तीजन बाई ने कहा-लोकल लैग्वेंज और बॉडी लैग्वेंज के मेल से सुनने और सुनाने दोनों में आता है मजा

- पटना से पेरिस तक सिर्फ तालियां बटोर लेती हूं

पद्मश्री एवं पद्मभूषण सहित सैकड़ों सम्मानों से सम्मानित पंडवानी सिंगर तीजन बाई जब बात करती हैं तो उसी अंदाज में जिस अंदाज में वो महाभारत की सुनाती हैं। मंच हो या घर, तीजन बाई के अंदाज में कोई खास अंतर नहीं दिखता है। किसी भी सवाल पर वो बेबाकी से बोलने में देर नहीं करती और जब सवाल समझ नहीं पाती तो अपने असिस्टेंट से छत्तीसगढ़ी लैग्वेंज में समझाने के लिए कहती। और फिर उसी टोन में जवाब देती हैं। गांधी मैदान में देशज की ओर से आयोजित कल्चरल इवेंट की शुरुआत करने आयीं तीजन बाई ने कई सब्जेक्ट्स पर अपनी राय रखी और बड़ी बेबाकी से कई मैसेज भी दे डालीं। आइए शेयर करते हैं उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश।

- पंडवानी गायिकी में आप पहली और आखिरी तो नहीं बन जाएंगी?

एक दम नहीं होगा, पंडवानी और तीजन बाई को जब तक लोग याद रख सकेंगे, तब तक उन्हें पंडवानी सुनायी देगी। तीजन बाई ने अब तक ख्क्ख् ऐसे बच्चे तैयार किए हैं, जो पंडवानी गायिकी को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। इसमें खास बात यह है कि पेरिस से भी पांच बच्चे यहां आकर पंडवानी सीखे हैं।

-आपने अपने बच्चे को भी इस गायिकी में उतारा है?

नहीं, पंडवानी गायिकी साधना है। मेरे बच्चे नहीं कर पा रहे थे। उन्हें गाना पसंद नहीं था, इसलिए मैंने कोई जिद नहीं की और जिनके अंदर जो जज्बा था। उसी को लेकर मैं सामने आयी। गायिकी और कल्चरल पर फैमिली ही उत्तराधिकारी नहीं हो सकता है। हर किसी को आगे आने की जरूरत है।

-यह ट्रेनिंग गुरु-शिष्य परंपरा के अनुरूप दी गयी है?

हां यह आसान गायकी नहीं है। बल्कि पूरी की पूरी कल्चरल को एडॉप्ट कर लेना है। ऐसे में प्रोपर ट्रेनिंग जरूरी है। इसमें बॉडी लैग्वेंज और लोकल लैग्वेंज दोनों पर पकड़ होना जरूरी है। थोड़ी सी भी ढि़लाई बर्दाश्त नहीं की जा सकती है, इसलिए आंखों के सामने रखकर ही पूरी ट्रेनिंग की बात की जा सकती है।

-आपके मंच पर सात पुरुष ही क्यों होते है?

आपने ठीक से नहीं देखा है। छह पुरुष और मैं एक अकेली महिला होती हूं। जिसे कभी-कभी चाहने वाले पुरुष में गिन लिया करते हैं। ऐसे वाद्य यंत्र के इस्तेमाल कम से कम होते हैं। आगे-पीछे के कोरस के लिए होते हैं। कभी इस पर सोची नहीं हूं। एक टीम है। जो बस गा देते हैं। पटना से पेरिस तक सिर्फ तालियां बटोर कर शहर से चले जाते हैं।

-आज की गायिकी और पहनावा को लेकर आप क्या कहेंगे?

आधुनिक का माहौल है। जिसे जो पहनना और गाना है वो करें। किसी को रोक-टोक नहीं है। मेरी ओर से तो एकदम नहीं है। लेकिन जब भी लोग कपड़े पहने तो एक बार शीशा के सामने जरूर खड़े होकर देख लें। इसी तरह गायिकी में भी है। एक बार खुद उसे जज बनकर सुन लें तब आम पब्लिक को सुनाएं तो अच्छा ही सामने आएगा।