मोक्षदायिनी मां गंगा का आंचल। बिठूर के पास स्थित परियर घाट। सैकड़ों लाशें। इसमें कुछ ताजा, कुछ पुरानी। सवाल उठा कि आखिर इतनी लाशें कहां से आई? वेडनेसडे को आई नेक्स्ट टीम इसका जवाब जानने के लिए फिर परियर घाट पहुंची। कई घंटों की पड़ताल और स्थानीय लोगों से बातचीत के बाद एक नया खुलासा भी हुआ। लाशों के वहां पहुंचने के पीछे जो एक प्रमुख कारण निकलकर आया है वो है अघोरी। अघोरियों से इंसान की लाश का क्या कनेक्शन है? क्या अघोरी उन लाशों को लेकर वहां गए? या फिर उनको वहीं लाश मिलीं? लाशों के अंधविश्वास कनेक्शन को सामने लाती ये रिपोर्ट पढि़ए।

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रात को क्या कर रहे थे नग्न लोग?

जगह-परियर घाट

टाइम-रात के एक बजे (संडे की रात)

घाट पर चारों ओर सांय-सांय करता रूह कांपने वाला सन्नाटा। इसी बीच करीब आधा दर्जन से ज्यादा नग्न लोग, हाथों में कुछ पूजा का सामान और चिल्लाते हुए घाट पहुंचे। ठंडी-ठंडी हवा के बीच उन्होंने जमकर पहले तो हल्ला किया और बाद में सब एक जगह बैठ गए। करीब एक दस से 15 मिनट तक वहां बैठने के बाद उन लोगों ने वहां आग जलाई फिर सबने धूम्रपान किया। इसके बाद हाथ में कमंडल लिए उन लोगों ने अपने बैठने के स्थान पर एक टुकड़ा बिछाया और वहां बैठ गए। फिर वो लोग हाथों से कुछ खींचकर लाए और फिर उस पर कुछ जलायालेकिन वो लोग क्या लेकर आए थे ये अंधेरा और 200 से 300 मीटर की दूरी का फासला होने की वजह से नहीं दिखा।

'फोटो मत खींचना, वरना मर जाऊंगा'

ये आंखोदेखी छुआता नाम के व्यक्ति ने आई नेक्स्ट को बताई। उसके मुताबिक वो इतना ही देख पाया इसके बाद वो वहां से चला गया क्योंकि रात के दो बज चुके थे। उससे जब आई नेक्स्ट ने उसकी फोटो खिंचवाने के लिए कहा तो वो वहां से ये कहता हुआ भाग गया कि वो अघोरी थे अगर उनके बारे में कुछ बताया तो मैं मर जाऊंगा। मेरी फोटो मत खींचो। उसके मुताबिक वहां कुछ पर्वो के पहले अक्सर इन लोगों का जमावड़ा रात में रहता है।

वो नग्न लोग अघोरी थे

आई नेक्स्ट को परियर घाट पर मिले एक बुर्जुग छुआता नाम के शख्स ने जो बताया उसको जानने के बाद आपके मन में भी सवाल उठने लगे होंगे कि आखिर वो लोग नग्न लोग कौन थे? जोकि घाट पर पहुंचे थे। वो लोग थे अघोरी। अघोरी कई तरह के होते हैं। जो अघोरी बनना चाहते हैं वो इस समुदाय में तो शामिल हो जाते हैं। लेकिन उनके पास पूरी सिद्धियां (अघोरियों के मुताबिक) नहीं होती हैं वो सिद्धि पाने के लिए एक विशेष दिन का इंतजार करते हैं। उन्हीं विशेष दिनों में शामिल होता है मकर संक्रान्ति से पहले की दो रातें।

अघोरियों के लिए सबसे उपयुक्त

छुआता से मिली जानकारी के बाद आई नेक्स्ट ने पड़ताल की तो मालूम चला कि वो स्थान जहां लाशें मिली हैं वो अघोरियों के सिद्धि (अघोरियों के मुताबिक) पाने के लिए सबसे उपयुक्त है। परियर घाट से कुछ दूरी पर अघोरियों की कुटिया भी है। वहां वेडनेसडे को भी अघोरी तंत्र-मंत्र कर रहे थे। आई नेक्स्ट ने उसको कैमरे में कैद करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने मना कर दिया और कुटिया को बंद कर लिया।

एक अघोरी ने आई नेक्स्ट को बताया कि सिद्धि के लिए गंगा का तट ही सबसे उपयुक्त होता है। आमतौर पर जो तट होते हैं वहां लोगों का आना-जाना होता है। लेकिन परियर घाट पर जहां लाशें मिली हैं। वहां खासकर रात में लोग डर की वजह से नहीं जाते हैं। ये खुद बिठूर के रहने वाले राकेश ने बताया। बस अघोरियों को यही चाहिए होता है। अघोरी ने बताया कि सिद्धि पाने के लिए उन लोगों को लाश पर तंत्र-मंत्र करना होता है। चूंकि लाश आसानी से नहीं मिलती हैं। ऐसे में उनको घाटों के किनारे लंबा इंतजार करना पड़ता है परियर पर लाशें जलाई जाती हैं और वहां से कुछ दूरी पर गंगा का तेज बहाव भी है। वहां से लाशें लाकर यहां डंप कर ली जाती हैं फिर तंत्र-मंत्र का सिलसिला शुरू होता है।

