RANCHI : केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस बार बजट के भाषण में इस बात का जिक्र किया है कि जिन शहरों की आबादी 20 लाख से ज्यादा है, उन्हें स्मार्ट सिटी बनाई जाएगी। यानी यहां वह सभी सुविधाएं मिलेंगी, जिसका आम नागरिक हकदार है। अपने रांची की आबादी 29 लाख से ज्यादा है और यह स्मार्ट सिटी बनने की कैटेगरी में आती है, लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर, रोड, नाली से लेकर बाकी सभी मामलों में यह पिछड़ी है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि रांची पहले एक राजधानी के रूप में तो डेवलप हो।

नहीं बनी नई सड़क और नहीं हो सका चौड़ीकरण

रांची में सड़कों की स्थिति काफी खराब है। जहां-तहां गड्ढे हैं। हालत यह है कि पिछले कई सालों से यहां पर नई सड़कें नहीं बनाई गई हैं। समय-समय पर सड़कों की मरम्मत के नाम पर खानापूर्ति ही हुई है। अतिक्रमण के कारण सड़कें संकरी हो गई हैं, जबकि ट्रैफिक का बोझ पहले से ज्यादा बढ़ा है।

सिवरेज और ड्रेनेज सिस्टम फेल

रांची में सिवरेज और ड्रेनेज सिस्टम फेल है। जब रांची का विस्तार इतना नहीं हुआ था तो यहां पर कुछ खास एरिया में सिवरेज सिस्टम था, लेकिन इसके बाद जब जब इसका विस्तार हुआ तो सिवरेज और ड्रेनेज सिस्टम पर काम ही नहीं हुआ। स्थिति यह है कि आज जगह-जगह पर नालियां खुली हैं और गंदगी फैल रही है। इन नालों की वजह से हरमू जैसी नदी का अस्तित्व लगभग मिट चुका हैं। जापान की एक कंपनी से भी रांची के सिवरेज और ड्रेनेज के लिए बात की गई, लेकिन योजना धरातल पर नहीं उतर सकी।

पानी पर लड़ते रहे रांची नगर निगम और पीएचईडी

पेयजल विभाग आज भी ज्यादातर इलाकों में वाटर सप्लाई में फेल रहा है। जिन इलाकों में पानी पहुंचता है, वहां का पानी इतना गंदा होता है कि बीमारियों का खतरा रहता है। इसका कारण यह है कि पानी के लिए जो पाइप बिछाई गई हैं, वह पुरानी और सड़ चुकी हैं, जिससे नाली का पानी सप्लाई वाटर में मिल जाता है। पानी को लेकर रांची नगर निगम और पेयजल और स्वच्छता विभाग आपस में टकराते रहते हैं। कारण रांची में पानी का कनेक्शन जहां रांची नगर निगम देता है, वहीं पानी सप्लाई पीएचईडी के पास है।

नहीं बना सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम

रांची में सफाई व्यवस्था का हाल बुरा है। जगह-जगह कूड़े-कचरे का अंबार लगा हुआ है। रांची नगर निगम के जिम्मे सिटी की सफाई व्यवस्था है, लेकिन यहां पर यह व्यवस्था फेल हो चुकी है। दो साल पहले रांची में सफाई व्यवस्था का जिम्मा रांची नगर निगम ने एटूजेड को दिया था, लेकिन वह भी फेल रही और उसे हटाना पड़ा। रांची नगर निगम ने सफाई व्यवस्था को अपने हाथ में लिया, लेकिन व्यवस्था और भी अधिक चरमरा गई। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम और वेस्ट रिसाइक्लिंग के लिए भी रांची के चिरी में प्लांट लगना था, लेकिन यह योजना भी पूरी नहीं हो पाई।

ट्रैफिक जाम से नहीं मिली राहत

रांची में सड़क जाम एक बहुत बड़ी प्रॉब्लम है। जाम से लोगों को बचाने के लिए समय-समय पर कई योजनाएं बनीं। तीन फ्लाईओवर की बड़ी योजना बनी। दो साल पहले तत्कालीन सीएम अुर्जन मुंडा ने इसका शिलान्यास भी किया, लेकिन इसके बाद जमीन अधिग्रहण से लेकर दूसरे कारणों से यह योजना आगे नहीं बढ़ पाई। दूसरी ओर झारखंड बनने से पहले रांची के मेन रोड में जो ओवरब्रिज बना था, वह जर्जर हो चुका है।

नहीं सुधरी बिजली व्यवस्था

झारखंड के साथ बने देश के बाकी राज्य जहां अपने राज्य में सरप्लस बिजली पैदा कर रहे हैं। उनके यहां के शहरों में 24 घंटे बिजली की सप्लाई रहती है। वहीं झारखंड की राजधानी होने के बाद भी रांची में बिजली कटौती से लोग परेशान रहते हैं। नया पावर प्लांट नहीं लगने और बिजली का उत्पादन नहीं बढ़ने से समस्या जस की तस बनी हुई है।

भगवान भरोसे है लॉ एंड ऑर्डर

रांची में आम आदमी अपने को सुरक्षित महसूस नहीं करता है। आए दिन मर्डर, चोरी-डकैती यहां पर होती रहती है। इस कारण यहां पर नाइट लाइफ डेवलप नहीं हो पा रही है। आठ से नौ बजे के बीच सिटी के मेन मार्केट में सन्नाटा पसर जाता है। पुलिस पर लोगों को भरोसा नहीं है। ऐसे में अभी तो एक अच्छी सिटी ही नहीं बन पाई है रांची, स्मार्ट सिटी तो दूर की बात है।