अल्लाह की इबादत में पहले, दूसरे और तीसरे अशरे की अलग-अलग है विशेषता

अल्लाह की बरकत से पहले अशरे की शुरुआत, दूसरा बरकत का तो तीसरा अशरा गुनाहों से मांफी मांगने का

ALLAHABAD: इबादत की खुशबू के साथ रमजान उल मुबारक का पाक महीना शुरू हो गया है। एक महीने तक अल्लाह की इबादत में रोजा रखने के दौरान मुस्लिम घरों में बरकत होगी, अल्लाह की रहमत भी बरसेगी और अकीदतमंद अल्लाह से अपने गुनाहों की तौबा भी करेंगे। बरकत, रहमत और गुनाहों से तौबा करने का सिलसिला क्रमश : दस-दस दिन के अशरे के साथ होगा। पहला अशरा पहले रोजा के साथ शुरू भी हो गया है। जिसमें अल्लाह से घर की बरकत के लिए दुआएं मांगी जाएगी। दूसरा अशरा रहमत का रहेगा। जिसमें 15वें दिन खास दुआएं मांगी जाएगी जो रात में ईशा की नमाज के होगी। जबकि तीसरे अशरा यानि मगफिरत का होगा। इस अशरे में गुनाहों से तौबा और कठिन इबादत एतकाफ का रहेगा। अंतिम दस दिनों के तीसरे, पांचवें व सातवें दिन अकीदतमंद घर को छोड़कर मस्जिदों में चले जाएंगे और नमाज व कुरान के पाठ के अलावा कोई काम नहीं करेंगे।

16 प्रकार के कार्यो की मनाही

शरीयत के अनुसार रोजा रखने के दौरान 16 प्रकार के कार्यो की मनाही होती है। इनमें खाना, पानी, देर तक सिर भिगोना, डुबकी लगाकर नहाना, झूठ बोलना, संगीत सुनना, चुगली करना, किसी प्रकार का संसर्ग करना, धूल व मिट्टी के बीच खड़े रहना, लड़ाई-झगड़ा, दिन में बहुत ज्यादा कुल्ली करना, शरीयत में मना किए गए कार्यो की ओर ध्यान मगन होना, गाना व गजल की पंक्तियों को मन बहलाने के लिए दोहराना, सिनेमा व नाटक का मनोरंजन प्रदान करने वाले दृश्य देखना व खुशबू लगाना या देर तक सुगंधित चीज के पास बैठना शामिल है।

कौन रख सकता है रोजा

रमजान उल मुबारक के पाक महीने में हर कोई रोजा नहीं रख सकता है। नौ वर्ष से अधिक उम्र की लड़कियां और 15 या उससे अधिक उम्र के लड़कों के लिए रोजा रखना अनिवार्य है।

तरावीह का सिलसिला शुरू

रमजान उल मुबारक का चांद भले ही नहीं दिखाई दिया हो लेकिन मस्जिदों में शनिवार को तरावीह का सिलसिला शुरू हो गया। जामा मस्जिद चौक, मोती मस्जिद व मस्जिद मीरगंज में रात को ईशा की नमाज के बाद अकीदतमंदों ने तरावीह शुरू की। अकीदतमंदों ने खड़े होकर कुरान का पाठ किया।

रमजान साल का सबसे बरकत और रहमत वाला महीना होता है। हर अशरे की अपनी अलग-अलग पहचान होती है। शरीयत के मुताबिक 16 प्रकार के कार्यो को रोजा रखने के दौरान नहीं किया जाता है। अन्यथा रोजा टूट जाता है।

सैयद अजादार हुसैन,

अध्यक्ष दरगाह मौला अली प्रबंध कमेटी