शव से बनता है 'प्रसाद'

अघोरी के मुताबिक जो अघोरी सिद्धि (अघोरियों के मुताबिक) पाना चाहते हैं उनको मकर संक्रान्ति से पहले रात 12 बजे के बाद एक विशेष योग में लाश के ऊपर तंत्र-मंत्र करने के बाद उसको 'प्रसाद' के रूप में खाना होता है। परियर घाट पर लाशों की जो स्थिति है उससे काफी हद तक क्लीयर है कि वहां अधिकतर लाशों का शायद इसी के लिए इस्तेमाल किया गया है।

सुहागन की लाश बनाती है महाअघोरी

अघोरी के मुताबिक विशेष प्रकार की सिद्धि (अघोरियों के मुताबिक) पाने के लिए सुहागन की लाश की जरूरत होती है। सुहागन लाश की सबसे बड़ी पहचान है कि लाल चुनरी ओढ़े हुए। परियर में एक-दो लाशें महिलाओं की ऐसी हैं जोकि लाल चुनरी ओढ़े हुए हैं। सुहागन की लाश पर तंत्र-मंत्र करने से अघोरी बन जाता है महाअघोरी। ये शर्मनाक काण्ड करने का मौका अघोरियों को इसी लिए मिल पाता है क्योंकि लोग लाशों को गंगा में प्रवाहित कर देते हैं।

लाश पर तंत्र-मंत्र फिर गंगा स्नान

लाश को गंगा जल से धोने के बाद उस पर लौंग, कपूर, शराब, पत्ते और गांजा समेत कई तरह की जंगली जड़ी-बूटियां रखने के बाद होता है हवन। करीब एक घंटे तक हवन करने के बाद लाश पूरी तरह अघोरियों के लिए 'शुद्ध आत्मा' बन जाती है। अघोरियों का अंधविश्वास है कि फिर वो हर वो काम करती है जोकि वो कराना चाहते हैं। अघोरी मान्यताओं के मुताबिक लाश कुछ समय के लिए उनके इशारों पर 'नाचती' है। जितनी देर वो नाचती है उतनी ही देर में वो उससे अघोर परंपरा की बड़ी से बड़ी सिद्धि मांग लेते हैं। फिर जब वो नाचना बंद कर देती है तो उसको नोचकर खाते हैं फिर प्रणाम करते हैं और ये सबकुछ करने के उनको गंगा स्नान करना होता है। अगर वो लोग गंगा स्नान नहीं करते हैं तो ये सिद्धि वापस हो जाती है। अगर मकर संक्रान्ति जैसे दिन संगम में स्नान कर लिया जाए तो फिर सिद्धि पाने वाला अघोरी अघोरपंथ परंपरा में अग्रणी हो जाता है।

और बन जाता है अघोरी सम्राट

मकर संक्रान्ति से पहले ही ऐसी जगह लाशें मिली जहां ये सबकुछ संभव है। और इसकी पुष्टि भी छुआता ने कर दी है। सबसे बड़ी बात ये है कि अघोरी अकेले नहीं बल्कि 21 या 51 की संख्या में एकजुट होकर सिद्धि प्राप्त करते हैं। और 21 की संख्या दो या तीन दिन तक अगर ये क्रिया करती है तो फिर इनका एक अलग दल बन जाता है। इन्हीं में से एक बनता है अघोरी सम्राट। ऐसे में परियर में लाशों की संख्या बताती है यहां अघोरी सम्राट बनने के लिए बड़े पैमाने पर तंत्र-मंत्र भी किया गया है।

पीके का सवाल

1. अगर इन नंगे बाबाओं के पास सिद्धि है और ये लोग कुछ भी करा सकते हैं तो फिर ये मारे मारे क्यों फिरते हैं।

2. कोई पढ़ा लिखा अघोरी क्यों सामने नहीं आता।

3.शराब गंाजा के नशे में तो किसी को कुछ भी हैलुसिनेशन हो सकता है लाशों के बीच में। इसका मतलब ये कैसे कि लाश नाचती है।

4. अंधविश्वास की ऐसी पराकाष्ठा के बाद भी कभी कोई इस कर्मकाण्ड के खिलाफ आवाज क्यों नहीं उठाता।

5. अघोरियों का काम तो धार्मिक रीति के घोर विरुद्ध है.फिर इनका पूरी तरह त्याग क्यों नहीं किया जाता।