शताब्दी में आग लगी तो कैसे बाहर आएंगे मरीज

केजीएमयू के अधिकारियों ने बताया कि इतने बड़े कैंपस में कई इमारतों का निर्माण कराया गया, लेकिन उनमें सुरक्षा मानकों का ध्यान नहीं रखा गया। ट्रॉमा सेंटर में आग लगने की घटना के बाद मरीजों को शताब्दी में शिफ्ट किया गया, लेकिन उन्हें ग्राउंड फ्लोर पर ही रखना पड़ा। क्योंकि ऊपर जाने के लिए रैंप ही नहीं बनाए गए। सिर्फ लिफ्ट व सीढि़यां ही बनाई जा सकी। सीढि़यों पर स्ट्रेचर ले जाना संभव नहीं होता।

केजीएमयू के पास जवाब नहीं है कि इतने बड़े और आलीशान सुविधाओं वाले शताब्दी हॉस्पिटल में रैंप क्यों नहीं बनाए जा सके। एक सीनियर डॉक्टर ने बताया कि रैंप के लिए राजकीय निर्माण निगम व प्रशासनिक अधिकारियों को कई बार पत्र लिखे गए लेकिन कोई संज्ञान नहीं लिया गया। जिसके कारण कभी भी बड़ा हादसा होने का खतरा मंडरा रहा है। बिल्डिंग में आग लगी तो मरीजों को बाहर भी निकाला नहीं जा सकेगा। क्योंकि उस स्थिति में लिफ्ट बंद हो जाती हैं। रैंप हैं नहीं इसलिए सीढि़यों से ही बाहर आना पड़ेगा। सीढि़या भी एक ही जगह पर हैं जिससे तीमारदार भी अचानक नीचे नहीं उतर पाएंगे। गौरतलब है कि शताब्दी फेज 2 8 मंजिला इमारत हैं।

जरूरी है रैंप

डॉक्टर्स के अनुसार अस्पताल में अधिकतम मरीज चलने फिरने में नाकाम होते हैं। इसलिए व्हीलचेयर व स्ट्रेचर के लिए रैंप बनाया जाता है। लेकिन शताब्दी के अलावा डेंटल बिल्डिंग में भी रैंप नहीं बनाए गए। कुछ ऐसा ही हाल सीटीवीएस में भी हैं। यहां पर एक तरफ रैंप तो है लेकिन वह बंद रहता है।

इन इमारतों में नहीं हैं रैंप

- शताब्दी फेज 1 व 2

- कलाम सेंटर

- न्यू डेंटल ब्लाक

- न्यू ओपीडी ब्लॉक