काफी कम दूरी
धरती के रास्ते में उल्कापिंड मतलब वॉल्कैनो (महाज्वालामुखी) का खतरा काफी तेजी से बढ़ रहा है। अक्सर ही आकाश से बहुत तेज़ गति से जो पिंड गिरते हुए दिखाई देते है, उन्हें उल्का कहते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है साधारण बोलचाल में लोग इन्हें टूटते तारों के नाम से जानते व पहचानते हैं। ऐसे में इनका कुछ हिस्सा जो धरती पर गिरता है इसे उल्कापिंड के नाम से जाना जाता है। कई बार जब ये धरती पर गिरते हैं तो काफी नुकसान भी होता है। इसके अलावा दुनिया भर के कई वैज्ञानिक इस बात का ऐलान कर चुके हैं कि आने वाले कुछ सालों में उल्कापिंड धरती के और करीब आजांएगे। इससे धरती पर काफी खतरा बढ़ जाएगा। धरती और इनकी दूरी महज 2 मिलियन मील रह गई है।

डेथ स्टार नाम

ऐसे में दुनिया की कई यूनिवर्सिटीज में इस विषय पर शोध हो रहा है। जिसमें हाल ही में कैलीफोर्निया पॉलीटेक्िनक स्टेट यूनिवर्सिटी में इस विषय पर शोध हुआ है। जिसमें वैज्ञानिको का दावा है कि उन्हें सफलता मिली है। उन्होंने एक ऐसा हथियार तैयार किया है जो कि धरती के रास्ते में आने वाले उल्कापिंडो से निपटने की ताकत रखता है। वैज्ञानिको का कहना है कि डी स्टार के यानि की डायरेक्टेड एनर्जी सिस्टम फॉर टारगेटिंग ऑफ एस्टोराइड्स एंड एक्सप्लोरेशन की मदद से उन्हें काफी बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है। इस संबंध में कैलीफोर्निया पॉलीटेक्िनक स्टेट यूनिवर्सिटी के सैन लुईस ऑबिस्पो का कहना है कान्सेप्ट को लेकर पिछले कई सालों से शोध हो रहा था। इस शोध में फिजिक्स के सांता बारबारा, लुबिन, ग्रे हयूज जैसे कई शोधकर्ता व प्रोफेसर शामिल रहे हैं। इस हथियार का नाम डेथ स्टार दिया गया है।

सार्थक परिणाम

यह स्पेस पर होने वाली चट्टानों से भी निपटने की क्षमता रखता है। इसके साथ ही उनका कहना है कि अब डी स्टार को और ज्यादा इंप्रूव करके इसके डी स्टारलाइट के रूप में देखा जा रहा है। यह आने वाले उल्कापिंडो को एक ही बार में चकना चूर कर देगा। इसमें हीट पॉवर काफी ज्यादा दी गई है। इस संबंध में जर्नल अर्थ एंड प्लैंनेटेरी एस्ट्रोगाफिक्स के क्यूचेंग जैंग का कहना है कि अभी इस दिशा में प्रयोग और ज्यादा किए जा रहे हैं कि यह और कैसे इन उल्कापिंडो से निपट सकता है। उनका कहना है कि यूनिवर्सिटी के कई स्टूडेंट इस दिशा में काफी ज्यादा से रिसर्च कर रहे हैं। जिससे उम्मीद है कि इसके सार्थक परिणाम जल्द ही सामने होंगे।

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