सटीक निशाना अचंभे से कम नहीं
दिल्ली में रहने वाली डॉली शिवानी चेरुकुरी अभी पूरे तीन साल की भी नहीं है. अभी तीन साल होने में पूरे नौ दिन बाकी है, लेकिन डॉली ने खिलौने खेलने वाले हाथों से वो करतब दिखाया कि जो शायद ही कोई कर सके, क्योंकि इस उम्र में बच्चे खिलौने भी ठीक से नहीं पकड़ पाते, लेकिन यह बच्ची तीर-कमान से सटीक निशाने लगाती है. इसने कल विजयवाड़ा में हुये तीरंदाजी में वरिष्ठ खेल अधिकारियों की मौजूदगी में पांच मीटर और सात मीटर की दूरी से 36 तीर से 388 अंक हासिल किए. जिससे इसका निशाना सीधे नेशनल रिकॉर्ड पर लग गया. इस मौके पर इंडिया बुक रिकॉर्ड के प्रतिनिधि विश्वजित रे और भारतीय खेल प्राधिकरण के पी रामा कृष्णा ने इस बच्ची के नाम की घोषणा की है. उन्होंने कहा कि डॉली का इस उम्र में इतना सटीक निशाना लगाना किसी अचंभे से कम नहीं हैं.

सरोगेसी सिस्टम से हासिल किया
डॉली के पिता सत्यनारायण के मुताबिक डॉली ने शुरू से ही तीर-कमान थाम लिए थे. उसे बचपन से इसका शौक था. जिससे उसका रूझान देखते हुये कार्बन से बने तीर-कमान ला दिए, ताकि वह उन्हें आसानी से इस्तेमाल कर सके. सत्यानारायण तीरंदाजी की एकेडमी चलाते हैं. उन्होंने बताया कि अपने बच्चों की मौत के के बाद उन्होंने सरोगेसी सिस्टम से डॉली को हासिल किया. वह कहते हैं कि डॉली को देखकर लगता है कि जैसे वह कोख से ही तीरंदाजी सीख कर आयी है. वहीं डॉली की मां भी अपनी बच्ची के इस करतब से काफी खुश हैं. वह कहती है कि मुझे उम्मीद है कि मेरी बच्ची भविष्य में काफी आगे जायेगी.

 

सटीक निशाना अचंभे से कम नहीं
दिल्ली में रहने वाली डॉली शिवानी चेरुकुरी अभी पूरे तीन साल की भी नहीं है. अभी तीन साल होने में पूरे नौ दिन बाकी है, लेकिन डॉली ने खिलौने खेलने वाले हाथों से वो करतब दिखाया कि जो शायद ही कोई कर सके, क्योंकि इस उम्र में बच्चे खिलौने भी ठीक से नहीं पकड़ पाते, लेकिन यह बच्ची तीर-कमान से सटीक निशाने लगाती है. इसने कल विजयवाड़ा में हुये तीरंदाजी में वरिष्ठ खेल अधिकारियों की मौजूदगी में पांच मीटर और सात मीटर की दूरी से 36 तीर से 388 अंक हासिल किए. जिससे इसका निशाना सीधे नेशनल रिकॉर्ड पर लग गया. इस मौके पर इंडिया बुक रिकॉर्ड के प्रतिनिधि विश्वजित रे और भारतीय खेल प्राधिकरण के पी रामा कृष्णा ने इस बच्ची के नाम की घोषणा की है. उन्होंने कहा कि डॉली का इस उम्र में इतना सटीक निशाना लगाना किसी अचंभे से कम नहीं हैं.

 

सरोगेसी सिस्टम से हासिल किया
डॉली के पिता सत्यनारायण के मुताबिक डॉली ने शुरू से ही तीर-कमान थाम लिए थे. उसे बचपन से इसका शौक था. जिससे उसका रूझान देखते हुये कार्बन से बने तीर-कमान ला दिए, ताकि वह उन्हें आसानी से इस्तेमाल कर सके. सत्यानारायण तीरंदाजी की एकेडमी चलाते हैं. उन्होंने बताया कि अपने बच्चों की मौत के के बाद उन्होंने सरोगेसी सिस्टम से डॉली को हासिल किया. वह कहते हैं कि डॉली को देखकर लगता है कि जैसे वह कोख से ही तीरंदाजी सीख कर आयी है. वहीं डॉली की मां भी अपनी बच्ची के इस करतब से काफी खुश हैं. वह कहती है कि मुझे उम्मीद है कि मेरी बच्ची भविष्य में काफी आगे जायेगी.

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