मुंबई (आईएएनएस)। किसी भी देश ने इतने लंबे समय तक किसी एक खेल पर दबदबा नहीं बनाया है, जैसा कि भारतीय पुरुष हाॅकी टीम ने ओलंपिक में किया है। 1960 के रोम ओलंपिक के फाइनल में पाकिस्तान से हारने के बाद, भारत ने 1964 में टोक्यो में स्वर्ण पदक हासिल किया और 1980 में मास्को ओलंपिक में आठवीं बार ओलंपिक में शीर्ष पर रहा। 1928 से 1956 तक, भारत ने लगातार छह ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीता। उन्होंने इस दौरान एक भी मैच नहीं गंवाया और बहुत कम गोल खाए।

हार के डर से 20 साल नहीं खेले ओलंपिक
भारतीय टीम उस दौर में इतनी मजबूत थी कि, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ग्रेट ब्रिटेन ने ओलंपिक खेलों में हॉकी में भाग लेना बंद कर दिया था। भारत ने 1928 में एम्स्टर्डम में जब इंट्री मारी तो कोई भी टीम उनके आगे नहीं टिकती थी। इंग्लैंड के लिए चिंता की बात और थी क्योंकि वह उस देश की टीम से हारना नहीं चाहते थे, जिस पर वो खुद राज कर रहे थे। ऐसे में वह करीब 20 साल तक ओलंपिक के हाॅकी इवेंट में अपनी टीम नहीं भेजते थे ताकि भारत से हार की बदनामी से बच सकें।

80 के दशक से शुरु हुई गिरावट
1948 से ग्रेट ब्रिटेन ने फिर से हॉकी में भाग लेना शुरू किया। मगर भारत के 1976 के ओलंपिक में स्वर्ण युग का अंत हुआ जब भारत पहली बार सेमीफाइनल के लिए क्वालीफाई करने में विफल रहा। यह एक बड़ी निराशा थी, क्योंकि भारत उस समय विश्व चैंपियन था, जिसने कुआलालंपुर में एक साल पहले 1975 में खिताब जीता था। हालांकि भारत ने 1980 के मास्को में स्वर्ण पदक जीता था, लेकिन उस इवेंट में संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी गुट द्वारा खेलों का बहिष्कार किया गया था।

इस बार पदक की उम्मीद
इसके बाद अगले कुछ ओलंपिक गेम्स में गिरावट जारी रही और खेल और ओलंपिक के इतिहास में पहली बार, भारत 2008 में ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने में विफल रहा। हालांकि, पिछले तीन-चार वर्षों में उनकी किस्मत में सुधार के साथ, भारतीय पुरुष हॉकी टीम को फिर से टोक्यो ओलंपिक में पदक के दावेदार के रूप में चर्चा की जा रही है। इस बार क्या होगा, यह देखना दिलचस्प होगा।