- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट और एफआरआई की ओर से 5 दिवसीय ट्रेनिंग प्रोग्राम

- फॉरेस्ट, स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी व सीएसआईएफ के ऑफिसर्स ले रहे ट्रेनिंग

- पहले दिन फॉरेस्ट फायर के रीजन्स व कंट्रोल के उपायों पर हुई चर्चा

देहरादून,

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट और फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (एफआरआई) की ओर से ज्वाइंट वेंचर में फॉरेस्ट फायर रिस्क मैनेजमेंट एंड इमरजेंसी रिस्पॉन्स टॉपिक पर 5 दिवसीय ट्रेनिंग प्रोग्राम का आगाज हुआ। ट्रेनिंग प्रोग्राम में फॉरेस्ट डिपार्टमेंट व स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी व सीएसआईएफ के ऑफिसर्स पार्टिसिपेट कर रहे हैं।

मार्च से मिड जून तक सेंसेटिव टाइम

ट्रेनिंग प्रोग्राम के दौरान स्पेशलिस्ट्स ने फॉरेस्ट फायर को लेकर गहन मंथन किया। बताया गया कि इंडिया में हर वर्ष फॉरेस्ट फायर से करीब 50 परसेंट वन क्षेत्र प्रभावित होता है। फॉरेस्ट फायर के लिए फॉरेस्ट एरियाज के आस-पास विस्तारित हो रही पॉपुलेशन को भी जिम्मेदार माना गया। बताया गया कि इंडिया में सामान्य रूप से फॉरेस्ट फायर का मौसम मार्च से मिड जून तक होता है। इस वर्ष उत्तराखंड में अप्रैल से जून तक हालात सबसे ज्यादा सेंसिटिव रहे। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के मुताबिक इस वर्ष 31 जून तक उत्तराखंड में फॉरेस्ट फायर की 2100 घटनाएं दर्ज की गईं, जिनसे 2412.45 हेक्टेयर फॉरेस्ट एरिया प्रभावित हुआ। इसमें भी 70 परसेंट प्रभावित एरिया चीड़ वन क्षेत्र का है।

फॉरेस्ट फायर पर अंकुश के दिए सुझाव

- फायर सीजन से पहले फॉरेस्ट फ्लोर से फ्यूल मैटेरियल साफ किया जाए।

- स्टेट गवर्नमेंट्स द्वारा फायर सीजन से पहले पर्याप्त बजट उपलब्ध कराया जाए।

- लोकल कम्युनिटी का फायर कंट्रोल में पूरा सहयोग लिया जाए।

- फॉरेस्ट डिपार्टमेंट फायर सीजन के दौरान रिमोट सेंसिंग और जीआईएस टेक्नोलॉजी का यूज करे।