कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। भारतीय महिला तलवारबाज भवानी देवी पहली बार सुर्खियों में तब आई। जब उन्होंने ओलंपिक के लिए टिकट कटाया। वह ओलंपिक क्वाॅलीफाई करने वाली पहली भारतीय महिला फेंसर हैं। हालांकि वह मेडल नहीं जीत सकी मगर ओलंपिक में खेलना ही उनके लिए गर्व की बात है। ऐसा करने वाली वह इकलौती इंडियन फेंसर हैं। ओलंपिक तक पहुंचना भवानी देवी के लिए आसान नहीं था। उन्होंने एक ऐसे खेल में करियर बनाया जिसके बारे में भारत में बहुत से लोग जानते भी नहीं हैं। मगर भवानी ने हिम्मत नहीं हारी और सालों से कड़ी मेहनत करके अपना एक नाम बनाया।

बांस के डंडे से करती थीं प्रैक्टिस
भवानी देवी का जन्म 27 अगस्त 1993 को चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ था। उनके पिता एक मंदिर के पुजारी हैं जबकि उनकी मां एक गृहिणी हैं। 10 साल की उम्र से ही वह खेलों के प्रति आकर्षित हो गई थी। देवी ने मुरुगा धनुषकोडी गर्ल्स हायर सेकेंडरी में पढ़ाई की और फिर अपने गृहनगर में सेंट जोसेफ इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाई की। भवानी ने 2004 में स्कूल में तलवारबाजी की शुरूआत की। उस वक्त तक वह बांस से बने डंडे से प्रैक्टिस करती थी। भवानी ने पहली बार एक नेशनल इवेंट में इलेक्टि्रक तलवार को हाथ में पकड़ा।

क्यों बनाया फेंसिंग में करियर
फेंसिंग में करियर बनाने को लेकर भवानी देवी ने एक इंटरव्यू में कहा था, "स्कूल में मुझे तलवारबाजी सहित छह खेल विकल्प दिए गए थे। जब तक मैं इसका फाॅर्म भरती तब तक अन्य सभी विकल्प भर गए थे और मुझे सिर्फ तलवारबाजी ही चुननी थी। यह मेरे लिए नया लग रहा था और मैं इसे आजमाने के लिए उत्सुक थी। भारत में उस वक्त यह एक बहुत ही नया खेल था, खासकर तमिलनाडु के लिए।"

पहला इंटरनेशनल इवेंट सदमे से कम नहीं
भवानी देवी ने स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद तलवारबाजी पर आगे काम करने के लिए केरल के थालास्सेरी में SAI (भारतीय खेल प्राधिकरण) केंद्र में प्रवेश लिया। वास्तव में, थालास्सेरी में SAI केंद्र भारत के उन गिने-चुने संस्थानों में से एक है जहाँ तलवारबाजी के प्रशिक्षण की सुविधा है। यहां कई महीने की ट्रेनिंग के बाद तुर्की में उन्होंने पहले इंटरनेशनल इवेंट में भाग लिया, मगर यह उनके लिए सबसे खराब गुजरा क्योंकि उन्हें तीन मिनट की देरी से ब्लैक कार्ड दिखाया गया था। जिसके चलते उन्हें पूरे टूर्नामेंट से बाहर कर दिया गया।

दुनिया भर में ऐसे बनाया नाम
भवानी देवी न केवल ओलंपिक क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय फेंसर हैं, बल्कि उनके नाम कुछ और उपलब्धियां भी हैं। वह फिलीपींस में 2014 एशियाई चैम्पियनशिप U23 कैटेगरी में सिल्वर मेडल हासिल करने वाली पहली भारतीय थीं और उन्होंने 2019 में सेबर इवेंट में कैनबरा में सीनियर कॉमनवेल्थ फेंसिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय बनकर इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया। लेकिन यह सब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 2009 में मलेशिया में आयोजित राष्ट्रमंडल चैम्पियनशिप में शुरू हुआ जहां उसने ब्रांज मेडल जीता। बाद में, उन्होंने 2010 इंटरनेशनल ओपन, 2010 कैडेट एशियन चैंपियनशिप, 2012 कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप, 2015 अंडर -23 एशियन चैंपियनशिप और 2015 फ्लेमिश ओपन जैसी स्पर्धाओं में कांस्य पदक जीता और भारत की स्टार फेंसर बन गईं।

ओलंपिक क्वाॅलीफाई कर रचा इतिहास
2014 एशियाई चैम्पियनशिप में अपनी सफलता के बाद, तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने भवानी देवी को संयुक्त राज्य अमेरिका में ट्रेनिंग के लिए भेजा क्योंकि उन्होंने रियो 2016 के लिए क्वालीफाई करने की मांग की थी। दो साल कड़ी मेहनत के बावजूद भवानी रियो के लिए क्वाॅलीफाई नहीं कर पाई थी। इसके बाद भवानी देवी को राहुल द्रविड़ एथलीट मेंटरशिप प्रोग्राम के लिए चुना गया जहां 'गो स्पोर्ट्स फाउंडेशन' ने 15 एथलीटों को ट्रेनिंग के लिए चुना। जिसमें प्रशिक्षण के लिए भवानी को इटली भेजा गया। जहां ट्रेनिंग के बाद उन्होंने टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वाॅलीफाई करके इतिहास रचा। खैर इस बार वह पदक से चूक गईं मगर वह अगली बार पदक जीतने की पूरी कोशिश करेंगी।