बचपन में प्यार से बिब्बी

बेगम अख्तर का जन्म 7 अक्टूबर 1914 को हुआ था। इनको बचपन में प्यार से बिब्बी नाम से भी बुलाया जाता था। यह सिर्फ गायन ही नहीं अभिनय की क्षेत्र में भी पारंगत थीं।

कठिन स्थितियों से गुजरीं

बेगम अख्तर को बचपन में कई कठिन स्थितियों से गुजरना पड़ा था। जब यह चार साल की थीं तब इन्होंने व इनकी बहन ने कोई जहरीला पदार्थ खा लिया था। इस दौरान बहन की मौत हो गई थी और यह बच गई थीं।

संगीत में रुचि अधिक रही

बचपन से वह पढाई-लिखाई से ज्यादा संगीत में और उर्दू की शायरी में रुचि लेती थीं। उर्दू पर इनकी एक अच्छी पकड़ थी। सुरों की मलिका बेगम अख्तर को अख्तरी बाई के नाम से भी पुकारा जाता था।

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बचपन में बहुत चुलबुली

बेगम अख्तर यानी कि बिब्बी बचपन में बहुत चुलबुली थीं। इसका उदाहरण यह है कि एक बार उन्होंने अपने एक मास्टर जी की चोटी काट दी थी। इस पर वह मास्टर जी की गुस्सा का शिकार भी हुई थीं।

कम उम्र में हुईं लोकप्रिय

कम उम्र से गाने की वजह से 15 साल की उम्र तक वह लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो गई थीं। इतनी कम उम्र में इन्होंने फैजाबादी के नाम से पहली बार मंच पर अपनी गजलों से समा बांधी थीं।

गजलों में दर्द की झलक

इसके बाद तो इनका सफर काफी तेजी से चल पड़ा था। बड़ी संख्या में लोगों का मानना है कि इनकी गजलों में दर्द की साफ झलक दिखाई देती थीं। लोगों को इनकी गजलों में अपनी जिदंगी दिखती थी।

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सरोजनी नायडू ने उपहार दिया

एक बार कोलकाता में भूकंप पीड़ितों के लिए चंदा इकट्ठा करने के लिए कार्यक्रम हुआ। जिसमें इनके गाने से खुश होकर भारत कोकिला सरोजनी नायडू ने इन्हें खादी की एक साड़ी उपहार में भेंट की थी।

अकेलेपन से बहुत घबराती

बेगम अख्तर की जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव आए। वह लाइफ में अकेलेपन से बहुत घबराती थीं। इनको लेकर यह भी चर्चा रही कि इससे उबरने के लिए यह शराब व सिगरेट का सहारा लेती थीं।

इन पर किताब भी लिखी थी

इनकी गजल ही नहीं बल्कि ठुमरी और दादरा के भी सुनने वाले कम न थे। इनके ऊपर इनकी एक शिष्या रीता गांगुली ने एक किताब भी लिखी थी। जिसमें इनके निजी जीवन के चौकाने वाले किस्से हैं।

मरणोपरांत पद्म भूषण से सम्मानित

पद्म श्री सम्मानित बेगम अख्तर ने 30 अक्टूबर 1974 में इस दुनिया को अलविदा कह गईं थी। मरणोपरांत यह 1975 में पद्म भूषण से सम्मानित हुई थीं। यह मल्लिका-ए-गजल के खिताब से भी नवाजी गई थीं।

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