-आई नेक्स्ट की ओर से बर्रा-2 में आयोजित हुई चाय पर चर्चा में लोगों ने रखी बेबाक राय

- कोई बोला मिशन 2017 में भ्रष्टाचार और विकास का मुद्दा ही होगा सबसे अहम

- किसी ने कहा, नोटबंदी से हुई लोगों बनी परेशानी का जवाब भी मिलेगा इस चुनाव में

KANPUR: राजनीतिक पार्टियों ने मिशन 2017 फतह करने के लिए जोर-आजमाइश शुरू कर दी है। सियासी दावपेंच के साथ जातिगत गणित का फॉम‌रू्रला फिट करने की कोशिशें हो रही हैं। विधानसभा चुनावों मे ताज किसके सिर सजेगा इसका पता तो 11 मार्च को ही चलेगा लेकिन चौराहों, नुक्कड़ों और चाय की दुकानों चर्चा करके लोग अपनी-अपनी सरकारें बना रहे हैं तो उसकी पल सामने वाला अपनी दलील से तुरंत तख्ता पलट कर रहा है। कहीं नोटबंदी की गूंज है तो कहीं पारिवारिक कलह का शोर है। आई नेक्स्ट आपको आज ऐसी ही एक गर्मा-गर्म बहस में लेकर चल रहा है जो हो रही है बर्रा दो स्थित एक चाय की दुकान पर। तो आप भी शामिल होइए इससे राजनीतिक बहस में।

चर्चा से 'बढ़ी गर्मी'

संडे की छुट्टी के दिन कड़कड़ाती सर्दी के बीच बूंदाबांदी शुरू हुई, इसी के साथ चाय की दुकानों पर विधानसभा चुनाव-2017 की चर्चा में गरमी बढ़ती गई। बर्रा-2 स्थित एक चाय की दुकान पर भी महफिल सजी हुई है। चाय की चुस्कियों के बीच श्रीओम पाठक बोले कि प्रदेश में विकास की गंगा बही है, इसका फायदा तो अखिलेश यादव को मिलेगा ही। प्रदेश का युवा उनके साथ है। उनकी बात काटते हुए जीतू त्रिपाठी ने कहा कि विकास तो ठीक है लेकिन जो गद््रदी के लिए पिता-पुत्र में ही घमासान चल रहा है। उसके बारे में भी तो कुछ सोचिए। इसी बीच गोरे पाठक बोल पड़े गुंडई तो बढ़ी है इसमें कोई शक नहीं है। पब्लिक ने भी सब समझ लिया है। अब जवाब तो वोट के रूप में ही सामने आएगा।

काेई झगड़ा नहीं है

चर्चा में गरमी आ चुकी थी, विनोद कुमार निगम की भी आवाज आई कि इस वक्त समाजवादी पार्टी में नूराकुश्ती चल रही है। कमल किशोर ने कहा कि पिता-पुत्र में कोई झगड़ा नहीं है यह तो सिर्फ पब्लिक को मूर्ख बनाने का खेल चल रहा है। इसी बीच विषय बदलते हुए वीरेन्द्र तिवारी ने कहा कुछ भी हो लेकिन इस बार नोटबंदी और विकास के मुद्दे पर ही चुनाव होगा। उनकी बात खत्म होने से पहले ही डॉ। रामचंद्र सिंह बोले कि नोटबंदी तो ठीक कदम है, लेकिन इसका इम्प्लीमेंट ठीक से नहीं हुआ। पब्लिक को बहुत मुसीबत उठानी पड़ी। खासकर उन घरों में जहां शादी होनी थी। किस-किस तरह से लोगों को कर्ज लेकर शादी करनी पड़ी यह भी समझने की बात है। तभी विक्रम सिंह सचान ने कहा कि नोटबंदी से परेशानी तो हुई यह मानता हूं, लेकिन जरा यह भी सोचिए कि इससे भविष्य में कितना फायदा होगा।

तब होगी परेशानी दूर

इसी बीच कप में चाय खत्म हो गई तो फिर एक बार चाय का ऑर्डर कर दिया गया क्योंकि अभी चर्चा अधूरी ही थी। इस बार राजू यादव बोले कि भइया नोटबंदी तो ठीक है, लेकिन इस समय व्यापार की हालत देखिए। सब धंधे ठप पड़े हैं। व्यापारियों का बुरा हाल है उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि कब उनका व्यापार पहले की तरह ठीक हो जाएगा। अमर निषाद ने उनकी बात का समर्थन करते हुए कहा कि मोदी की नीति तो ठीक है, लेकिन सरकारी मशीनरी जब तक नहीं सुधरेगी तब तक पब्लिक को परेशानी दूर नहीं होगी।

