-9 साल से ऑफिस की शोभा बढ़ा रहा है स्पीड गन

-वजह सिर्फ इतनी है कि पुलिस को नहीं मिल पाया ट्रेनिंग

PATNA

शहर की अन कंट्रोल ट्रैफिक और बेतरतीब स्पीड को जांचने के लिए ट्रैफिक एडमिनिस्ट्रेशन लाख दावे करे, पर हकीकत कुछ और ही है। पटना ट्रैफिक दबे मुंह स्पीड गन का यूज करने की बात करता है। न्यू ईयर, होली आदि के दिन इसका यूज बताती है, पर सब झूठ है। दरअसल, 9 साल पहले पटना ट्रैफिक पुलिस ने चार स्पीड स्पीड गन की खरीदी की थी। 9 साल बीत जाने के बाद इसमें से एक का भी यूज नहीं किया गया है। हालात ये है कि ट्रैफिक पुलिस अभी स्पीड का चालान अंदाज से काटती है। ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि पुलिस की कितनी लापरवाही है कि स्पीड गन होने के बाद बावजूद भी अंदाज से चालान काटा जा रहा है।

डिब्बे में बंद है स्पीड गन

पटना में वर्ष 2012 में चार स्पीड गन मंगाए गए थे। पिछले 9 साल में करीब पांच एसपी बदल गए। हर ट्रैफिक एसपी ने यही दावा किया कि पुलिस को ट्रेनिंग देकर इसे शुरू किया जाएगा लेकिन वो नहीं हो पाता है। लाखों रुपए की खरीदारी के बाद भी स्पीड गन का यूज नहीं होने से शहर की रफ्तार का पता ही नहीं चल रहा। जांचने के बाद ही पता चल पाएगा कि कितनी स्पीड से शहर में घटना और दुर्घटना हो रही है।

सड़कों पर ही मिल जाती है ट्रेनिंग

ट्रेनिंग को लेकर ट्रैफिक डिपार्टमेंट अपने कर्मियों को खासा अपडेट नहीं करती है। स्पीड गन हो या फिर जेनरल इंफॉर्मेशन ट्रैफिककर्मी सिर्फ इतना जानते हैं कि बिना हेलमेट और ड्राइविंग लाइसेंस के चलना गलत है। जबकि एक्सीडेंट जैसी वारदातों के दौरान उनकी तत्परता नहीं के बराबर रहती है। इसी कारण कई सारे केसेज में गाड़ी व उसके ड्राइवर गायब रहते हैं, जबकि हर छह महीने या फिर साल में अनिवार्य रूप से ट्रेनिंग मिलनी चाहिए।

बेली रोड पर स्पीड का चलता है खेल

दरअसल, ट्रैफिक रूल्स के मुताबिक कोई भी बाइक अगर सड़क की स्पीड से अधिक स्पीड में चलती है, तो उसकी जांच के बाद उस पर फाइन या फिर अन्य कानूनी कार्रवाई की जानी है। स्पीड गन के यूज नहीं होने से इसका मिसयूज हो रहा। हालत तो यह हो गया है कि सिर्फ बेली रोड पर ही 90-100 की स्पीड से गाडि़यां चलती हैं जबकि इस दौरान चौराहों पर भी स्पीड कंट्रोल का कोई खासा अरेंजमेंट नहीं है।

स्पीड गन से ये होगा फायदा

अभी ट्रैफिक पुलिस रोड पर चेकिंग करती है और उसे लगता है कि कोई वाहन तेज रफ्तार में गाड़ी चला रहा है तो पुलिस उसे तत्काल रोक देती है। उसका चालान काटती है। पुलिस के पास इस बात का प्रमाण नहीं होता है कि उसकी स्पीड कितनी है। ऐसे में अगर स्पीड गन का उपयोग किया जाए तो पुलिस के उसका प्रूफ होगा और उसे कोई चैलेंज नहीं कर सकेगा लेकिन अभी अंदाजा से चालान काटने पर हर रोज पुलिसकर्मियों से विवाद होता है।

ऐसे काम करती है स्पीड राडार गन

-यह पूरी तरह कम्प्यूटराइज्ड है। जवान मुख्य मागरें व चौराहों पर स्पीड राडार गन लेकर खड़े होते हैं।

-वाहन के आते ही स्विच दबाने पर वाहन के नंबर की रिकॉर्डिंग और फोटो सेव हो जाता है।

-कितने समय पर वाहन कितनी स्पीड में था, यह टाइमिंग भी रिकॉर्ड हो जाती है।

-वाहन की फोटो, नंबर सहित पूरी जानकारी कुछ दूरी पर खड़े ट्रैफिक पुलिस के अफसरों तक पहुंच जाती है।

-वाहन की जानकारी आते ही उसे रोका जाता है।

-टाइमिंग और स्पीड की पूरी जानकारी चालक को दिखाते हुए चालान राशि वसूली जाती है।

वर्जन

पुलिसकर्मियों को स्पीड गन की जल्द ही ट्रेनिंग दी जाएगी। इसकी बारीकी के बारे में बताया जाएगा। इसके बाद स्पीड में चल रहे वाहनों की निगरानी स्पीड गन से रखी जाएगी।

-अजय कुमार पांडेय, एसपी ट्रैफिक