-सीनियर एसपी के ट्रांसफर का हर कोई अपने हिसाब से कर रह विश्लेषण

-कई आफिसर्स में भी चर्चा का दौर जारी

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PATNA : गांधी मैदान में हुए दर्दनाक हादसे ने यहां के डीएम और एसएसपी दोनों को हटाये जाने का रास्ता बना दिया था। घटना के बाद से ही इन दोनों आफिसर्स का जाना तय माना जाने लगा था। लेकिन दो दिन बाद आये सरकार के इस निर्णय पर लोगों के बीच जमकर चर्चा हो रही है। कोई एसएसपी मनु महाराज के जाने का दर्द छिपा नहीं पा रहा तो कोई इसे सरकार द्वारा उठाया गया सही कदम बता रहा। आम लोगों के बीच इसकी चर्चा तो है ही इन आफिसर्स के आफिस तक में भी चर्चा जोरों पर है। कोई साफ कहता है कि यह डीएम की जिम्मेदारी थी। मनु महाराज तो बिना मतलब के नप गये। कोई कहता है यह कैसे हो सकता है, दोनों पर जिम्मेदारी थी नकारा नहीं जा सकता। इसी बीच एक ने कहा कि भाई कभी यह भी सोचा है कि जिन लोगों की जान चली गई वह लौट कर नहीं आएंगे चाहे डीएम एसएसपी रहे या जाएं। सच तो सच है। जान तो फ्फ् की गई है। इस पर हर कोई चुप हो जाता है।

तो आईजी साहब क्यों नहीं

चर्चा फिर आगे बढ़ती है यह तो हटाने का बहाना था सबमें पॉलिटिक्स है। तभी पुलिस मुख्यालय में बैठा एक शख्स कह उठता है जब कमिश्नर हटाई गई, डीआईजी को हटाया गया, डीएम गए, एसएसपी को नाप दिया गया तो फिर आईजी साहब को क्यों नहीं हटाया। आखिर इसमें क्या बात है। क्या उनकी जिम्मेदारी नहीं थी क्या इस आयोजन को सफल बनाने में। एक बार फिर सब सोचने पर मजबूर मगर चर्चा का दौर जारी रहता है। एक ने कहा जब हटाना था तब तो एसएसपी को हटाया नहीं, इस बार तो कोई कारण नहीं था हटाने का। उसका इशारा गांधी मैदान में नरेन्द्र मोदी की रैली के दौरान हुए सीरियल बम ब्लास्ट से था। तब तो देश की सुरक्षा पर ही सवाल था। इंडियन मुजाहिदीन के लोग गांधी मैदान में कई जगहों पर बम लगा देते हैं और पुलिस दिन रात निगरानी करती रह जाती है। इस बार तो भीड़ का सैलाब था जो नियंत्रित नहीं हुआ, वह तो बम था जो प्लांट कर दिया गया। तब एक को पकड़ लिया, कुछ नहीं हो सका। हटाना तब चाहिए था। एक ने कहा नजर पर तो तभी से थे भाई, कार्रवाई इस बार की गई है। कुछ लोग तो उनके काम करने के अंदाज पर भी बात करते हैं। हां डिस्टर्ब तो नहीं किया उन्होंने मगर नीचे वाले पर कार्रवाई जरूर हुई। भले ही ऊपर वाला उनके रीजन में बच गया।

अब नए वाले कैसे होंगे

चर्चा के बीच एक डीएसपी पर घूस लेकर अपराधी को भगाने का मामला उठ जाता है। एक ने सुनाई कहानी की डीएसपी के बारे में तो एक पुलिस वाले ने बताया था कि रुपए लिये लेकिन क्यों नहीं हुई कार्रवाई। जब एक अदना सा सिपाही पकड़ा जाता है तो सस्पेंड और डिसमिस की बात होती है। कहां चला जाता है तब पुलिस ऑफिसर्स का न्याय। बात इसी जगह खत्म होती है कि आखिर आने वाला नया एसएसपी कैसा होगा? तभी एक पुलिस वाले ने ही कहा, जितेन्द्र राणा साहब तो कुछ महीने पहले ही साहब से मिलने आये थे उनकी नसीब में लिखा था यहां का एसएसपी बनना। देखिये कब चार्ज लेते हैं। कैसा बदलाव होता है और चर्चा पर विराम लगता है।

हर पोस्टिंग के लिए सेटिंग का खेल

पुलिस डिपार्टमेंट में अच्छी पोस्टिंग चाहिए तो सेटिंग की जरूरत पड़ती है। यह सेटिंग कई तरह की होती है। एसपी हो, डीएसपी हो या फिर थानेदार सबके लिए ऊपर से सेटिंग चाहिए तब ही पटना में रह सकते हैं। सेटिंग कई तरीके से होता है। कई बार तो रिश्तेदारी काम आती है तो कई बार जाति का समीकरण, यही नहीं कई बार तो रुपये का खेल भी चलता है। इसमें जो पार हो गया उसके मन चाही जगह मिल गई। इससे कोई इंकार नहीं कर सकता है। हां तरीके अलग जरूर हैं। कभी कभी तो ऊपर वाले को पता भी नहीं होता और डील हो जाती है। पटना में अब भी कई थानों में ऐसे थानेदार हैं जिन्हें अपने इलाके की जानकारी नहीं। वे थाने में आने वालों से ठीक से व्यवहार नहीं करते। रुपए कमाने का जरिया बन चुका है कई मामलों का सुलझाना। यही नहीं कुछ थानेदारों पर तो उनकी लापरवाही और लेन-देन के आरोप को लेकर कार्रवाई भी हो चुकी है। कई बार तो गंभीर आरोप में हटाये गये पुलिसकर्मियों की जल्द ही दुबारा पोस्टिंग हो जाती है। यह सब सेटिंग का ही तो खेल है।