सद्गुरु जग्गी वासुदेव (धर्मगुरु) रोशनी हम सभी को अच्छी लगती है क्योंकि रोशनी में ही हम देख पाते हैं कि कौन सी चीज क्या है। बहुत से लोग अंधेरे में जाने से डरते हैं, खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं, किसी अज्ञात भय से कांप उठते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि आपके सारे काम, आपकी सारी कोशिशें सिर्फ अपने वजूद को सुरक्षित बनाए रखने में केंद्रित हैं। अगर आप खुद को ऐसा बना लेते हैं कि वजूद बरकरार रखना कोई मुद्दा न रह जाए, आपमें किसी भी चीज के लिए कोई डर न बचे, तब आपमें अंधकार और प्रकाश को एक अलग तरह से समझने की काबिलियत आ जाती है।

अंधकार की गोद में ही प्रकाश का अस्तित्व

अगर हम आपको ईश्वर के बारे में शिक्षा देना चाहें, जबकि आप अभी अपने मन की सीमाओं के अंदर काम कर रहे हैं, तो हमें हमेशा ईश्वर को प्रकाश के रूप में बताना होता है, क्योंकि प्रकाश से आप देखते हैं, प्रकाश से हर चीज स्पष्ट होती है। लेकिन जब आपका अनुभव बुद्धि की सीमाओं को पार करना शुरू करता है, तब हम ईश्वर को अंधकार के रूप में बताने लगते हैं। आप मुझे यह बताएं कि इस अस्तित्व में कौन ज्यादा स्थाई है? कौन अधिक मौलिक है, प्रकाश या अंधकार? अंधकार। अंधकार की गोद में ही प्रकाश अस्तित्व में आया है। वह क्या है जो अस्तित्व में सभी चीजों को धारण किए हुए है? यह अंधकार ही है। प्रकाश बस एक क्षणिक घटना है। इसका स्रोत जल रहा है, कुछ समय के बाद यह जल कर खत्म हो जाएगा। चाहे वह बिजली का बल्ब हो या सूरज हो। एक कुछ घंटों में जल जाएगा, तो दूसरे को जलने में कुछ लाख साल लगेंगे, लेकिन वह भी जल जाएगा।

अंधकार की तरह सांवले हैं शिव, सर्वव्यापी

तो सूर्य से पहले और सूर्य के बाद क्या है? क्या चीज हमेशा थी और क्या हमेशा रहेगी? अंधकार। वह क्या है जिसे आप ईश्वर कहते हैं? वह जिससे हर चीज पैदा होती है, उसे ही तो आप ईश्वर के रूप में जानते हैं। अस्तित्व में हर चीज का मूल रूप क्या है? उसे ही तो आप ईश्वर कहते हैं। अब आप मुझे यह बताएं कि ईश्वर क्या है, अंधकार या प्रकाश? शून्यता का अर्थ है अंधकार। हर चीज शून्य से पैदा होती है। विज्ञान ने आपके लिए यह साबित कर दिया है। और आपके धर्म हमेशा से यही कहते आ रहे हैं-ईश्वर सर्वव्यापी है और केवल अंधकार ही है जो सर्वव्यापी हो सकता है। शिव अंधकार की तरह सांवले हैं। क्या आप जानते हैं कि शिव शाश्वत क्यों हैं? क्योंकि वे अंधकार हैं। वे प्रकाश नहीं हैं। प्रकाश बस एक क्षणिक घटना है। अगर आप अपनी तर्क-बुद्धि की सीमाओं के अंदर जी रहे हैं तब हम आपको ईश्वर को प्रकाश जैसा बताते हैं। अगर आपको बुद्धि की सीमाओं से परे थोड़ा भी अनुभव हुआ है, तो हम ईश्वर को अंधकार जैसा बताते हैं, क्योंकि अंधकार सर्वव्यापी है।

प्रकाश खुद जलकर हो जाता है खत्म

प्रकाश का अस्तित्व बस क्षणिक है, प्रकाश बहुत सीमित है और खुद जलकर खत्म हो जाता है, लेकिन चाहे कुछ और हो या न हो, अंधकार हमेशा रहता है। लेकिन आप अंधकार को नकारात्मक समझते हैं। हमेशा से आप बुरी चीजों का संबंध अंधकार से जोड़ते रहे हैं। यह सिर्फ आपके भीतर बैठे हुए भय के कारण है। आपकी समस्या की यही वजह है। यह सिर्फ आपकी समस्या है, अस्तित्व की नहीं। अस्तित्व में हर चीज अंधकार से पैदा होती है। प्रकाश सिर्फ कभी-कभी और कहीं-कहीं घटित होता है। आप आसमान में देखें, तो आप पाएंगे कि तारे बस इधर-उधर छितरे हुए हैं और बाकी सारा अंतरिक्ष अंधकार है, शून्य है, असीम और अनन्त है। यही स्वरूप ईश्वर का भी है। यही वजह है कि हम कहते हैं कि मोक्ष का अर्थ पूर्ण अंधकार है। यही वजह है कि योग में हम हमेशा यह कहते हैं कि चैतन्य अंधकार है। केवल तभी जब आप मन के परे चले जाते हैं, आप अंधकार का आनन्द उठाना जान जाते हैं, उस अनन्त, असीम सृष्टा को अनुभव करने लगते हैं।

बंद आंखों से बढ़ जाती है एकाग्रता

जब आपकी आंखें बंद होती हैं, तो उस अंधकार में आपके सभी अनुभव और ज्यादा गहरे हो जाते हैं। हर चीज के साथ ऐसा ही है, जब आप वास्तव में किसी चीज का आनंद लेते हैं, आपकी आंखें अपने आप बंद हो जाती हैं। जब आपको कोई चूमता है, आप अपनी आंखें बंद कर लेते हैं, क्योंकि बंद आंखों से यह संपूर्ण अनुभव और बढ़ जाता है। आंखें बंद करके आप खुद के ज्यादा करीब आ जाते हैं। बंद आखों से आपकी एकाग्रता बढ़ जाती है, आपका दूसरी चीजों से ध्यान नहीं बंटता। अधिकांश लोग ध्यान करते वक्त जब अपनी आंखें बंद करते हैं, तब प्रकाश देखते हैं। हर व्यक्ति यह दावा कर रहा है कि जब वह अपनी आंखें बंद करता है, उसे प्रकाश दिखाई देता है। अब जब आप ध्यान करते हैं, तो हम आपको आंखें बंद करने के लिए कहते हैं, क्योंकि खुली आंखों की अपेक्षा बंद आंखों में आप अपने सृष्टा के थोड़े ज्यादा नजदीक होते हैं।

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