फार्मूला वन: बॉस, बॉस ही होता है

जब भी आपका डायलॉग बॉस के साथ हो तो प्रयास करें कि वह पहले बोलें. आपको बॉस के बाद ही बोलना चाहिए, वरना परिणाम घातक हो सकते हैं. इस जोक्स से समझिए. एक कंपनी के बॉस 31 दिसंबर की सुबह एक रिसार्ट में मीटिंग करने वाले थे. तभी वहां कहीं से एक जिन्न आ गया. उसने वहां बैठे तीनों लोगों से अपनी कोई भी इच्छा बताने को कहा. तुरंत वहां बैठे जूनियर मैनेजर ने कहा, 'मैं बोट में बैठकर न्यू ईयर मनाने गोवा जाना चाहता हूं. जिन्न ने कहा, ऐसा ही होगा. दूसरे जूनियर मैनेजर ने कहा, 'मेरी फैमिली रांची में है. मैं उनके साथ सेलिब्रेट करना चाहता हूं.' जिन्न ने कहा, जाइए. अंत में जिन्न बॉस से बोला आपकी क्या सेवा करूं सर. बॉस ने कहा, 'वे दोनों बेवकूफ लंच तक ऑफिस आ जाने चाहिए. इसलिए कहा गया कि हमेशा सीनियर के बाद ही बोलना चाहिए.

फार्मूला टू: अक्सर लोग 'किसी से कहना नहीं' के फार्मूले पर जरूरत से ज्यादा यकीन कर लेते है, ऐसा ना करें

ऐसा करते टाइम लोग यह भूल जाते हैं कि उनकी बातें न केवल बॉस तक जाती हैं, बल्कि उन पर पर्याप्त मिर्च-मसाला भी लगाया जाता है. बॉस की आलोचना व उनके रवैए के बारे में एनालिसिस से जितना बचेंगे, उतना ही बेहतर होगा. कंपनी की नीतियों को लेकर आपके कमेंट्स कभी 'ऑफ द रिकॉर्ड' नहीं होते. याद रखें, बॉस अपना टाइम दो चीजों पर ही लगाता है. पहला यह कि मैनेजमेंट उनके बारे में क्या सोच रहा है और दूसरा आप यानी कर्मचारी उनके बारे में क्या कहते हैं, क्या कह रहे हैं.

फार्मूला थ्री: अगर आपको पता है कि किन मौकों पर आपको दृढ़ रहना चाहिए और कब थोड़ा सॉफ्ट या फिर कब झुकना है, तो आपकी सफलता तय है.

क्रांति करने के लिए भी सिस्टम में रहना जरूरी है. सचिन तेंदुलकर ने एक इंटरव्यू में कहा था, 'ग्राउंड पर बात-बात पर एग्रेशन जरूरी नहीं है. अटैकिंग आपका काम होना चाहिए, आपका बिहेवियर नहीं. मैं खेलते समय शांत रहने की कोशिश करता हूं, लेकिन मेरी बैटिंग में एग्रेशन की कमी नहीं है.

फार्मूला फोर : काम करिए, लेकिन उसे दिखाने और अच्छी रिपोर्ट बनाने यानी अपनी ब्रांडिंग की कला सीखना भी बेहद जरूरी है

अक्सर लोगों की यह शिकायत होती है कि फलाना कामचोर है, फिर भी प्रमोशन हो गया. मैं कितना भी मेहनत करूं, बॉस को नजर ही नहीं आता. ऐसा ना करें.अरे भाई, अगर आप इनविजिबल एंप्लाई हैं तो इंक्रीमेंट क्यों लगेगा? आप अगर खुद से यह कहते हैं कि मेरा काम ही बोलता है. इसके लिए मुझे किसी और तरीके की जरूरत ही नहीं है तो समझ लीजिए कि आपका साइडलाइन होना तय है. सबसे पहले तो अपने व्यवहार को संभालें और खुद को पीड़ित मानने की भूल ना करें. पता करें और समझने का प्रयास करें कि कौन-कौन से कारण हैं जो आपको इंगेज्ड एंप्लाई बनने से रोकते हैं. केवल काम करने से किसी कंपनी में आज तक किसी का भला नहीं हुआ.

फार्मूला फाइव: दोस्ती और योग्यता हमेशा बढ़ाते रहें

कॉरपोरेट वल्र्ड में आपको दोस्तों की सख्त जरूरत होती है. पहले संभलकर दोस्त बनाइए, फिर सावधानी और सजगता से उनको सेव रखें. यदि किसी चिडिय़ा को उड़ते समय आसमान में खतरा नहीं दिख रहा है तो इसमें उस बाज की कोई गलती नहीं मानी जाएगी, जो उस पर दूर से घात लगाए बैठा है. चूंकि अपनी जान बचाए रखना चिडिय़ा की सबसे बड़ी ड्यूटी है, इसलिए उसे ही एलर्ट रहना होगा. भाग्य, किस्मत और संयोग जैसी चीजें जो बहुत बाद में काम करना शुरू करती हैं. आप सजग हैं और आपकी नेटवर्किंग मजबूत है तो बुरे वक्त में भी आपका नुकसान कम होगा. अपने मिजाज को फोल्डिंग चेयर की तरह बनाएं ताकि कंपनी अपनी जरूरतों के हिसाब से आपको इस्तेमाल कर सके.

अंत में रतन टाटा के स्टेटमेंट को याद रखिए-अपनी नौकरी को संपूर्णता में देखिए. केवल पैकेज पर ध्यान देने से कॅरिअर और जीवन बर्बाद हो सकता है.आपका नजरिया गुलाब की नहीं, आम की खेती करने जैसा होना चाहिए.

Report by: chandan.sharma@inext.co.in