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LUCKNOW: वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की देखरेख में नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथारिटी और वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की देखरेख में टाइगर की गणना की जाती है। जिस क्षेत्र में बाघों की गणना होती है, पहले वहां के विभागीय कर्मचारियों को इसकी ट्रेनिंग दी जाती है। इसके बाद एरिया को ग्रिड में बांटकर कैमरा ट्रैप मैथड से टाइगर की गणना होती है। जंगल में जगह-जगह कैमरे लगाए जाते है जिसमें उनकी तस्वीरें कैद होती हैं। कैमरों में बाघ के दोनों तरफ का शरीर होना चाहिए। खास बात यह है कि किसी भी बाघ के शरीर पर दिखने वाली काली-पीली पट्टियां कभी एक समान नहीं होती।
वन क्षेत्र में भी इजाफा
जंगल का क्षेत्र बढ़ने से जहां शाकाहारी जानवरों की संख्या बढ़ी है वहीं इन पर निर्भर रहने वाले मांसाहारी जानवरों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। टाइगर को भी जंगलों में अपनी टेरेटरी बनाने का मौका मिला है। टाइगर की बढ़ती संख्या का मुख्य कारण वन क्षेत्रों को बढ़ना माना जा रहा है।
प्रदेशों में बाघों की संख्या
वर्ष बाघ
2006 109
2010 118
2014 117
2018 173
नोट- हर चार साल में बाघों की गणना होती है
यूपी में यहां हैं बाघ
- दुधवा नेशनल पार्क (किशनपुर और कतरनिया घाट), (टाइगर रिजर्व)
- पीलीभीत टाइगर रिजर्व
- अमानगढ़ टाइगर रिजर्व
- दक्षिण खीरी का वन प्रभाग
- बलरामपुर का सुहेलवा
- महाराजगंज का सुहागी बरवा
नोट - चित्रकूट के रानीपुर क्षेत्र को टाइगर रिजर्व बनाए जाने की मांग की गई है।
बाघों की संख्या बढ़ने का कारण
- मानव और वन्यजीव संघर्षो में कमी
- वन क्षेत्रों के हिस्सो को बढ़ाया जाना
- बाघों की रक्षा के लिए शुरू की गई पैट्रोलिंग
- पोचिंग में लगातार कमी आना
- जंगल में शाकाहारी जानवरों की संख्या भी बढ़ना
कुछ सालों में टाइगर का क्षेत्र बढ़ा है। स्मार्ट पैट्रोलिंग से शिकार भी कम हुआ है। वन क्षेत्र में बसें गांवों को अलग क्षेत्रों में विस्थापित कर दिया जाए तो और राहत मिलेगी।
रमेश पांडेय
मुख्य वन संरक्षक सुरक्षा एवं सर्तकता
पूर्व फील्ड डायरेक्टर दुधवा नेशनल पार्क