हाईकोर्ट की फटकार के बाद फिर शुरु किया काम

717 डेयरियां पंजीकृत, हजारों का हो रहा संचालन

Meerut . एक बार फिर हाईकोर्ट की फटकार के बाद कैटल कॉलोनी का जिन्न बोतल से निकल आया है. कोर्ट ने निगम को दो माह के भीतर डेयरियों को बाहर करने का आदेश क्या दिया निगम ने फिर से कैटल कालोनी की जगह तलाशनी शुरू कर दी है. नगर निगम ने एक बार फिर कैटल कॉलोनी के निर्माण का ठीकरा एमडीए पर फोड़ दिया वहीं एमडीए ने भी काशी गांव में जमीन को कैटल कालोनी के लिए सुझाव दिया है.

ईको पार्क या कैटल कालोनी

गोबर के कारण शहर की नालियों और सीवरेज सिस्टम का हाल बेकार हो गया है. ऐसे में हाईकोर्ट लगातार निगम को शहर की डेयरियों को शहर से बाहर ले जाने के लिए आदेश दे रहा है लेकिन निगम की लापरवाही के चलते अभी तक डेयरियां शहर के अंदर संचालित हो रही हैं. ऐसे में अब हाईकोर्ट की फटकार के बाद निगम ने गगोल रोड पर काशी गांव के समीप करीब 75 एकड़ भूमि पर कैटल कालोनी विकसित करने की योजना बनाई है, लेकिन इस पर एमडीए इको पार्क डेवलेप करने की योजना बना रहा है. नगर निगम ने इको पार्क के निर्माण के लिए एमडीए को 2 करोड़ 20 लाख 91 हजार 820 रुपये की धनराशि भी दे दी है. अब निगम इसे कैटल कालोनी के लिए विकसित करने का मन बना रहा है.

मात्र 717 डेयरियां पंजीकृत

हाईकोर्ट के आदेश के बाद नगर निगम ने डेयरियों के खिलाफ मुहिम शुरू कर करते हुए शहर में संचालित हो रही डेयरियों और पशुओं की गणना कर रिपोर्ट तैयार करना शुरु कर दिया है. इन पशुओं की संख्या के आधार पर कैटल कालोनी को बनाने की योजना पर काम किया जाएगा. एक आंकडे के अनुसार शहर में दो हजार से अधिक डेयरी संचालित हो रही है जबकि मात्र 717 के करीब निगम में पंजीकृत हैं, जिनमें लगभग 20 हजार से अधिक पशु बताए जाते हैं. प्रतिदिन डेयरियों से 200 मीट्रिक टन गोबर और अन्य कूड़ा निकलता है. यह गोबर और कूड़ा शहर से बाहर भेजने की बजाय डेयरी संचालक सबमर्सिबल के पानी के साथ नाली और नालों में बहा देते हैं.

कैटल कालोनी विकसित करने में एमडीए सहयोग मांगा गया है. डेयरियों को बाहर करने के लिए सत्यापन का काम किया जा रहा है.

- मनोज कुमार चौहान, नगरायुक्त

न गोबर बैंक, न कंपोस्ट खाद

- निगम ने किया था कूड़े और गोबर से राजस्व वृद्धि का दावा

- माधवपुरम में गोबर बैंक की योजना भी फ्लॉप

मेरठ. स्वच्छता सर्वेक्षण 2019 की शुरुआत में निगम ने न सिर्फ शहर की सड़कों को चमकाने का सपना शहर के लोगों को दिखाया, बल्कि शहर के कूडे़ और डेयरियों से निकलने वाले गोबर से निगम की आय में वृद्धि की भी बड़ी-बड़ी योजनाएं तैयार कीं. यदि योजनाओं पर 10 प्रतिशत भी काम हो जाता तो आज शहर गंदगी के ढेर पर न बैठा होता और शहर की नालियों मे गंदगी और गोबर न बह रहा होता.

नही बना गोबर बैंक

गत वर्ष नवंबर माह में नगर निगम ने शहर की डेयरियों से निकलने वाले गोबर की समस्या को दूर करने और निगम के राजस्व में इजाफे के लिए माधवपुरम में गोबर बैंक बनाने की योजना बनाई थी. योजना थी कि डेयरी संचालक निगम को अपनी डेयरी का गोबर देंगे निगम इस गोबर से खाद बनाकर बेचेगा. इससे शहर में गोबर के कारण गंदगी की समस्या भी दूर होगी और निगम इस खाद को बेचकर आय में भी वृद्धि करेगा. आज योजना को बने सात माह से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन निगम खुद अपनी योजना भूला बैठा है.

कब बनेगी कंपोस्ट खाद

निगम की एक ओर महत्वपूर्ण योजना जिसके तहत शहर में 250 से अधिक जगहों समेत विवि और जिला जेल में मेगा कंपोस्टिंग यूनिट लगाई गई थी. उददेश्य था कि संस्था अपना कूड़ा खुद कंपोस्ट कर खाद बनाए और निगम उस खाद को बेचकर आय में वृद्धि करे. इस योजना के तहत शहर के सभी सरकारी व प्राईवेट स्कूल कालेज, मंदिर परिसर समेत प्रशासनिक भवनों में कंपोस्टिंग यूनिट निगम के सहयोग से लगाई गई लेकिन आज 80 प्रतिशत कंपोस्टिंग यूनिट निगम की लापरवाही के चलते कूडे़ में तब्दील हो चुकी है. जो कूड़ा इसमें दबाया गया था वह अभी खाद में बदलने के बजाए सड़ चुका है कंपोस्टिंग के लिए डाले गए केंचुए तक मर चुके हैं. लेकिन निगम इन्हे अपडेट नही कर रहा है.

न बिजली, न सीएनजी

वहीं शहर के कूडे़ की समस्या से निस्तारण के लिए निगम द्वारा बनाई गई कूडे़ से बिजली और सीएनजी की योजना का अभी तक कोई आधार ही नही मिल पाया है. निगम की इस योजना में कोई कंपनी रुचि नही ले रही है जिसके चलते निगम के इस प्रोजेक्ट को कोई कंपनी लेना नही चाह रही है. गांवडी प्लांट पर बिजली उत्पादन की योजना के लिए कई बार प्रेजेंटेशन दिया जा चुका है लेकिन नतीजे सिफर हैं.

योजनाएं शहर की साफ सफाई व लोगों की सुविधा के लिए बनाई गई थी, सभी योजनाओं पर काम चल रहा है केवल कुछ देरी हो रही है.

- गजेंद्र सिंह, नगर स्वास्थ्य अधिकारी