राजनीतिक पार्टियां भी सुधरें

चर्चा की दिशा थोड़ी परिवर्तन हुई और रामू पाठक बोले कि सिर्फ पब्लिक के सुधरने से कुछ नहीं होगा। राजनीतिक दलों को भी सुधार की बहुत जरूरत है। पब्लिक के एक-एक पैसे का हिसाब चाहिए, लेकिन राजनीतिक पार्टियां चंदे का हिसाब-किताब नहीं देना चाहतीं। यह तो दोहरे चरित्र वाली बात हो गई। कृष्ण मोहन शुक्ला ने भी इस बात पर अपनी मुहर लगाई और कहा कि राजनीतिक पार्टियों को चंदा आता है उसका पब्लिक के सामने पूरा हिसाब देना होगा नहीं तो यही माना जाएगा कि काले धन को ही चंदे के रूप में राजनीतिक पार्टियां ले रही हैं। गोरे पाठक ने अपनी बात कही कि इसका कानून बनना चाहिए और राजनीतिक पार्टियों की कमाई का पूरा हिसाब देश के सामने होना चाहिए। कई दल ऐसे हैं जो कई वर्षो से चुनाव में शामिल तक नहीं हुए, लेकिन उनके पास भी लाखों-करोड़ों का चंदा आ रहा है। यह सभी पार्टियां कुछ नहीं सिर्फ काले धन को सफेद करने में लगी हुई है।

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कुछ प्रमुख बातें आई सामने

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- नोटबंदी से भ्रष्टाचार और काले धन पर लगाम लगी

डॉ। रामचंद्र सिंह

- सरकार को व्यापारिक नीतियों में बदलाव करना चाहिए

गोरे पाठक

- भविष्य को बनाने में वर्तमान का भी ख्याल होना चाहिए

- जीतू त्रिपाठी

- सरकारी मशीनरी में सुधार की सबसे ज्यादा जरूरत

श्रीओम पाठक

- समाज को गुण्डों से छुटकारा मिलना चाहिए

राजू यादव

- जनता सब देख रही है, जवाब देने के लिए चुनाव है।

विनोद निगम

- कोई शक नहीं है कि इस वक्त प्रदेश में गुण्डई बढ़ गई है।

कमल किशोर

- पिछले पांच साल में कई घटनाएं ऐसी हुई जो भूलेंगी नहीं

कृष्णमोहन शुक्ल

- अब जोड़-तोड़ की राजनीति का वक्त खत्म हो रहा

अमर निषाद

- वोटर्स होशियार है उन्हें लुभाने से कोई फायदा नहीं होने वाला

विक्रम सिंह सचान

- प्रदेश में गुण्डे और पुलिस एक साथ मिल कर काम कर रहे हैं।

वीरेन्द्र तिवारी

- पब्लिक को समझना चाहिए कि किस पार्टी ने अपने वादे पूरे किए।

रामू पाठक

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'गरीबों की कोई नहीं सुनता'

भइया मैं पढ़ा लिखा तो हूं नहीं, ज्यादा राजनीति के बारे में नहीं जानता। हां एक बात जरूर जानता हूं कि जो सरकार गरीबों की सुने वही अच्छी होती है, लेकिन अब सुनता कौन है। चुनाव के समय ही नेताओं को गरीब याद आते हैं, बाद में सब भूल जाते है।

अरविन्द (चाय वाला)

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सबसे खास बात-चुनाव चर्चा का टी प्वाइंट

सुरक्षा और विकास है मुख्य मुद्द

विधानसभा चुनाव की आचार संहिता भले ही लग चुकी है लेकिन चाय की दुकानों पर चर्चा में शब्दों को बोलने में कोई आचार संहिता नहीं है। सब बेबाकी से अपनी बात कह रहे हैं और कहे भी क्यों न? यही तो मौका होता है अपने मन की भड़ास निकालने का। चर्चा का सफर अभी यूं ही चलता रहेगा इसका छोर ढूंढ़ पाना मुश्किल है, लेकिन एक बात तो सामने यह जरूर आ रही है कि अब वोटर्स को बरगलाना राजनीतिक दलों के लिए बड़ी टेढ़ी खीर होगा। वोटर्स को समझ गया है कि कौन सी राजनीतिक पार्टी के शासन में उसके अधिकारों की रक्षा भी होगी साथ ही विकास को भी पंख लगे? सुरक्षा और विकास रही सबसे प्रमुख बात।