल्द ही कोई निर्णय लेना होगा, वरना इसके परिणाम गंभीर होंगे। वहीं लखनऊ यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विनोद सिंह ने कहा कि इस मामले में जब शिक्षकों की कोई गलती नहीं है। इसलिए गवर्नमेंट इसके लिए शिक्षकों को सजा नहीं दे सकती। अगर गवर्नमेंट ऐसा करती है तो शिक्षक आंदोलन को मजबूर होगा।

यह है मामला

शिक्षकों के करियर एडवांसमेंट स्कीम 'सीएएस' को पुराने नियम के तहत प्रमोट किया गया था। जबकि यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन का साफ निर्देश था कि शिक्षकों का प्रमोशन फ्क् दिसंबर, ख्008 के नियम के तहत हो। तत्कालीन बसपा सरकार ने यूजीसी की ओर से जारी की गई तिथि यानी ख्0क्0 से लागू कर दिया। इसके तहत शिक्षकों को प्रमोशन दे दिए गए। यूजीसी की नाफरमानी क्ख्वीं पंचवर्षीय योजना में रूसा के तहत मिलने वाले ग्रंाट पर संकट के बादल छा गए, जिसे सही करने की सुध अब सरकार को आई है।