तमिलनाडु सरकार ने उठाए थे सवाल
तमिलनाडु सरकार ने चेन्नई और मदुरै हाईकोर्ट परिसर में सीआईएसएफ के फैसले पर सवाल उठाए थे। कोर्ट ने कहा था कि राज्य की पुलिस कोर्ट परिसर में वकीलों और उनके परिजनों द्वारा उप्रदव और हंगामे को रोकने में नाकाम रही है और सीआईएसएफ के सुरक्षा में तैनात करने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट के वकीलों ने तमिल को अदालत की आधिकारिक भाषा बनाने की मांग को लेकर नारेबाजी और जजों के घेराव किया था और परिजनों को लेकर कोर्टरूम में घुस गए थे। राज्य सरकार की तरफ से पैरवी करते हुए वरिष्ठ वकील एल नागेश्वर राव ने कहा कि कोर्ट से पुलिस सुरक्षा हटाना अहम फैसला है और इससे पुलिस के मनोबल पर असर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट की पूर्व अनुमति के बिना वकीलों के अनियंत्रित व्यवहार को रोकना संभव नहीं था।

सिर्फ यही एक ऑप्शन है
हालांकि, जस्टिस ठाकुर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा, 'हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और क्या कर सकते थे। अगर वकील कोर्ट को नहीं चलने देंगे तो हाईकोर्ट क्या कर सकता है। न्यायपालिका को ब्लैकमेल किया जा रहा है और पुलिस दर्शक बनी हई है। हमें सुनिश्चित करना है कि संस्था का सम्मान और स्वरूप बरकरार रहे।'जिसके बाद राव का तर्क था कि यदि पुलिस सुरक्षा नहीं दे सकी तो सीआईएसएफ के आने से तो हालात बदतर हो जाएंगे, क्योंकि वह स्थानीय भाषा और परिस्थितियां नहीं समझ सकेंगे। इस पर खंडपीठ ने कहा, 'यदि सीआईएसएफ या अर्धसैनिक बल स्थिति पर नियंत्रण नहीं कर पाए तो हाईकोर्ट फैसला करेगा कि सीआरपीएफ या बीएसएफ को बुलाना है या सेना को। सीआईएसएफ तो पहला कदम है। अगर किसी को लगता है कि वह कोर्ट को ब्लैकमेल कर लेगा तो उसे अपने दिमाग से यह ख्याल निकाल देना चाहिए। जरूरत पड़ी तो सेना भी बुलाई जा सकती है। वकीलों को न्यायपालिका को ब्लैकमेल करने की इजाजत नहीं दी जा सकती।'

सरल स्वभाव के हैं ठाकुर
जज ठाकुर को सरल स्वभाव का माना जाता है, लेकिन उन्होंने सख्त अंदाज में कहा कि सभी को यह संदेश जाना चाहिए कि अगर वे लड़ाई चाहते हैं तो यही सही। गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने 16 नवंबर से कोर्ट परिसर में सीआईएसएफ को तैनात करने का आदेश दिया है।

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