'लोमड़ी के केस में यह बात हजम नहीं होती'

लोमड़ी और अंगूर वाली कहानी खत्म करते हुए टीचर ने कहा, '... और लोमड़ी ने यह सोच कर संतोष कर लिया कि अंगूर खट्टे हैं.' टीटू टीचर की ओर अब भी देख रहा था. टीचर ने उससे पूछा, 'क्यों क्या हुआ? कहानी समझ नहीं आई?' टीटू ने मासूमियत से कहा, 'सर आपने पहले बताया था कि लोमड़ी बहुत चालाक जानवर होता है. उसकी चालाकी और धूर्तता की कहानी तो आप पहले भी सुना चुके हैं. फिर यह बात हजम नहीं होती कि लोमड़ी इतनी आसानी से हार मान गई होगी और उसने अंगूर पाने के लिए कोई जुगत न भिड़ाई हो...' टीचर और क्लास के बच्चे आश्चर्य से टीटू का मुंह देख रहे थे.

सर! कहानी की एंडिंग कौव्वे वाले स्टाइल में

टीचर ने कहा, 'तो...' बच्चों ने कहा, 'सर! इस कहानी की एंडिंग लोमड़ी और कौव्वे वाले स्टाइल में हो तो मजा आएगा.' टीचर ने सिर खुजाकर गहरी सांस छोड़ते हुए कहा, 'ठीक है...' उन्होंने कहानी आगे बढ़ाई, 'लोमड़ी को जब पूरा विश्वास हो गया कि अंगूर तक किसी तरह नहीं पहुंचा जा सकता तो वह वहीं बैठ कर सोचने लगी. काफी देर बाद उसके दीमाग की बत्ती जली और वह तेजी से आलसी और कंजूस कुत्तों की बस्ती की ओर भागी.

'10 रुपये में खरगोश जीतने का मौका'

वहां पहुंच कर उसने ऐलान किया कि जो भी कुत्ता पेड़ पर लिपटी बेल से अंगूर का गुच्छा तोड़ लाएगा उसे एक खरगोश ईनाम में मिलेगा. इसके लिए उन्हें उससे 10 रुपये की शर्त लगानी पड़ेगी. बस फिर क्या था, बस्ती के तकरीबन सभी कुत्तों ने उससे शर्त लगा ली. शर्त के बाद उसके पास 850 रुपये इकट्ठे हो गए. पैसे लेकर वह शहर की ओर निकल गई. इधर दिन भर कुत्ते भौंकते हुए उछल-उछल कर अंगूर के गुच्छे पर झपटते रहे लेकिन गुच्छा तो दूर एक अंगूर भी कोई नहीं तोड़ पाया. शाम को सब थके-हारे बस्ती की ओर मुंह लटकाए लौट गए. वहां गए तो देखा बस्ती का नजारा बदला हुआ था. लोमड़ी ने उन्हीं पैसों से पार्टी का पूरा इंतजाम कर रखा था. यह देखते ही थके-मांदे कुत्तों में जान आ गई सब देर तक नाचते-भौंकते तरह-तरह के पकवानों का लुत्फ उठाते रहे.'

'वाट एन आइडिया सर जी!'

बच्चों ने कहा, 'वाट एन आइडिया सर जी!' टीचर ने कहा, 'बच्चों! हम अपनी असफलता से थक कर किसी भी काम से तौबा कर लेते हैं. अपने मन को किसी तरह समझा लेते हैं जबकी हमें उससे सीख लेनी चाहिए. सही सोच से परिश्रम की दिशा तय करनी चाहिए. यदि हमने ऐसा किया तो सफलता निश्चित है. लोमड़ी वाले केस में भी देखो उसने ऊंचाई का अंदाजा लगाए बिना परिश्रम किया और उछलती रही. लेकिन अंगूर नहीं मिला जबकि कुछ देर की सार्थक सोच ने उसे पिछली असफलता से न सिर्फ पैसा दिलाया बल्कि आलसी कुत्तों में जोश भी भर दिया.'